सफ़ेद पक्षी-४
महान ईश्वर ने उस राजा को एक बेटा प्रदान किया जिसके कोई संतान नहीं हो रही थी परंतु उस राजा का एक मंत्री बड़ा दुष्ट था।
उसने राजा की हत्या कर दी और स्वयं राजा बन बैठा और उसने आदेश दिया कि उसके बेटे की भी हत्या कर दी जाये। उसके कारिन्दों ने रानी की हत्या कर दी परंतु उसके बच्चे को यह समझकर छोड़ दिया था कि वह पत्थर से टकरा कर कहीं मर गया होगा जबकि रानी ने बच्चे को पहाड़ी के एक दर्रे में डाल दिया था। बच्चा एक शेर के पास बड़ा हुआ यहां तक कि एक दिन उसका चाचा एक गुट के साथ दुष्ट मंत्री से मुकाबले के लिए जा रहा था कि रास्ते में उसे राजा अर्थात अपने भाई का बेटा मिल गया और उसने उसका नाम शेरज़ाद रखा। अंततः शेरज़ाद और उसके चाचा को दुष्ट मंत्री से लड़ाई में सफलता मिली और शेरज़ाद ने राजसिंहासन अपने चाचा के हवाले कर दिया। हमने पिछले कार्यक्रम में यह बताया था कि उसके चाचा के दो बेटे थे और दोनों शेरज़ाद से ईर्ष्या करते थे। राजा ने यह निर्धारित करने के लिए कि इन सबमें सबसे साहसी व बहादुर कौन है, कहा कि तीनों में से हर एक उसके लिए वह चीज़ लाये जिसे उसने कभी नहीं देखा है। पहला लड़का गया और वह राजा के लिए लाल लेकर आया परंतु वह समझ गया कि उसके बाप के पास तो पहले से ही एक कमरा है जो लाल से भरा है।
दूसरा बेटा सोने का फल लेकर आया और उसका ध्यान इस ओर गया कि उसके पिता के पास तो पहले से ही एक कमरा है जो इस प्रकार के फलों से भरा पड़ा है। जब शेरज़ाद की बारी आई तो वह राजा का घोड़ा लेकर यात्रा पर निकल पड़ा। रास्ते में पहले तो उसे ऐसा चेराग़ मिला जो तेल के बिना जलता था। उस चेराग़ पर लिखा हुआ था कि इस प्रकार का एक दूसरा चेराग़ भी है और शेरज़ाद ने उस चेराग़ को पाने के लिए अपनी यात्रा जारी रखी यहां तक कि वह चेराग़ उसे मिल गया। चेराग़ के मालिक ने कहा कि वह उस समय शेरज़ाद को चेराग़ देगा जब वह उसके लिए दैत्यों के दुर्ग से कबूतर का एक जोड़ा लेकर आये। सफेद पक्षी के मार्गदर्शन से शेरज़ाद कबूतरों तक पहुंच गया। सफेद पक्षी ने शेरज़ाद से कबूतरों को अपने साथ ले जाने से मना किया था परंतु उसके बावजूद वह कबूतरों को अपने साथ ले जाने के प्रयास में पड़ गया जिसके कारण दैत्यों ने उसे बंदी बना लिया। दैत्यों ने जब शेरज़ाद की कहानी सुनी तो उन्होंने उससे कहा अगर शेरज़ाद पास के दुर्ग से उनके लिए अंगूर की एक टोकरी ला दे तो वे उसे कबूतर की एक जोड़ी ले जाने देंगे।
शेरज़ाद घोड़े पर बैठकर दैत्यों के पास के दुर्ग की ओर चल पड़ा यहां तक कि वह दैत्यों के दुर्ग तक पहुंच गया। वह घोड़े से उतरा और उसने पेड़ के पीछे छिपना चाहा कि उसे एक आवाज़ सुनाई दी। वह आवाज़ की ओर पलट कर गया तो देखा कि वही सफ़ेद पक्षी उसके सिर के ऊपर उड़ रहा है। उस पक्षी ने कहा शेरज़ाद तुमने मेरी बात नहीं सुनी और मुसीबत में फंस गये। इस बार बड़े ध्यान से मेरी बात सुनो। मैं तुमसे कह रहा हूं कि लालच मत करना और एक टोकरी के स्थान पर दो टोकरी अंगूर मत ले लेना। शेरज़ाद ने धैर्य किया यहां तक कि आधी रात हो गयी। उसके बाद वह दुर्ग की दीवार तक गया और रस्सी फेंक कर वह दीवार के उस पार गया और सीने के बल चल कर वह अंगूर के भंडार की ओर गया। भंडार का द्वार अंगूरों की टोकरी से भरा पड़ा था। थोड़ा उसने सोचा और स्वयं से कहा छोड़ो थोड़ा खा लूं फिर एक टोकरी अंगूर ले चलूंगा। एक, दो, तीन, चार और पांच टोकरी अंगूर वह खा गया परंतु जैसे ही वह पांचवीं टोकरी के अंगूर का अंतिम गुच्छा उठाने के लिए हाथ बढ़ाया वह टोकरी दोबारा अंगूर से भर गयी। शेरज़ाद ने अपनी आंखों से जो देखा उसे विश्वास नहीं आ रहा था। जब उसने अंगूर की दूसरी टोकरी सामने खींची तो वह भी अंगूर से भर गयी। शेरज़ाद यह दृश्य देखकर हतप्रभ रह गया। अंत में उसने ले जाने के लिए अंगूर की एक टोकरी किन्तु स्वयं से कहा अब मैं इतनी दूर आया हूं तो अपने चाचा के लिए भी इन स्वादिष्ट अंगूरों की एक टोकरी लेता चलूं। उसने लालच की और अंगूर की दूसरी टोकरी भी उठाने के लिए हाथ बढाया परंतु जैसे ही उसका हाथ अंगूर की दूसरी टोकरी पर पड़ा अचानक समस्त टोकरियों से चीखने की आवाज़ निकली। आवाज़ निकलते देर नहीं हुई थी कि दैत्य आ गये और उन्होंने शेरज़ाद को पकड़ लिया। इस बार भी उसने अपनी समस्त आपबीती दैत्यों को सुनाई।
उन दैत्यों का जो मुखिया था वह बड़ा हट्टा कट्टा था उसने शेरज़ाद से कहा यहीं पास में सफेद दैत्य रहता है और उसके पास बड़ी सुन्दर लड़की है। मैं उस लड़की का प्रेमी हूं और अगर तुम जाओ और उस लड़की को ले आओ तो मैं तुम्हें एक टोकरी अंगूर ले जाने दूंगा” शेरज़ाद स्वयं को बुरा भला कहते हुए घोड़े पर सवार हुआ और वह सफेद दैत्य के दुर्ग की ओर चल पड़ा। सफेद दैत्य के दुर्ग के पास पहुंचने में कुछ ही कदम की दूरी बाक़ी थी कि सफेद पक्षी दोबारा उसके सिर पर उड़ता हुआ आया और कहा हे लालची इंसान तू दोबारा मौत की तरफ जा रहा है। फिर भी मेरी बात ध्यान से सुन! सफेद दैत्य की लड़की अभी सात दिवसीय नींद में है। वह हर महीने सात दिन सोती है और इन सात दिनों में उसके गेसूओं को चार कीलों में बांध दिया जाता है। यह संभव नहीं है कि तुम उसे खुल सको मगर यह कि तुम सफेद दैत्य के अस्तबल में जाओ। उसके पास एक घोड़ा है जो ४४ कीलों में बंधा है और कोई पक्षी भी उसके निकट नहीं उड़ सकता। तुम्हें उस घोड़े को खोलना और उस पर सवार होना होगा उस समय शायद तुम ज़मीन से दैत्य की लड़की को उठा सको। अगर तुम पहली बार में उसे खोल नहीं सके तो घुटने तक पत्थर हो जाओगे और अगर दूसरी बार नहीं खोल सके तो कमर तक पत्थर हो जाओगे और अगर तीसरी बार न खोल सके तो तुम सिर से पैर तक पत्थर हो जाओगे और वहीं पर हमेशा रहोगे”
शेरज़ाद चलता चला गया यहां तक कि वह सफेद दैत्य के दुर्ग तक पहुंच गया और अविलंब वह अस्तबल में गया। जैसाकि सफेद पक्षी ने कहा था शेरज़ाद ने वैसा ही अस्तबल में एक बंधा हुआ घोड़ा देखा जो अजगरों की भांति है। शेरज़ाद ने स्वयं को तैयार किया और बाज़ की भांति उछल कर घोड़े की पीठ पर जा बैठा और उसकी लगाम को अपने हाथ में ले लिया और अपनी तलवार को न्याम से बाहर निकाल लिया और बंधनों को उससे काट डाला। घोड़े ने जब देखा कि सारे बंधन काट दिये गये हैं तो उसने सवार को ज़मीन पर पटकना चाहा इसके लिए वह बहुत उछला कूदा और चाहा कि शेरज़ाद को ज़मीन पर पटक दे परंतु उसका कोई लाभ नहीं हुआ और घोड़ा समझ गया कि यह सवार दूसरे सवारों से भिन्न है। शेरज़ाद घोड़े को दैत्य की लड़की की ओर लेकर चला ताकि उस तक पहुंच सके।
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