Oct १६, २०१९ १७:४८ Asia/Kolkata

जब भी आर्थिक विकास की बात आती है तो यह सवाल उठता है कि क्या इस प्रगति से हासिल आय व सुविधाएं सभी लोगों के बीच न्यायपूर्ण ढंग से बटती हैं?

पश्चिम की पूंजिवादी व्यवस्था में सामाजिक व आर्थिक न्याय के लागू होने की बात ग़लत है। इस संबंध में सीमित स्तर पर क़दम उठाए गए हैं। यही वजह है कि पश्चिमी देशों में ख़ास तौर पर अमरीका में बड़े बड़े पूंजिपति हैं जिनकी संपत्ति की समाज के आम आदमियों की संपत्ति से तुलना नहीं की जा सकती यहां  तक कि इन पूंजिपतियों के फ़ैसले भी सरकार पर असर डालते हैं।  

इस्लाम में न्याय मूल सिद्धांतों में है जिसका अर्थव्यवस्था, समाज और न्याय के क्षेत्र में लागू होना प्राथमिकता रखता है। पवित्र क़ुरआन में अनेक आयतों में अत्याचार व भेदभाव की भर्त्सना के साथ शासकों को आदेश दिया गया है कि वे न्याय का पालन करें। यहां तक कि ईश्वरीय दूतों की नियुक्ति का एक अहम उद्देश्य न्याय की स्थापना बताया गया है। जैसा कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम न्यायी शासक के बारे में फ़रमाते हैः "अगर लोगों के बीच न्याय क़ायम हो जाए तो सभी आवश्यकतामुक्त हो जाएं, ईश्वर की आज्ञा से आकाश रोज़ी भेजेगा और धरती अपनी विभूतियों को उंडेल देगी।" यही वजह है कि मानवता के अंतिम मोक्षदाता हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम के शासन काल में धरती पर ईश्वरीय नेमतों की भरमार होगी।

न्याय के पीछे बहुत सी विभूतियां निहित हैं लेकिन इसका समाज में पूरी तरह लागू होना बहुत मुश्किल काम है। यह कहा जा सकता है कि पूरे इतिहास में कोई भी शासन अपनी प्रजा के बीच न्याय स्थापित नहीं कर पाया और यह मुहिम सिर्फ़ हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम के शासन काल में अंजाम पाएगी। इस बारे में इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई कहते हैः "सभी ईश्वरीय दूतों के लक्ष्यों में न्याय को प्राथमिकता हासिल थी। इस्लामी गणतंत्र ईरान में भी इसे वही अहमियत हासिल है। यह पवित्र शब्द सभी युगों और स्थानों के लिए है और इस पर पूरी तरह सिर्फ़ हज़रत इमाम महदी के शासन काल में अमल होगा लेकिन तुल्नात्मक रूप में हर जगह और हर समय संभव है और यह सभी, ख़ास तौर पर शासकों व प्रभुत्वशाली लोगों का कर्तव्य है।"

 

ईरान जनता की क्रान्ति भी अपने इस्लामी स्वरूप और समाज के वंचित वर्ग के समर्थक के रूप में न्याय को अपनी उच्च आकांक्षा मानती है। यही वजह है कि इस्लामी क्रान्ति के आरंभ से सामाजिक असमानता को कम करने और आर्थिक व सामाजिक न्याय स्थापित करने की कोशिशि हुयी। वंचित वर्ग को सेवा इस वर्ग के बीच से अधिकारियों का चयन, संसद, नगर व ग्रामीण परिषद जैसी राजनैतिक व सामाजिक संस्थाओं की स्थापना और वंचित वर्ग की स्थिति को बेहतर बनाने के लिए अनेक विकास परियोजनाओं का चलना, समाज में भेदभाव को ख़त्म करने के लिए इस्लामी गणतंत्र द्वारा उठाए गए क़दम हैं।                           

आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई इस बारे में इस्लामी क्रान्ति के दूसरे चरण के घोषणापत्र में कहते हैः "केन्द्र से पूरे देश में और शहर के समृद्ध क्षेत्रों से लेकर निचले इलाक़ों में सेवा पहुंचाने व संपत्ति के वितरण में दुनिया की सबसे सफल सरकारों में रही है।" वह इसी प्रकार स्पष्ट करते हैः "इस्लामी गणतंत्र ने न्याय की स्थापना के मार्ग में बड़े क़दम उठाए हैं कि जिसकी ओर संक्षेप में इशारा हुआ। अलबत्ता इसके वर्णन के लिए और काम होना चाहिए ताकि क्रान्ति के दुश्मनों के इसे छिपाने या उलटा दिखाने की कोशिशों नाकाम हो जाए।" इसके साथ ही इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता का मानना है कि इस्लामी गणतंत्र ईरान में जनता के बीच न्याय के लिए और बड़े क़दम उठने चाहिए क्योंकि सामाजिक व आर्थिक असमानता को ख़त्म करना क्रान्ति के मूल्य लक्ष्यों में है। वे कहते है कि अभी इस दिशा में उतनी प्रगति नहीं हुयी जितनी होनी चाहिए थी। यही वजह है कि आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई देश के अधिकारियों के साथ बैठक और भाषणों में न्याय की स्थापना में तेज़ी लाने वाले क़दम उठाने पर बल देते हैं। लेकिन इसके साथ ही इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता की बातों का दुरुपयोग न होने पाए इसलिए वे स्पष्ट करते कहते हैः देश में न्याय की ओर से मेरी अप्रसन्नता का यह अर्थ न निकाला जाए कि न्याय की स्थापना के लिए कोई काम ही नहीं हुआ। वास्तविकता यह है कि इस चार दशकों में अन्याय के ख़िलाफ़ संघर्ष की उपलब्धियों की किसी भी दूसरे दौर से तुलना नहीं की जा सकती।

न्याय का विस्तार हर आज़ाद व सत्य प्रेमी व्यक्ति की आकांक्षा है लेकिन इसके लागू होने के मार्ग में बड़ी रुकावटों का सामना होता है। इसके मार्ग में सबसे बड़ी रुकावट सत्ताधारियों और पूंजिपतियों के बीच व्याप्त भ्रष्टाचार है। वास्तव में आय और सुविधाओं के वितरण में लोगों के बीच भेदभाव भ्रष्टाचार के फैलने और अन्याय से दूरी कारण बनता है। इसलिए समाज में न्याय की स्थापना में सरकार के अहम कर्तव्यों में भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ व्यापक संघर्ष शामिल है। आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई इस्लामी क्रान्ति के दूसरे चरण के घोषणापत्र में भ्रष्टाचार और उसके अंजाम के बारे में कहते हैः "न्याय और भ्रष्टाचार से संघर्ष का एक दूसरे से चोली दामन का साथ है।आर्थिक, नैतिक और राजनैतिक भ्रष्टाचार अगर शासन के ढांचे में पहुंच जाए तो उसकी वैधता को बहुत नुक़सान पहुंचाएगा और यह विषय इस्लामी गणतंत्र जैसी व्यवस्था के लिए जिसे प्रचलित वैधता से ज़्यादा वैधता की ज़रूरत है, अन्य व्यवस्थाओं की तुलना में अधिक गंभीर है।" इस तरह इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता देश के अधिकारियों को भ्रष्टाचार के जाल में फंसने से हमेशा सचेत करते रहते हैं। अलबत्ता जिस सीमा तक न्याय की स्थापना मुश्किल काम है उसी सीमा तक भ्रष्टाचार व भेदभाव को ख़त्म करना भी मुश्किल काम है। इस काम के लिए गंभीर संकल्प की ज़रूरत होती है क्योंकि भ्रष्टाचार ही न्याय के मार्ग की मुख्य रूकावट है। आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनई भी देश के कुछ अधिकारियों के भ्रष्ट होने की संभावना का इंकार नहीं करते क्योंकि शैतान हमेशा इंसान की ताक में लगा रहता है ताकि उसे न्याय व सत्य के मार्ग से हटा दे।     

           

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ईरान में भ्रष्टाचार के बारे में वास्तविकता पर आधारित समीक्षा के साथ अपने बयान में कहते हैः "धन-संपत्ति और पद के मोह में इतिहास में न्याय पर आधारित सबसे बड़े शासान अर्थात हज़रत अली के शासन काल में भी लोग बहक गए, इसलिए इस्लामी गणतंत्र में भी इस ख़तरे के मौजूद होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता हालांकि एक समय ऐसा था मानो देश के अधिकारियों में सादा जीवन के लिए प्रतिस्पर्धा हो रही हो। अलबत्ता इस्लामी गणतंत्र के विरोधी मीडिया हल्क़े हमेशा यह दर्शाने का प्रयास करते हैं कि ईरान में शासन तंत्र में बहुत अधिक भ्रष्टाचार है और वे इस बारे में अफ़वाहों व ग़लत ख़बरों को प्रकाशित करते हैं।" इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता इस प्रकार के द्वेषपूर्ण प्रचारों से अवगत हैं। वे इस बारे में बल देकर कहते हैः "दूसरे देशों ख़ास तौर पर ईरान के उद्दंडी शाही शासन की तुलना में जो सिर से पैर तक भ्रष्टाचार में डूबा हुआ था, इस्लामी गणतंत्र में सरकारी विभाग में भ्रष्टाचार बहुत कम है। ईश्वर की कृपा से इस व्यवस्था के ज़्यादातर अधिकारी ईमानदार हैं। लेकिन जितनी भी मात्रा में भ्रष्टाचार है वह अस्वीकार्य है। सबको यह समझना चाहिए कि आर्थिक ईमानदारी इस्लामी गणतंत्र के सभी अधिकारियों की वैधता की शर्त है। सभी लालची शैतान के चंगुल से सावधान रहें और हराम रोज़ी से बचें और इस मार्ग में ईश्वर से मदद मांगे।" इसलिए इस्लामी गणतंत्र में जो न्याय का अग्रदूत है, न्यूनतम स्तर पर भेदभाव व भ्रष्टाचार अस्वीकार्य है हालांकि इस उद्देश्य तक पहुंचना कठिन काम है। इस काम के लिए इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता हर बात से पहले देश के अधिकारियों से ईश्वर से डरने, आत्म-निर्माण करने और सांसारिक मोहमाया से बचने के लिए प्रेरित करते हैं ताकि इंसान के भीतर भ्रष्टाचार व अन्याय के पनपने वाले तत्वों का सफ़ाया हो सके।

आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई भ्रष्टाचार से संघर्ष के एक और उपाय पर बहुत बल देते हैं और वह सत्ता व संपत्ति के केन्द्रों पर संपूर्ण निगरानी है। इस्लामी क्रान्ति के दूसरे चरण के घोषणापत्र में आया हैः "सरकारी और निगरानी करने वाले तंत्र को भ्रष्टाचार को पनपने से रोकने के लिए गंभीरता दिखानी चाहिए। इस संघर्ष के लिए ईमानदार, कृमठ, साहसी और पवित्र मन वाले लोगों की ज़रूरत है। यह संघर्ष इस्लामी गणतंत्र ईरान की न्याय को स्थापित करने की कोशिश का हिस्सा है।" अलबत्ता इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता उन लोगो को प्रेरित करते हैं जो क़ानूनी तरीक़े से आर्थिक गतिविधियों में व्यस्त हैं लेकिन साथ ही स्पष्ट शब्दों में कहते हैः जनसंपत्ति के वितरण में भेदभाव और आर्थिक भ्रष्टाचारियों से नर्मी बरतना पूरी तरह वर्जित है। इसी तरह मदद के मोहताज वर्ग की ओर से लापहरवी किसी भी स्थिति में स्वीकार्य नहीं है।

यही वजह है कि इस्लामी क्रान्ति की सफलता की चालीसवीं वर्षगांठ पर आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई समाज में न्याय के विस्तार के लिए तेज़ी से कोशिश को व्यवस्था के भविष्य की प्राथमिकताओं में गिनवाते है और इस पवित्र उद्देश्य तक पहुंचने के लिए बहुआयामी संघर्ष और भ्रष्टाचार से संघर्ष को अनिवार्य व ज़रूरी बताते हैं।

 

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