बगला और केकड़ा
काफ़ी समय पहले की बात है।
एक तालाब के किनारे एक बगला बैठा हुआ था और पानी में तैरने वाली छोटी-बड़ी मछलियों को निहार रहा था। वह काफ़ी निराश था क्योंकि वह अब इतना बूढ़ा और कमज़ोर हो चुका था कि तालाब से छोटी सी मछली भी नहीं पकड़ सकता था। उसकी शांति दिखाई देने वाली आंखों के पीछे दुख व निराशा का एक अथाह सागर था क्योंकि यदि स्थिति यही रहती तो वह भूख से मर सकता था। उसने पानी को देखते-देखते सोचा कि पेट भरने के लिए उसे कोई चाल चलनी होगी। थोड़ी देर बाद उसके मन में एक युक्ति आई और वह तालाब के किनारे बने हुए केकड़े के बिल के पास आया और बैठ कर रोने लगा। केकड़ा अपने बिल से बाहर निकला और उसने बगले से पूछा कि तुम इतने दुखी क्यों हो। बगले ने कहा कि यह संसार मुझे सुखी और प्रसन्न नहीं रहने देता। मैं काफ़ी समय से इस तालाब के किनारे जीवन व्यतीत कर रहा हूं। आज यहां से दो मछुआरे गुज़र रहे थे। जब उनकी नज़र मछलियों से भरे हुए इस तालाब पर पड़ी तो उन्होंने आपस में कहा कि दो तीन दिन के बाद, दूसरे तालाब की मछलियों को पकड़ने के बाद यहां आएंगे और फिर यहां की भी सारी मछलियों को पकड़ कर ले जाएंगे।
केकड़े ने यह ख़बर मछलियों तक पहुंचा दी और वे सब की सब घबरा कर उससे पूछने लगीं कि अब हम क्या करें? हम इस तालाब से कैसे बाहर निकलें? फिर उन्होंने कहा कि हम स्वयं तो तालाब से बाहर नहीं जा सकते केवल बगला ही है जो इस संबंध में हमारी मदद कर सकता है अतः हमें उसके पास चलना चाहिए। सारी मछलियां केकड़े के साथ तालाब के किनारे पहुंचीं ताकि बगले से परामर्श कर सकें। उसने जैसे ही मछलियों को देखा तो बहुत प्रसन्न हो गया, वह समझ गया कि उसकी चाल, सफल हो रही है। मछलियों ने उससे पूछा कि तुम्हारे विचार में वे मछुआरे कितने दिनों में लौटेंगे? बगले ने अपने परों को समेटते हुए कहा कि मुझे ठीक-ठीक तो पता नहीं है किंतु जैसा मैंने सुना है उसके अनुसार वे एक दो दिन में वापस लौटेंगे। मछलियों ने उससे पूछा कि क्या तुम हमारी सहायता कर सकते हो? बगले ने कहा कि क्यों नहीं, मैं अवश्य ही तुम्हारी मदद करूंगा। हम भले ही एक दूसरे के शत्रु हैं किंतु संकट के समय हमें एक दूसरे की सहायता करनी चाहिए। यहां से थोड़ी दूर एक तालाब है जहां तक कोई भी मछुआरा नहीं पहुंच सकता किंतु चूंकि मैं बहुत बूढ़ा और कमज़ोर हो चुका हूं इस लिए तुम सब को एक साथ लेकर नहीं जा सकता, इसमें एक दो दिन का समय लगेगा। मछलियों ने उसकी बात स्वीकार कर ली। बगले ने अपना काम आरंभ किया। वह हर दिन दो बार में कुछ मछलियों को अपने साथ लेकर जाता और थोड़ी दूर पहुंच कर उन्हें खा जाता। इस प्रकार वह कई दिनों तक मछलियों से अपना पेट भरता रहा।
कुछ दिन के बाद केकड़े ने उससे कहा कि मैं भी वह तालाब देखना चाहता हूं और वहां की मछलियों की प्रसन्नता के बारे में यहां की मछलियों को सूचित करना चाहता हूं। बगले ने दिल में सोचा कि केकड़ा मछलियों की ओर से चिंतित है और संभव है कि दूसरी मछलियों को भी मुझ पर शक हो जाए। बेहतर होगा कि इसे भी अन्य मछलियों के पास पहुंचा दूं ताकि मुझे सदा के लिए इससे मुक्ति मिल जाए। यह सोच कर उसने केकड़े से कहाः बड़ी अच्छी बात है। आओ मेरी पीठ पर बैठ जाओ ताकि मैं तुम्हें वहां पहुंचा दूं। बहुत अधिक समय नहीं लगेगा, हम लोग जल्द ही लौट आएंगे। केकड़ा उसकी पीठ पर बैठ गया और बगला हवा में उड़ने लगा। वह चाहता था कि केकड़े को वहां से दूर ले जाकर कहीं एकांत में गिरा दे किंतु चतुर केकड़े ने जब टीले के नीचे मछलियों के कांटे पड़े हुए देखे तो वह पूरी बात समझ गया। उसे पता चल गया कि केकड़े ने मछलियों को धोखा दिया है और उन्हें सुरक्षित स्थान पर पहुंचाने के बजाए अपने पेट के अंदर पहुंचा दिया है। उसे यह भी समझ में आ गया कि स्वयं उसका जीवन भी ख़तरे में है अतः उसने बगले से बदला लेने की ठानी और उसकी गर्दन से चिमट गया और अपने कड़े पंजे, बगले की गर्दन में गाड़ दिए। बगला फड़फड़ाने लगा और थोड़ी ही देर में उसका दम घुट गया और वह ज़मीन पर गिर पड़ा। केकड़े ने बगले के मौत की ओर से निश्चिंत होने के बाद उसकी गर्दन छोड़ी और बड़ी तेज़ी से मछलियों के पास वापस आया और उन्हें बगले की धूर्तता तथा उसकी मौत की सूचना दी। मछलियां, अपनी साथियों की मौत से बहुत दुखी हुईं किंतु उन्हें यह सीख भी मिल गई कि शत्रु की बात पर भरोसा नहीं करना चाहिए और कभी भी उससे भलाई की आशा नहीं रखनी चाहिए।