Nov ०३, २०१९ १६:१० Asia/Kolkata

ईरानी राष्ट्र का इतिहास कई हज़ार साल पुराना है।

इस दौरान उसने ऐसे बहुत सारे महापुरुषों को जन्म दिया है जो पूरी दुनिया में ईरान और ईरानियों के गर्व का कारण बने हैं और उनमें से एक विश्व विख्यात शायर हकीम अबूल क़ासिम फिरदौसी हैं जिन्हें ईरानी इतिहास में विशेष स्थान प्राप्त है।

जब हम दुनिया से जा चुकी महान हस्तियों की जीवनी और उन चीज़ों पर नज़र डालते हैं जो वे छोड़कर गये होते हैं और उन चीज़ों की तुलना महान हस्तियों से करते हैं तो हम यह पाते हैं कि विभिन्न दौर और शताब्दियों के दौरान फिरदौसी ईरान के सबसे प्रभावी विचारक और शायर हैं।

शाहनामा कहे हुए शताब्दियों का समय गुज़र रहा है परंतु आज भी उसकी सुन्दर व रोचक कहानियां लोगों में प्रचलित हैं। मानो रुस्तम ने ईरान की समस्त गलियों का भ्रमण किया है और हर जगह  यादगार छोड़ी है और दूसरी जगह की यात्रा पर हैं। ईरान के जो पारंपरिक चायखाने हैं आज भी उनकी दीवारों पर फ़िरदौसी के शाहनामे की मनोहर कहानियों के चित्र अंकित हैं और नगाड़ा बजाने वाला रुस्तम की बहादुरी की कुछ कहानियों को पढ़कर और सियावश की कहानियों या सोहराब के शोकपत्र को पढ़कर सुनने वाले को पौराणिक यात्रा पर ले जाता है।

शाहनामे को कहे हुए शताब्दियों का समय बीत चुका है परंतु आज भी बहुत से ग्रामीण और किसान फ़िरदौसी के शाहनामे की कहानियों को बयान करते हैं और कभी कभी तो ऐसा भी होता है कि वे फिरदौसी के शाहनामे की कहानियों को स्थानीय भाषा में रूपांतरित कर देते हैं। रुस्तम की याद ग्रामीणों और किसानों के दिल में आशा का दीप जलाती है और सियावश, इस्फंदयार और सोहराब पर पड़ने वाले दुःखों से दिल दुःखी हो जाते हैं।

फ़िरदौसी का शाहनामा ईरानी वंशवृक्ष है। फ़िरदौसी का शाहनामा ईरान और ईरानियों का कई हज़ार वर्षीय पुराना इतिहास है। इसमें इंसान की सृष्टि, मानव सभ्यता की परिपूर्णता, निरंतर समस्त शैतानी प्रतीकों से युद्ध, सरकारों के गठन के काल और अंतिम प्राचीन सरकार की समाप्ति आदि विषयों का वर्णन किया गया है। फ़िरदौसी का शाहनामा ईरानी राष्ट्र और ईरान की कई हज़ार वर्षीय पुरानी संस्कृति का खज़ाना है। इसी प्रकार यह शाहनामा बुद्धि और ईरानी विचार का इंसाइक्लोपीडिया है और इसी कारण सुरक्षा की जानी चाहिये।

शाहनामा फ़िरदौसी का विभिन्न यूरोपीय भाषाओं में अनुवाद हो चुका है जबकि जो वैचारिक सूक्ष्मता है उसका दूसरी भाषाओं में अनुवाद नहीं किया जा सकता। यही नहीं, फ़िरदौसी का शाहनामा उस राष्ट्र का सांस्कृतिक आइना है जिसकी सभ्यता, संस्कृति और परम्परा व शिष्टाचार दूसरे राष्ट्रों से बुनियादी अंतर रखता है और फ़िरदौसी के शाहनामे की महानता व वैचारिक शक्ति ने दूसरे राष्ट्रों को भी प्रभावित किया है। यूरोपीय साहित्यकारों ने फ़िरदौसी के मानवीय संदेशों व विचारों को समझा है और उसे मानव सभ्यता की मूल्यवान धरोहर समझते हैं जबकि कुछ उसे दुनिया का सबसे बड़ा साहित्यिक व वैचारिक शाहकार मानते हैं। उनमें जो साहित्यकार, विचारक और विद्वान पक्षपाती नहीं थे उन्होंने फ़िरदौसी के शाहनामे को सबसे बेहतर बताया है। यूरोपीय साहित्यकार “यान रिपका” ने फ़िरदौसी के शाहनामे के बारे में कहा है कि यह एक निश्चित वास्तविकता है कि दुनिया में किसी राष्ट्र के पास इस प्रकार का महान इतिहास व शाहनामा नहीं है जिसमें पौराणिक काल से लेकर सातवीं शताब्दी तक की समस्त एतिहासिक परम्परायें मौजूद हों।

वर्ष 2009 में फ़िरदौसी फ़ाउंडेशन ने राष्ट्रसंघ की सांस्कृतिक संस्था यूनिस्को को प्रस्ताव दिया था कि फ़िरदौसी के शाहनामे के एक हज़ार साल पूरा हो जाने के उपलक्ष्य में 2009 का नाम फिरदौसी, राष्ट्रीय इतिहास और शाहनामा वर्ष दिया जाये।

इसी आधार पर हमने उचित समझा कि विश्व विख्यात महान शायर फिरदौसी और उनके शाहनामे से दुनिया को परिचित करायें।

जब ईरान में सामानी सरकार का अंत हो रहा था और इसी प्रकार समरक़न्द में फारसी शायरी के जनक रूदकी का जब निधन हुआ तो उसके साथ ही ईरान के एक गांव में विश्व प्रसिद्ध शायर अबूल कासिम फिरदौसी का जन्म हुआ।

फ़िरदौसी के जन्म के बारे में हमारे पास जो प्रमाण हैं वे इस बात के सूचक हैं कि फ़िरदौसी का जन्म लगभग 329 या 330 हिजरी कमरी यानी 940 से 941 ईसवी में तूस के एक गांव “पाज” में हुआ है। एतिहासिक दस्तावेज़ों के अनुसार उस समय तूस नगर को भी बोखारा की भांति ईरान का सांस्कृतिक ध्रुव समझा जाता था। बोखारा मात्र वह नगर था जो ज्ञान अर्जित करने का आधिकारिक केन्द्र था और उसे अब्बासी खलीफा का समर्थन प्राप्त था और तूस नगर को ईरान का सांस्कृतिक केन्द्र समझा जाता था।

बहुत से इतिहासकारों और अध्ययनकर्ताओं का मानना है कि  अबू मंसूरी ने अपना शाहनामा तूस नगर में ही पूरा किया और उसके बाद दक़ीक़ी, फ़िरदौसी और असदी तूसी ने भी अपनी रचनाओं को इसी नगर में पूरा किया जो इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि इस नगर में ईरान दोस्ती की भावना प्रचलित थी। इसी प्रकार सांस्कृतिक मामलों का रुझान इस बात का परिचायक है कि तूस नगर प्राचीन यादों का केन्द्र भी था।

विश्व विख्यात महान शायर फ़िरदौसी के बचपने के बारे में अधिक जानकारी नहीं है। फिरदौसी के लगभग डेढ़ शताब्दी बाद के लेखक नेज़ामी अरुज़ी कहते हैं कि फिरदौसी का संबंध तूस के गणमान्य, प्रतिष्ठित और धनाढ्य परिवार से था। फ़िरदौसी ने स्वयं इस बात की ओर संकेत किया है कि जवानी में उन्होंने बड़े आराम का जीवन व्यतीत किया है।

फ़िरदौसी के काल में गणमान्य व प्रतिष्ठित लोगों की जो स्थिति थी उससे अवगत होने के बाद किसी सीमा तक फ़िरदौसी के जीवन के बारे में कह सकते हैं। फ़िरदौसी का संबंध तूस नगर के देहकानान अर्थात गणमान्य व प्रतिष्ठित लोगों से था। ईरान में इस्लामी काल में देहकानान गणमान्य व प्रतिष्ठित लोगों को कहा जाता था। इसी प्रकार देहक़ानान शिष्टाचार, परम्पराओं और पुरानी यादों को सुरक्षित रखने वाले लोगों को कहा जाता था। देहक़ानान के बच्चे अपेक्षाकृत आराम से रहते थे और वे नैतिकता, इतिहास, संस्कृति और ईरानी परम्पराओं की शिक्षा ग्रहण करते थे और विश्व विख्यात शायर फ़िरदौसी की ज़बान की जो पवित्रता है वह पारिवारिक प्रशिक्षा का ही परिणाम है।

फ़िरदौसी के समय जो दूसरे शायर थे उनकी रचनाओं की तुलना जब फिरदौसी की रचनाओं से करते हैं तो उनमें अंतर को अच्छी तरह समझ सकते हैं। फ़िरदौसी एक प्रतिष्ठित परिवार में पले- बढ़े थे और अपने नगर में उन्होंने मान- सम्मान का जीवन व्यतीत किया। इसी कारण उन्होंने किसी भी शासक के सामने सिर नहीं झुकाया और शाहनामे के नायकों की भांति उनके अंदर भी प्रशंसनीय विशेषताएं थीं।

फ़िरदौसी ने बाल्याकाल से ही अपने समय के ज्ञानों को अर्जित कर आरंभ किया और उस समय जो चीज़ें प्रचलित थीं उनका ज्ञान हासिल कर लिया। उन्होंने फारसी भाषा के अलावा पहलवी भाषा भी सीखी। उस समय पहलवी भाषा प्राचीन संस्कृति, इतिहास व दूसरे ज्ञानों को हासिल करने का मूल्यवान स्रोत थी। इसी प्रकार फिरदौसी अरबी भाषा से भी अवगत थे। बाद में फिरदौसी ने यूनानी तर्क और दर्शनशास्त्र आदि की शिक्षा भी प्राप्त कर ली। यूनानी दर्शनशास्त्र के बारे में उन्होंने जो शिक्षा प्राप्त की थी उसे उनके पूरे शाहनामे विशेषकर उसकी प्रस्तावना में देखा जा सकता है। शाहनामे को लिखने में 30 वर्ष का समय लगा। इस बात के दृष्टिगत फ़िरदौसी पर अध्ययन करने वाले कुछ शोधकर्ताओं का मानना है कि फिरदौसी ने शायरी लगभग 58 वर्ष की आयु में आरंभ की जबकि कुछ अन्य शाहनामे और उसमें मौजूद कहानियों को प्रमाण के तौर पर पेश करते हैं और उनका मानना है कि फिरदौसी ने शायरी को जवानी में ही आरंभ कर दिया था। जैसे बीजन और मनीजे की कहानी है और इस कहानी का संबंध उनकी जवानी के काल से है। क्योंकि इन शोधकर्ताओं का मानना है कि बीजन और मनीजे की पूरी कहानी से फिरदौसी के युवाकाल की महक आती है।

फिरदौसी के शाहनामे पर दृष्टि डालने से शेरों में उनकी परिपक्वता को समझा जा सकता है और यह खुद शेर कहने में फिरदौसी के लंबे अतीत का परिचायक हो सकता है।

फिरदौसी ने कुछ उन प्राचीन कहानियों को भी शेर का रूप दे दिया जो मौखिक रूप से लोगों के मध्य प्रचलित हैं। इसी प्रकार उन्होंने उन कहानियों को भी शेर का रूप दे दिया जो लिखित रूप में मौजूद थीं। शायद इस प्रकार की कहानियों की प्रतियां हुआ करती थीं जो एक दूसरे के हाथों में जाया करती थीं।

बाइसंग़री का जो शाहनामा है उसकी प्रस्तावना में उसने इस संबंध में लिखा है कि जब फिरदौसी शाहनामा लिखने में व्यस्त थे तो वह हर कहानी को शेर का रूप देने में मशहूर थे और उसकी प्रतियों को आस- पास ले जाते थे। जैसाकि जब कोई रुस्तम और इस्फन्दयार की लड़ाई की प्रति रुस्तम बिन फख्रुद्दौला दैलमी के पास ले जाता था वह ले जाने वाले को 500 दीनार देते और फिरदौसी के लिए 1000 दीनार में भेजते थे।

 

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