Oct २८, २०१९ १५:४६ Asia/Kolkata

किसी सरकार के आधारों को मज़बूत बनाने या उसके पतन में जनता की भूमिका का इन्कार नहीं किया जा सकता।

देश के विभिन्न मैदानों में जनता की सक्रिय उपस्थिति, व्यवस्था की शक्ति और उसके जारी रहने का कारण बनती है। यह वह अनुकंपा है जो इस्लामी गणतंत्र ईरान को अपने अस्तित्व के आरंभ से ही हासिल रही है। सैद्धांतिक रूप से ईरान की इस्लामी क्रांति की सफलता की एक अहम वजह, उसमें जनता की व्यापक व एकजुट उपस्थिति थी। यही कारण है कि चालीस साल से अधिक समय बीत जाने और अत्यधिक कठिनाइयां और समस्याएं सहन करने के बाद भी ईरानी राष्ट्र ने अपनी क्रांति की रक्षा की है।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने क्रांति की सफलता के दूसरे क़दम के नाम से इस्लामी क्रांति के अगले चालीस बरसों के लिए जो दूसरा दस्तावेज़ जारी किया है उसमें उन्होंने इस्लामी गणतंत्र व्यवस्था में जनता की भूमिका और उसके स्थान का उल्लेख किया है। उन्होंने अपने इस बयान में लिखा है कि क्रांति ने निंदनीय व पिट्ठू शासन को जनता पर आधारित एक प्रजातांत्रिक सरकार में बदल दिया। उसने राष्ट्रीय इच्छा को, जो व्यापक और वास्तविक प्रगति का मूल मंत्र है, देश के संचालन के केंद्र में पहुंचा दिया और फिर युवाओं को संचालन के मैदान का मुख्य स्थान प्रदान कर दिया। दूसरे शब्दों में अत्याचारी व पिट्ठू पहलवी शासन में जनता को स्वतंत्रता हासिल नहीं थी और देश के संचालन में उसकी कोई भूमिका नहीं थी लेकिन इस्लामी क्रांति आने के बाद, ईरानी राष्ट्र ने पूरी आज़ादी के साथ देश के संचालन और उसके भविष्य के चित्रण का काम अपने हाथ में ले लिया।

इस्लामी गणतंत्र ईरान में कथनी व करनी में जनता की स्वतंत्रता को संविधान के परिप्रेक्ष्य में सुनिश्चित बनाया गया है। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता स्वतंत्रता व स्वाधीनता को जनता के दो मूल अधिकार बताते हुए अपने बयान में कहते हैं कि राष्ट्रीय स्वाधीनता का अर्थ संसार की वर्चस्ववादी शक्तियों की ज़ोर-ज़बरदस्ती के मुक़ाबले में सरकार व राष्ट्र की स्वतंत्रता है और सामाजिक स्वाधीनता का मतलब है समाज के सभी लोगों को सोचने, अमल करने और फ़ैसला करने का अधिकार होना। ये दोनों, इस्लामी मान्यताओं में शामिल हैं और इंसानों के लिए ईश्वरीय उपहार हैं और इनमें से कोई भी लोगों पर सरकार की कृपा नहीं है। सरकारों का दायित्व है कि लोगों के लिए इन दोनों मान्यताओं की प्राप्ति को सुनिश्चित बनाएं।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता के बयान के इस भाग में ध्यान योग्य बिंदु यह है कि उन्होंने स्वतंत्रता व स्वाधीनता को सभी के लिए ईश्वरीय उपहार बताया है और सरकारों को न केवल यह कि इस बात का अधिकार नहीं है कि वे इन्हें प्रदान करने के बहाने जनता को अपना ऋणी समझें बल्कि अगर वे यह काम नहीं करती हैं तो उन्होंने अपने दायित्व का पालन नहीं किया है और लोगों को स्वतंत्रता प्रदान न करने या उसकी रक्षा न करने के कारण उन्हें उत्तरदायी भी होना चाहिए।

ईरान की इस्लामी गणतंत्र व्यस्था पिछले चार दशकों में ईरानी जनता की विभिन्न प्रकार की स्वतंत्रताओं की रक्षक रही है और, पहलवी शासनकाल के अत्याचारों, दमन और घुटन का मज़ा चख चुकी जनता ने भी, देश के संचालन व उसकी प्रगति के लिए अपनी आज़ादी का भरपूर इस्तेमाल किया है। इस्लामी क्रांति के दूसरे क़दम के बयान में हम इस बारे में पढ़ते हैं कि स्वतंत्रता व स्वाधीनता का मूल्य अधिकतर वही लोग समझते हैं जो इसके लिए लड़े हैं। ईरानी राष्ट्र, अपने चालीस वर्षीय जेहाद के साथ उन्हीं में से है। ईरान की वर्तमान स्वतंत्रता व स्वाधीनता, लाखों महान, साहसी और बलिदानी लोगों के ख़ून का परिणाम है, ये लोग अधिकतर युवा थे लेकिन प्रतिष्ठा की दृष्टि से सभी मानवता के उच्च दर्जे पर पहुंचे हुए थे।

इस्लामी गणतंत्र ईरान में स्वतंत्रता व प्रजातंत्र को धार्मिक प्रजातंत्र के परिप्रेक्ष्य में परिभाषित किया गया है। यह व्यवस्था, इस्लाम की वास्तविक शिक्षाओं से प्रवाहित हुई है जिनमें जनता की राय, शासन का आधार है और जो जनता को देश के संचालन के लिए शक्ति के प्रयोग की क्षमता प्रदान करती हैं। आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई कहते हैं कि इस्लामी व्यवस्था में लोगों की राय, इच्छा और भावना का मुख्य प्रभाव होता है और इस्लामी व्यवस्था लोगों की राय और इच्छा के बिना व्यवहारिक नहीं हो सकती। वे इसी तरह धार्मिक प्रजातंत्र के बारे में कहते हैं कि धार्मिक प्रजातंत्र, इस्लामी व्यवस्था का एक अहम तथ्य है क्योंकि अगर कोई व्यवस्था धार्मिक आधारों पर अमल करना चाहे तो यह काम जनता के बिना संभव नहीं है और इसी तरह वास्तविक प्रजातंत्र को व्यवहारिक बनाना भी धर्म के बिना संभव नहीं है।

 

धार्मिक प्रजातंत्र में लोगों की स्वतंत्रता को ईश्वरीय शिक्षाओं के परिप्रेक्ष्य में लागू किया जाता है जबकि पश्चिमी प्रजातंत्र में सरकारें, जो शक्ति व धन के केंद्रों के प्रभाव में होती हैं, स्वतंत्रता की सीमाओं को निर्धारित नहीं करतीं। इस समय इस्लामी गणतंत्र ईरान में लोग पूरी स्वतंत्रता के साथ देश के मामलों में अपने विचार बयान करते हैं और अधिकारियों व उनके काम पर टिप्पणी करते हैं। विभिन्न दल, गुट व धड़े अपने विचार जनता के समक्ष रखते हैं और संचार माध्यम लोगों को देश की स्थिति से अवगत कराते हैं। प्रदर्शन और जुलूस, अपने विचार व्यक्त करने या देश के अधिकारियों के क़दमों व नीतियों की पुष्टि या आलोचना या इसी तरह देश के बाहर घट रही घटनाओं पर अपने विचर प्रकट करने का एक अन्य साधन है।

अलबत्ता देश के मामलों के संचालन में जनता की राय को लागू करने और उसकी भागीदारी का सबसे अहम व प्रभावी मार्ग, स्वतंत्र चुनाव और जनमत संग्रह हैं और धार्मिक प्रजातंत्र के परिप्रेक्ष्य में इस्लामी क्रांति की सफलता के बाद से अब तक देश में दर्जनों चुनाव हो चुके हैं। ईरान के संविधान की धारा 6 में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि इस्लामी गणतंत्र ईरान में देश के मामले जनता के मतों पर भरोसा करके संचालित किए जाएं जो राष्ट्रपति चुनाव, संसदीय चुनाव, नागरिक व ग्रामीण परिषदों के चुनावों और अन्य चुनावों के माध्यम से हासिल होते हैं।

ईरानी जनता ने फ़रवरी वर्ष 1979 में इस्लामी क्रांति की सफलता के दो महीने के अंदर ही पहली बार मतदान केंद्रों का रुख़ किया ताकि अपने दृष्टिगत शासन व्यवस्था का चयन कर सके। इस जनमत संग्रह में 98 प्रतिशत से अधिक मतदाताओं ने इस्लामी गणतंत्र व्यवस्था का चयन किया। ईरानियों ने इसी तरह दो बार और जनमत संग्रह में भाग लिया और संविधान तथा उस पर पुनर्विचार के बारे में अपनी राय दी। पिछले चालीस बरसों में ईरानी जनता ने कुछ मिला कर 33 चुनावों में भाग लिया ताकि राष्ट्रपति, सांसदों और पार्षदों का चयन कर सके। इसी तरह चूंकि वरिष्ठ नेता के निर्धारण के लिए व्यापक धार्मिक ज्ञान रखने वाले विद्वानों की ज़रूरत होती है इस लिए लोग, वरिष्ठ नेता का चयन करने वाली परिषद के सदस्यों का चयन करते हैं। यही परिषद संविधान के अनुसार वरिष्ठ नेता का चयन करती है और उसके काम पर नज़र भी रखती है। दूसरी ओर पहलवी शासन के विपरीत, जिसमें अधिकारियों का चयन एक विशेष वर्ग से किया जाता था, इस्लामी गणतंत्र ईरान में उन सभी लोगों के लिए जनता के मत हासिल करके विभिन्न सरकारी पदों पर पहुंचना संभव है जिनमें उस पद की योग्यता पाई जाती हो।

ईरान के मुस्लिम राष्ट्र के लिए इस्लामी क्रांति का एक बड़ा तोहफ़ा, इस्लाम धर्म के प्रचार के संबंध में आज़ादी है। शाह की सरकार पश्चिम संस्कृति और निरंकुशता का प्रचार और इसी तरह धर्मगुरुओं का विरोध करके समाज को इस्लाम की मुक्तिदाता संस्कृति से दूर करना चाहती थी। लेकिन चूंकि इस्लाम की परिपूर्ण शिक्षाएं ईरान के लोगों के दिलों की गहराइयों तक पहुंची हुई हैं इस लिए शाह की धर्मविरोध की यह नीति, उसके ख़िलाफ़ लोगों के संघर्ष और इस्लामी क्रांति के आरंभ का एक अहम कारण बन गई।

ईरानी जनता की ओर से एक इस्लामी व्यवस्था का चयन इस बात का परिचायक है कि वह अपने देश में इस्लमी क़ानूनों व मान्यताओं के शासन की इच्छुक है। इस्लामी गणतंत्र ईरान ने अब तक इस संबंध में ध्यान योग्य सेवाएं की हैं समाज में शिष्टाचार, नैतिकता और अध्यात्म के प्रसार का मार्ग पूरी तरह से प्रशस्त कर दिया है। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई इस्लामी क्रांति के दूसरे क़दम के अपने बयान में इस बारे में कहते हैं कि इस्लामी क्रांति ने इस्लामी गणतंत्र ईरान में अपने धार्मिक व नैतिक रुख़ से प्रकाशमान दिलों विशेष कर युवाओं को आकृष्ट किया है जिससे पूरा वातावरण धर्म व नैतिकता के पक्ष में बदल गया। वे सारांश में जनता के प्रति इस्लामी गणतंत्र व्यवस्था की सेवाओं का परिणाम इस प्रकार बयान करते हैं। चालीस बरसों की मेहनत का नतीजा अब हमारे सामने है। अब ईरान एक स्वाधीन, शक्तिशाली, सम्मानीय, धर्मावलंबी, ज्ञान-विज्ञात में विकसित, मूल्यवान अनुभवों से परिपूर्ण, निश्चिंत, आशावादी, क्षेत्र में प्रभावी और वैश्विक मामलों में एक मज़बूत तर्क का स्वामी देश व राष्ट्र है। (HN)

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