Apr २४, २०१६ १४:४१ Asia/Kolkata
  • कोई भी महंगाई बिना तर्क के नहीं होती

कोई भी महंगाई बिना तर्क के नहीं होती और कोई भी सस्ताई अकारण नहीं होती।

कहते हैं कि एक व्यापारी था जिसके एक ही आयु के दो सेवक थे। दोनों सेवक पांच साल से उसके पास काम कर रहे थे किंतु वह एक सेवक को दूसरे सेवक की दुगनी तनख़्वाह देता था। कम तनख़्वाह वाला सेवक उस व्यापारी से प्रेम करता था किंतु उसे अपनी तनख़्वाह कम होने का दुख भी था। एक व्यापारिक यात्रा में व्यापारी अपने दोनों सेवकों के साथ जा रहा था। एक बार अकेला देखकर कम तनख़्वाह वाले सेवक ने बात शुरू की और कहने लगा कि आप मुझे जो कुछ भी देते हैं मैं उस पर ईश्वर का आभार व्यक्त करता हूं किंतु मैं यह पूछना चाहता हूं कि आप दूसरे सेवक को दुगनी तनख़्वाह क्यों देते हैं। 

 

सौदागर मुसकुराया और कहने लगा कि तुम निश्चिंत रहो, कि कोई भी महंगाई बिना तर्क के नहीं होती और कोई भी सस्ताई अकारण नहीं होती। तुम थोड़ी प्रतीक्षा करो! मैं किसी उचित अवसर पर तुम्हें इसका तर्क समझाउंगा। दो तीन दिन बीत गए। एक दिन सौदागर और सेवक दस्तरख़ान पर बैठे खाना खा रहे थे कि अचानक किसी कारवां की आहट सुनाई दी। सौदागर के पास बड़ी मात्रा में सामान था और वो कोई ख़रीदार ढूंढ रहा था उसने अपने सेवक से कहा कि मुझे आशा है कि इस कारंवा में कुछ ख़रीदार मिल जाएंगे।

 

मैं चाहता हूं कि जितनी जल्दी हो सके सामान बिक जाए और हम घर लौट जाएं। उसने अपने सेवकों से कहा कि तुममें से एक जाए और कारवां के लोगों से मिलकर देखे कि कोई ख़रीदार है या नहीं। कम तनख़्वाह पाने वाले सेवक ने अपनी दक्षता सिद्ध करने के लिए कहा कि मैं जाकर देखता हूं। वह गया और थोड़ी देर बाद लौटकर आ गया और कहने लगा कि कारवां तो है किंतु उनमें कोई भी ख़रीदार नहीं लगता। सौदागर ने दूसरे सेवक से कहा कि ज़रा तुम जाकर देखो। वह सेवक उठ कर चला गया। उसे लौटने में देर हुई। कम तनख़्वाह पाने वाला सेवक मन ही मन में खुश होने लगा कि यह कितना मूर्ख है कि लौटने में इतनी देर लगा रहा है किंतु उसने सौदागर से कुछ कहा नहीं। कुछ देर और गुज़र जाने के बाद सेवक लौट कर आया। सौदागर ने पूछा कि क्या हुआ? उसने उत्तर दिया कि इस कारवां में सौ से अधिक ऊंट थे, पैंतीस ख़च्चर थे। एक सौ पच्चीस जानवरों की पीठ पर सामान लदा था और दस की पीठ पर कारंवा के मालिक बैठे हुए थे। उनके सामान में कपड़े, बादाम और अखरोट थे। कारवां जल्दी में था, तेज़ी से आगे बढ़ रहा था ताकि रात होने से पहले सराए तक पहुंच जाए कि कहीं लुटेरों का सामना न हो जाए। कारवां दो तीन दिन उस सराय में रुकेगा और वहां से मसाला, रेशम, ऊन और रूई ख़रीदेगा। मैंने उनसे कहा कि हमारे पास रूई और रेशम है उन लोगों ने कल सुबह हमें सराए में सामान लेकर बुलाया है।

 

 

सौदागर ने उसे शाबाशी दी और कहने लगा कि तुमने बड़ी मूल्यवान जानकारियां प्राप्त कीं। अच्छा यह बताओ कि तुमने मसाले और ऊन के मूल्य के बारे में तो कुछ नहीं बताया है? सेवक ने उत्तर दिया कि नहीं, मैंने मूल्य का मामला आप पर छोड़ दिया। सौदागर ने फिर उसे शाबाशी दी। सौदागर ने कहा कि लो यह पैसे और कल की यात्रा के लिए खाने पीने का सामान ख़रीद लाओ। कल हमें सराय तक पहुंचकर अपना सामान बेचना है। जब वह सेवक चला गया तो सौदागर ने कम तनख़्वाह वाले सेवक से कहा कि अब तुम समझे कि मैं उसे दुगनी तनख़्वाह क्यों देता हूं।

इस घटना के बाद से लोग जब किसी महंगी चीज़ को तर्क संगत ठहराना चाहते हैं तो कहते हैं कि हीच गेरानी बी हिकमत नीस्त, हीच अरज़ानी बी इल्लत नीस्त।

अर्थात कोई भी महंगाई बिना तर्क के नहीं होती और कोई भी सस्ताई अकारण नहीं होती।