Sep १२, २०२० १४:४८ Asia/Kolkata

बहुत पुरानी बात नहीं है कि जब घर और परिवार में मां बाप, भाई बहन, दादा दादी सब मिलकर रहते थे और ख़ुशियों से थरा जीवन गुज़ारते थे।

लोग बड़े संतुष्ट रहते थे। एक साथ मिलकर गुज़ारे जाने वाले जीवन में एक दूसरे से जुड़े हुए थे। यह आम धारणा थी की परिवारिक जीवन का मतलब लोगों का एक साथ रहना और दुख सूख में एक दूसरे का भरपूर साथ देखा देना। यदि कभी कोई समस्या पेश आती थी तो पूरा परिवार और परिवार के सारे सदस्य मिलकर उसका सामना करते थे। परिवार में एक दूसरे का साथ निभाना है। हमने यह चीज़ अपने माता पिता और दादा दादी से सीखी है। उनका बर्ताव और व्यवहार हमारे लिए विशेष शांति व सुकून का स्रोत होता था।

आज अगर देखा जाए तो बहुत तेज़ी से बदलाव आया है, आर्थिक बदलाव भी है, सामाजिक बदलाव भी है तकनीक भी लगातार बदल रही है और वैज्ञानिक प्रगति भी हो रही है।हर इंसान अपने आप में अनोखा और अलग प्रकार का होता है वह ख़ुद को दूसरों से अलग महसूस करता है मगर हात यही है कि बुढ़ापा उसे भी बकर घेर लेता है।

इस्लामी समाज इस्लाम की समृद्ध संस्कृति से सुसज्जित है। इसमें बड़ों विशेष रूप से बूढ़ों का बहुत अधिक सम्मान करने पर ज़ोर दिया गया है।

परिवार में जो बूढ़े हैं वह मां बाप या दादा दादी होते हैं। परिवार के लोगों को सलाह दी गई है कि उनका बहुत अधिक ख़याल रखें रिवायतों में इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि उनकी ज़रूरतों का ही ध्यान रखा जाए और साथ ही मानसिक रूप से भी उन्हें बहुत संतुष्ट रखा जाए। यहां तक कहा गया है कि दुआ मांगों तो उनके लिए हमेशा अच्छी दुआएं करो।

पैग़म्बरे इस्लाम का कथन है कि जो भी हमारे बड़ों का सम्मान न करे और छोटों पर दया न करे व हममें से नहीं है।

अनुसंधानों से पता चलता है कि यदि बुज़ुर्ग को वृद्धाश्रम आदि के बजाए यदि घर में परिवार के साथ रखा जाए तो बुज़ुर्ग का स्वास्थ्य काफ़ी अच्छा रहता है। एक अनुसंधानिक टीम ने बूढ़ों के बीच प्रसन्नता के स्तर के बारे में अनुसंधान किया और बूढ़ापे की उम्र को पहुंच चुके २०० लोगों से बात की। इनमें १०० लोग वह थे जो वृद्धाश्रम में रखे गए थे और १०० वह बुज़ुर्ग थे जो अपने परिवार के साथ जीवन व्यतीत करते थे। अध्ययन से पता चला कि घर में परिवार के सदस्यों के बीच रहने वाले बुज़ुर्ग के भीतर हर्ष और ख़ुशी का स्तर वृद्धाश्रम में रहने वाले बुज़ुर्गों से काफ़ी ऊंचा था। वृद्धाश्रम में रहने वाले बुज़ुर्गों को स्वास्थ्य गिरने और ख़ुशी का स्तर नीचे आने की आशंका का सामना था।

ईश्वर ने अंसान से कहा है कि मां बाप से अच्छा बर्ताव करे। यदि उनमें से कोई एक या दोनों तुम्हारे सामने बूढ़े हो जाएं तो उनका कभी भी अपमान न करो उन पर चीख़ो नहीं उनसे बहुत नर्मी र दयालुता के साथ बात करो।

यहां यह पाठ मिलता है कि अच्छे व्यवहार से बहुत से वह काम सरलता से और कम समय में हो जाते हैं जो कम हालात में कठिनाई से हो पाते हैं और उनमें समय भी लगता है। शिष्टाचार और संस्कार में बड़ा असर होता है। एक आम इंसान ही नहीं बल्कि यहां तक कहा जाता है कि शिष्टचार से दुशमनी को भी दूर किया जा सकता है। इस प्रकार की कहानियां आपको जगह जगह मिलेंगी कि दो पुराने शत्रु अच्छे शिष्टाचार के कारण एक दूसरे के दोस्त बन गए और दुशमनी दोस्ती में बदल गई।

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