Jul २७, २०२० १६:११ Asia/Kolkata

हमने आपको उस क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति के बारे में बताया जहां बैतुल मुक़द्दस सैन्य अभियान अंजाम पाया था।

हमने यह बताया कि ईरानी सेना के मुक़ाबले में इराक़ की बासी सेना के पास 41 बक्तर बंद वाहिनी, 38 मेकनाइज़्ड वाहिनी कि इनमें से हर एक के पास 34 टैंक वाहन थे। इसी तरह इराक़ी सेना के पास 40 पैदल लड़ने वाली वाहिनी, मरूस्थल में इस्तेमाल होने वाली तोपों के साथ 30 वाहिनी थीं। ये सबके सब रणक्षेत्र में मौजूद थीं। कुल मिलाकर बासी सेना के पास बैतुल मुक़द्दस अभियान के समय लगभग 2700 टैंक और 40 हज़ार पैदल सैनिक और 500 तोपें थीं।

इराक़ी सेना 8 महीने के भीतर ईरान से तीन सैन्य अभियानों में हार का मज़ा चख चुकी थी और इन तीनों अभियान में अपने अतिग्रहित इलाक़ों से पीछे हटने पर मजबूर हुयी थी। अब इराक़ी सेना ख़ुर्रमशहर तथा अहवाज़ के अतिग्रहित इलाक़ों की आज़ादी के अभियान का इंतेज़ार कर रही थी। यही वजह थी कि इराक़ के बासी शासन के पूर्वी व पश्चिमी समर्थक और क्षेत्र के अरब देश फ़त्हुल मुबीन अभियान के बाद तुरंत बाद इराक़ की सैन्य व वित्तीय मदद तथा सद्दाम की हारी हुयी सैन्य इकाइयों को फिर से संगठित करने में लग गए। लेकिन इराक़ी सेना को ईरानी सेना द्वारा ख़ुर्रमशहर की आज़ादी के अभियान के समय की भनक भी न लग सकी।

बैतुल मुक़द्दस अभियान में ईरानी फ़ोर्सेज़ की तय्यारी इस तरह थी। इस्लमी क्रान्ति संरक्षक बल की थल सेना की 85 से 95 वाहिनी क्षेत्र में मौजूद थी जिनकी संख्या अभियान शुरु होने तक 100 तक पहुंच गयी थी। आईआरजीसी के पास 12 मेकनाइज़्ड और बक्तरबंद वाहिनी थी और उसकी कुल वाहिनी की तादाद 112 थी। ईरान की थल सेना की 24 मेकनाइज़्ड व बक्तरबंद वाहिनी और 21 पैदल लड़ने वाली वाहिनी ने बैतुल मुक़द्दस अभियान में भाग लिया था। इस तरह ईरानी सेना और आईआरजीसी कुल वाहिनियों की संख्या 157 थी। तादाद की दृष्टि से ईरानी सैनिक इराक़ी सैनिकों की तुलना में अधिक थे लेकिन इराक़ी सेना सैन्य उपकरणों की दृष्टि से बेहतर पोज़ीशन में थी। 2700 टैंक और 500 तोपों का किसी अभियान में शामिल होना इराक़ से ईरान की ग़ैर बराबर की जंग थी। इसके साथ ही इराक़ की पूर्वी और पश्चिमी ब्लॉक आधुनिक सैन्य उपकरणों से मदद कर रहे थे जबकि ईरान को पूरब और पश्चिम की दो बड़ी ताक़तों की पाबंदियों का सामना था। ईरान के सशस्त्र बल को हल्के हथियारों की आपूर्ति में भी मुश्किलों का सामना था।    

फ़त्हुल मुबीन अभियान के बाद पूर्व सोवियत संघ ने सद्दाम शासन की सेना को 2 मिग 25 से लैस किया। फ़ाइटर जेट मिग-25 मिलने से इराक़ी सेना की वायु क्षमता बहुत बढ़ गयी थी क्योंकि ये फ़ाइटर जेट ईरान की एंटी एयरक्राफ़्ट मीज़ाईल की पहुंच से दूर थे। इराक़ की सेना के मुक़बाले में ईरानी सेना की श्रेष्ठता उसकी वीरता, बलिदान और लड़ने का जोश था। इसके साथ ही सैन्य अभियान की तय्यारी की  दुश्मन को भनक न लगने देना भी एक अहम विशेषता थी। इस उसूल के तहत अहवाज़-ख़ुर्रमशहर मार्ग के बजाए पानी से भरी कारून नदी को पार करने का विकल्प चुना गया। ईरानी सेना और आईआरजीसी के बीच अनेक बैठकों के बाद यह तय पाया कि दुश्मन को तय्यारी की भनक न लगने पाए इसके लिए सबसे अच्छा विकल्प कारून नदी को पार करना था क्योंकि दुश्मन इस बात की ओर ध्यान भी नहीं गया था कि ईरानी सेना कारून नदी को पार कर सकेगी। अभियान की योजना तय्यार होने के बाद तीन छावनियां क़ुद्स, फ़त्ह और नस्र गठित हुयी जबकि केन्द्रीय छावनी कर्बला पर सारे अभियान के संचालन की ज़िम्मेदारी थी। क़ुद्स छावनी को अभियान के उत्तरी छोर से जहां कर्ख़े नदी थी, दुश्मन पर हमला करने और उसे वहीं उलझाए रखने की ज़िम्मेदारी थी ताकि दूसरी दो छावनियों के सिपाही कारून नदी को कम से कम समस्या के साथ पार कर जाएं। इस मोर्चे पर क़ुद्स को इराक़ की 5 मेकनाइज़्ड और 6 बक्तर बंद सैन्य टुकड़ियों का सामना था। इराक़ी सेना द्वारा खड़ी की गयी रुकावटों के मद्देनज़र दुश्मन के मोर्चे पर सेंध लगाना आसान काम नहीं था। फ़त्ह छावनी को केन्द्रीय भाग की ज़िम्मेदारी सौंपी गयी थी। उसे कारून नदी पार करके 15 से 20 किलोमीटर दूर अहवाज़- ख़ुर्रमशहर मार्ग पर पहुंचना था। कारून नदी के तट से अहवाज़-ख़ुर्रमशहर मार्ग तक की ज़मीन समतल थी इसलिए इस बात की संभावना थी कि अगर दुश्मन जवाबी कार्यवाही करता तो ईरानी सैनिकों को भारी नुक़सान पहुंचता। इसलिए फ़त्ह छावनी के सैनिकों को अभियान की पहली रात को 15 से 20 किलोमीटर पैदल रास्ता तय करके मार्ग के पीछे पोज़ीशन लेनी थी।

फ़त्ह छावनी के सैनिकों को जिस जगह अभियान चलाना था उससे नीचे वाले भाग में नस्र छावनी को कार्यवाही करनी थी। नस्र के सैनिकों को भी कारून नदी पार करके अंतर्राष्ट्रीय सीमा तक पहुंचने के लिए दुश्मन से लड़ना था। इस अभियान की सफलता का राज़ बासी सेना का इस अभियान की भनक न लगना और इराक़ी सेना के मज़बूत व कमज़ोर बिन्दुओं की इस अभियान के योजनाकारों को जानकारी थी। इसी दौरान फ़िलिस्तीनी की जनता को ज़ायोनी शासन के हमलों का सामना था। इसी वजह से कर्बला छावनी के कमान्डर ने अभियान का नाम बैतुल मुक़द्दस और अभियान का कोड सा अली इब्ने अबी तालिब रखा था।

अभियान का पहला चरण 30 अप्रैल 1982 को रात साढ़े बारह बजे कारून नदी के पश्चिमी भाग में शुरु हुआ। अभियान शुरु होने के 25 मिनट बाद कर्बला 25वीं ब्रिगेड पहली इकाई थी जिसकी बासी दुश्मन से टक्कर हुयी। सुबह तड़के 3 बजे तक सभी इकाइयां अपने अपने क्षेत्रों में इराक़ी सैनिकों से लड़ रही थीं। क़ुद्स छावनी के सैनिक अभियान के उत्तरी छोर पर 5 जगहों पर दुश्मन से लड़ रहे थे। फ़त्ह छावनी के सैनिक कारून नदी पार करके, नदी के पश्चिमी भाग में दुश्मन को ध्वस्त करते हुए तेज़ी से अहवाज़-ख़ुर्रमशहर मार्ग पर पहुंचे। नस्र छावनी के सैनिकों की भी अभियान शुरु होते ही दुश्मन की सेना से झड़प शुरु हुयी। अहवाज़-ख़ुर्रमशहर मार्ग के किनारे की ज़मीन के दलदली होने और इस क्षेत्र में इराक़ी सेना की 8 मेकनाइज़्ड और 6 बक्तर बंद वाहिनियों की तैनाती की वजह से नस्र छावनी के सैनिक निर्धारित समय पर अपने लक्ष्य तक नहीं पहुंच सके और जंग सुबह तक चलती रही। इस मोर्चे के कुछ भाग पर ईरानी सेना को दोपहर 3 बजे प्रतिरोध करना और मजबूर होकर कुछ हद तक पीछे हटना पड़ा।       

बैतुल मुक़द्दस अभियान के मुख्य रणनैतिककारों में शामिल कमान्डर हसन बाक़ेरी ने बाद में अभियान के पहले चरण के बारे में कहा थाः हमारे साथी उसी रात अंधेरे में अहवाज़-ख़ुर्रमशहर मार्ग को पार करने में सफल हुए और वहां इराक़ की तीसरी सैन्य टुकड़ी से टकराए और उसे पचास फ़ीसद से ज़्यादा नुक़सान पहुंचाया। यह सैन्य दृष्टि से बहुत अहम है। शायद सैन्य मामलों के टीकाकार भी ऐसे अभियान की समीक्षा न कर पाएं।

इराक़ी कर्नल रज़ा बसरी भी बैतुल मुक़द्दस अभियान के बारे में अपनी याद में लिखता हैः हमारे तोपख़ाने कारून नदी के किनारों पर बड़ी तीव्रता से गोले बरसा रहे थे। ईरानियों ने अपने सैन्य उपकरण बहुत तेज़ी से कारून नदी से पार कराए और इसी बात का हमारे सैनिकों के दिल में डर बैठ गया। इस तरह ईरानी सैनिकों ने इराक़ी सैनिकों के ख़िलाफ़ 6 दिन तक भीषण लड़ाई के बाद अभियान का पहला चरण सफलतापूर्वक पूरा किया और दूसरा चरण ख़ुर्रमशहर की ओर शुरु हो गया।

टैग्स