संग्राहलय
संग्राहलय, नागरिक जीवन का महत्वपूर्ण प्रतीक माने जाते हैं, विशेष रूप से शिक्षा और कला के क्षेत्रों में इनका महत्वपूर्ण स्थान होता है।
आज संग्राहलय की स्थापना का मक़सद, किसी स्थान पर प्रदर्शन के लिए कुछ प्राचीन चीज़ों को रखना नहीं है, बल्कि इसका मूल उद्देश्य सांस्कृतिक, कलात्मक और ऐतिहासिक दृष्टि से विचारों को उभारना है।
संग्राहलय किसी भी देश की सभ्यता और संस्कृति का आईना होते हैं। ईरान में संग्राहलयों का विशेष स्थान है। ईरान आने वाले अधिकांश पर्यटक, यहां मौजूद विभिन्न संग्राहलयों को देखने ज़रूर जाते हैं। सबसे अधिक विदेशी पर्यटक ईरान के राष्ट्रीय जवाहरात का ख़ज़ाना नामक संग्राहलय को देखने पहुंचते हैं, आज के ईरान में हम इसी संग्राहलय से आप लोगों को परिचित करवायेंगे।
राष्ट्रीय जवाहरात का ख़ज़ाना संग्राहलय में विश्व के सबसे मूल्यवान जवाहरात रखे हुए हैं, जो विभिन्न कालों में इकट्ठे किए गए हैं। जवाहरात की सुन्दरता और चमक से आंखें चमक उठती हैं और मन गहरी सोच में जाकर समीक्षा करने लगता है। इस मूल्यवान ख़ज़ाने के जवाहरात का हर टुकड़ा इतिहास की ऊंच नीच और ईरानी कलाकारों की रचनात्मकता की याद दिलाता है।
चकाचौंध करने वाली इन जवाहरात की तड़क भड़क देखकर इंसान उनके एकत्रित करने के तरीक़ों के बारे में सोचने लगता है। यह जवाहरात एक ओर ईरान के प्राचीन इतिहास को बयान करते हैं, तो दूसरी ओर अत्याचार ग्रस्त मज़दूरों की ख़ामोश सिसकियों को बयान करते हैं, जिन्हें धन एकत्रित करने के लिए ईरान के अत्याचारी शासकों ने प्रयोग किया था।
ईरान की इस्लामी क्रांति की सफलता और इराक़ की ओर से ईरान पर थोपे गए युद्ध के दौरान, यह मूल्यवान ख़ज़ाना ईरान के केन्द्रीय बैंक के विशेषज्ञों और कर्मचारियों द्वारा सुरक्षित रखा गया।
इस संग्राहलय में मौजूद जवाहरात को विभिन्न स्थानों से राजाओं के सजने धजने के लिए लोगों पर अत्याचार करके एकत्रित किया गया था। क्रांति की सफलता के बाद, अब इन्हें राष्ट्रीय हित में प्रयोग किया जा रहा है और यह राष्ट्रीय कोष का भाग हैं।
सफ़वी शासनकाल से पहले तक ईरान के जवाहरात के ख़ज़ाने के बारे में पर्याप्त जानकारी मौजूद नहीं थी। विदेशी सैलानी जान बाटिस्ट तावरनिये, श्वाली शार्दन, शेर्ली बंधुओं के अनुसार, सफ़वी शासकों ने अपने 200 वर्ष के शासनकाल में मूल्यवान जवाहरात एकट्ठा किए और सफ़वी शासन के विशेषज्ञों ने भारतीय व तुर्की के बाज़ारों औऱ फ़्रांस व इटली जैसे यूरोपीय देशों से जवाहरात और मोती ख़रीदे और राजधानी इस्फ़हान लाए।
सफ़वी शासनकाल श्रंखला के अंतिम दौर में विद्रोह और नादिर शाह की मौत के बाद, जवाहरात का महत्वपूर्ण भाग नष्ट हो गया और क़ाजार शासनकाल तक बचने वाले जवाहरात में कोई परिवर्तन नहीं हुआ।
इस काल में ईरानी खानों से निकलने वाला क़ीमती पत्थर फ़िरोज़ा और फ़ार्स की खाड़ी से निकलने वाले मोतियों की ख़ज़ाने में वृद्धि हुई। 19वीं शताब्दी के मध्य तक इस ख़ज़ाने के अधिकांश क़ीमती पत्थर अलग अलग थे। लेकिन इस काल में कुछ जवाहरता को तख़्ते ताऊस, ताज और विभिन्न आभूषणों के बनाने में इस्तेमाल किया गया।
जवाहरात का वर्तमान ख़ज़ाना 1955 में बनाया गया औऱ 1960 में ईरान के केन्द्रीय बैंक की स्थापना के साथ इसका उद्घाटन हुआ और यह इस बैंक के हवाले कर दिया गया और अब भी यह इसी बैंक के संरक्षण में है। ईरान के राष्ट्रीय जवाहरात का ख़ज़ाना, ऐतिहासिक एवं अद्वितीय है। दुनिया के दक्ष विशेषज्ञ भी इसकी क़ीमत का अंदाज़ा नहीं लगा सके हैं। उल्लेखनीय है कि ईरान के राष्ट्रीय जवाहरात ख़ज़ाने में मौजूद जवाहरात का महत्व केवल आर्थिक मूल्यों में ही सीमित नहीं है, बल्कि इससे ईरानी कलाकारों और दस्तकारों के सलीक़े और रूची का पता चलता है।
ईरान के केन्द्रीय बैंक के जवाहरात के संग्राहलय में प्रवेश करते ही सबसे पहले ध्यान हाल में प्रकाश की कमी की ओर जाता है, लेकिन शोकेसों में रखे हुए दुर्लभ जवाहरात की चमक देखकर समझ में आता है कि यहां बहुत अधिक रोशनी की ज़रूरत ही नहीं है। राष्ट्रीय संग्राहलय में रखे हुए जवाहरात को 36 अलमारियों में रखा गया है। इन अलमारियों में आभूषण, ताज, हेलमेट, गुलदान, खाने को ढांपने वाले बर्तन, हुक़्क़ा, आईना, फ़िरोज़ा, तलवार, ख़ंजर, ढाल, घड़ी, क़लमदान, लाल और नीलम, बंदूक़, छड़ी और मोती जैसी विभिन्न क़ीमती चीज़ें रखी हुई हैं। संग्राहलय की अधिकांश चीज़े ईरान के कलाकारों द्वारा बनाई गई हैं, लेकिन इनमें से कुछ ईरानी शासकों को दिए गए मूल्यवान उपहार भी हैं।
इस संग्राहलय का सबसे प्रसिद्ध एवं अद्वितीय हीरा दरियाए नूर है, जिसका वज़्न 182 कैरेट है और रंग गुलाबी है, जो दुर्लभ है। 1965 में कनाडाई विद्वान द्वारा इस संग्राहलय के जवाहरात की समीक्षा के समय एक बहुत ही दिलचस्प बिंदु का पता चला। फ़्रांसीसी सैलानी एवं हीरों के विशेषज्ञ तावरनिए ने अपनी किताब में गुलाबी हीरे के वज़्न 242 कैरेट लिखा है। वह लिखता है कि 1642 में उसने यह हीरा पूरब में देखा है। वह अपनी किताब में उसके डिज़ाइन और साइज़ का भी उल्लेख करता है और उसे बड़ा रत्न बताता है। इस हीरे के रंग और डिज़ाइन ने कनाडाई विशेषज्ञ का ध्यान अपनी ओर खींचा। उसका मानना है कि दरियाए नूर और नूरुल ऐन वास्तव में एक ही हीरा था, बाद में उसके दो टुकड़े किए गए थे। उसके बड़े टुकड़े को दरियाए नूर का नाम दिया गया और छोटे को, कि जिसका वज़्न 60 कैरेट है, नुरुल ऐन कहा गया। यह संग्राहलय में एक मुकुट के बीच में लगा हुआ है।
ईरान के राष्ट्रीय संग्राहलय में सबसे बड़ी चीज़ तख़्ते ताऊस है जो फ़तह अलीशाह के काल में 26733 टुकड़ों से 12 अलग हिस्सों में बनाया गया था। 1216 हिजरी क़मरी में इस्फ़हान के शासक निज़ामुद्दौला मोहम्मद हुसैन ख़ान सद्र इस्फ़हानी के आदेशानुसार ख़ज़ाने में मौजूद हीरे जवाहरात से एक बड़ा तख़्त बनाया गया, तख़्त के ऊपर एक सूर्य के चित्र के कारण, यह तख़्ते ख़ुरशीद के नाम से प्रसिद्ध हो गया।
वर्षों तक यह इसी नाम से जाना जाता था, लेकिन फ़तह अली शाह ने जब ताऊस ताजुद्दौला से जब विवाह किया तो इसे तख़्ते ताऊस कहा जाने लगा। फ़तह अली शाह के निधन के बाद, हीरों और रत्नों में दिलचस्पी रखने वाले नासिरुद्दीन शाह ने इस तख़्त की मरम्मत का आदेश दिया और इसके रूप में थोड़ा परिवर्तन भी किया गया और कुछ शेर भी लिखे गए, जो नासिरुद्दीन शाह द्वारा मरम्मत के आदेश की ओर संकेत करते हैं। तख़्त के किनारों पर नस्तालीक़ लिपि में सोने की ज़मीन पर नीले रंग की मीनाकारी हुई है। 1981 तक यह तख़्त गुलिस्तान महल में रखा हुआ था। उसके बाद इसे इस्लामी गणतंत्र ईरान के केन्द्रीय बैंक के जवाहरात के संग्राहलय में रख दिया गया, ताकि इसे अन्य मूल्यवान जवाहरात के साथ सुरक्षित रखा जा सके।
कुरे ज़मीन जवाहरनिशान अर्थात ग्लोब जिसे 1874 में नासिरुद्दीन शाह के आदेशानुसार, ईरानी जौहरियों द्वारा बनाया गया था, इस संग्राहलय की एक अन्य अचरज में डालनी वाली वस्तु है। इसमें प्रयोग होने वाले शुद्ध सोने का वज़्न, 34 किलोग्राम और जवाहरात का वज़्न 3656 ग्राम है। इस ग्लोब में जवाहरात और रत्नों के 51366 टुकड़े लगे हुए हैं। मोतियों और हीरों की चमक के बीच, इस ग्लोब पर विभिन्न देशों को खोजना एक कठिन कार्य है। नदियां पन्ना अर्थात एमिरेल्ड द्वारा, ख़ुश्की माणिक अर्थात रूबी द्वारा और दक्षिण पूर्वी एशिया, ईरान और ब्रिटेन के नक़्शों पर हीरे लगाए गए हैं। इसके अलावा, भारत के नक़्शे पर उज्जवल माणिक, मध्य व दक्षिणी अफ़्रीक़ा पर नीले माणिक और भूमध्यरेखा एवं अन्य रेखाओं को हीरों से चिन्हित किया गया है। ग्लोब का विकर्ण लगभग 66 सेंटीमीटर है और उसका स्टैंड पूर्ण रूप से सोने का है।
इस संग्राहलय में विभिन्न हीरों और रत्नों से जड़े हुए ताज रखे हुए हैं। इन ताजों में फ़तह अलीशाह का ताज है, जो ताजे कियानी के नाम से जाना जाता है, इसमें हीरे, पन्ने, माणिक और मोती जड़े हुए हैं। यह ताज फ़तह अलीशाह के शासनकाल में बनाया गया था और इसे क़ाजारी शासकों ने प्रयोग किया।
यह पहला ऐसा ताज है, जिसे सासानी शासनकाल के बाद, इस प्रकार से बनाया गया था। संग्राहलय के दूसरे भाग में रज़ा ख़ान पहली और उसके बेटे द्वारा प्रयोग किया जाने वाला ताज रखा हुआ है। यह ताज सोने और चांदी से बनाया गया था। इसमें बहुत मूल्यवान हीरे, बड़े बड़े पन्ने, माणिक और मोती जड़े हुए हैं।
सामेरी नामक माणिक का वज़्न 500 कैरेट है और यह दुनिया का सबसे बड़ा माणिक है। यह इस संग्राहलय की एक अन्य अनोखी वस्तु है।