Oct २७, २०२० १८:१६ Asia/Kolkata

दोस्तो आप जानते हैं कि कई पिछले कई कार्यक्रमों से हम पंद्रहवीं शताब्दी ईसवी में ईरान के एक अत्यंत मशहूर शायर, लेखक और विचारक नूरुद्दीन अब्दुर्रहमान जामी के बारे में बात करते आ रहे हैं। हम उनकी जीवनी, उनकी किताबों और उनके विचारों पर चर्चा कर रहे हैं।

दोस्तो हमने बताया कि जामी का जन्म ख़ुरासान प्रांत के जाम ज़िले में हुआ था। उनके पूर्वज इस्फ़हान के रहने वाले थे जो जाम आ कर बस गए थे। जामी के पिता, उनके जन्म से पहले पूरे परिवार के साथ हेरात चले गए और फिर वहीं रहने लगे। नूरुद्दीन अब्दुर्रहमान जामी ने अपनी शिक्षा का आरंभिक समय, जाम के ख़र्गर्द इलाक़े में बिताया ज उस समय हेरात के अधीन क्षेत्रों में से एक था। उन्होंने अपने पिता से फ़ारसी व अरबी की आरंभिक किताबें पढ़ीं। इसके बाद जामी ने हेरात और समरक़ंद में में शिक्षा हासिल की जो उस काल में ज्ञान व साहित्य के सबसे अहम केंद्र माने जाते थे।

नूरुद्दीन अब्दुर्रहमान जामी ने समरक़ंद और हेरात में शिक्षा प्राप्ति के दौरान ही तर्कशास्त्र, गणित, धर्मशास्त्र और साहित्य इत्यादि में ख्याति हासिल कर ली थी। इसके बाद उन्हें सूफ़ीवाद में रुचि पैदा हुई और वे नक़्शबंदी मत से जुड़ गए। अपने अपार ज्ञान व सूफ़ियान रवैये के कारण जामी को, तत्कालीन शासकों के दरबारों में विशेष स्थान हासिल था। ज्ञान, साहित्य व अध्यात्म में अपने उच्च स्थान के कारण वे बुढ़ापे से पहले ही उन सभी क्षेत्रों में मशहूर हो चुके थे जहां फ़ारसी बोली जाती थी। और यह क्षेत्र कोई छोटा भूभाग नहीं था बल्कि उसमानी साम्राज्य से लेकर मध्य एशिया और भारतीय उपमहाद्वीप तक फैला हुआ था। इन सभी क्षेत्रों में जामी का नाम विशेष सम्मान से लिया जाता था।

18 मुहर्रम सन 898 हिजरी क़मरी बराबर सन 1492 ईसवी को 81 साल की उम्र में नूरुद्दीन अब्दुर्रहमान जामी ने इस नश्वर संसाद को विदा कहा और उन्हें ख़ुरासान प्रांत के एक अहम और बड़े शहर हेरात में उनके उस्ताद सादुद्दीन काशग़री के मज़ार के क़रीब दफ़्न किया गया। हेरात में इस समय जामी की क़ब्र को तख़्त मज़ार के नाम से जाना जाता है। पिछले कार्यक्रम में हमने आपको जामी की किताब हफ़्त औरंग के बारे में बताया था। यह किताब जामी की सात मशहूर मसनवियों पर आधारित है। हमने इस किताब की कुछ विशेषताओं का उल्लेख किया था। आज हम इसकी कुछ और विशेषताओं के बारे में आपको बताएंगे।

हफ़्त औरंग में जामी की जो मसनवियां हैं, उनकी एक अहम विशेषता चीज़ों को बयान करने की जामी की अद्भुत शक्ति है। जामी के बारे में शोध करने वालों का कहना है कि जामी, चीज़ों का जिस तरह से वर्णन करते हैं उसमें एक ख़ास मज़ा है। जामी उन शायरों में से हैं जो अपने शेरों के अर्थ पर बहुत अधिक ध्यान देते हैं लेकिन यह चीज़ उन्हें रोचक वर्णन से रोकती नहीं है। अर्थ पर अधिक ध्यान इस बात का कारण बना है कि वे चीज़ों के वर्णन में भी इस बात की ओर से निश्चेत न रहें। यही कारण है कि वे शब्दों का सटीक चयन करते हैं और अपने विचारों को सुंदर शब्दों का चोला पहना कर और शब्दालंकारों व अर्थालंकारों से उनका श्रंगार करके उन्हें एक ख़ास मिठास प्रदान कर देते हैं जो लोगों पर जादू करते हैं।

सलामान व अबसाल, लैली व मजनून और यूसुफ़ व ज़ुलैख़ा जैसी मसनवियों में उनका वर्णन अत्यंत रोचक व दिल में बैठ जाने वाला है। मिसाल के तौर पर जब जामी बुढ़ापे की बात करते हैं तो वृद्धावस्था का वर्णन इतने अच्छे शब्दों में करते हैं सुनने वाले को बुढ़ापे से बिलकुल भी डर नहीं लगता और यह बात उनके गहरे विचारों व भावनाओं की सूचक है। वे, जो स्वयं बुढ़ापे का कटु स्वाद चख चुके हैं, वृद्धावस्था के बारे में ऐसे स्वर में बात करते हैं कि पढ़ने वाला वाह वाह कर उठता है।

जामी की हफ़्त औरंग में एक और उल्लेखनीय बात विषयों व अर्थों का दोहराया जाना है। ईश्वर का अनन्य होना, संसार की नश्वरता, प्रेम, पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम का गुणगान और उनके चमत्कारों का उल्लेख जामी के विचारों का आधार व ध्रुव हैं और इसी लिए उनके शेरों में इन बातों को बार बार देखा जा सकता है। जामी ने सलामान व अबसाल, तोहफ़तुल अहरार, लैली व मजूनन और ख़िरदनामए इस्कंदरी समेत अपनी सभी मसनवियों में ईश्वर के अनन्य होने की बात कही है। ईश्वर के अस्तित्व और उसके अनन्य होने को सिद्ध करने के लिए रचना और रचयिता के संबंध को समझना चाहिए। जामी कहते हैं कि इतने सारे सुंदर व अद्भुत चित्रों को देख कर चित्रकार के अस्तित्व को समझा जा सकता है। उनका कहना है कि सृष्टि की सभी वस्तुएं, अनन्य ईश्वर की तरफ़ इशारा करती हैं। सृष्टि के चित्र, उन छायाओं की तरह हैं जो चमकते हुए सूरज के अस्तित्व की ख़बर देती हैं जो कि एक है और सभी रचनाएं उसके अस्तित्व की निशानी हैं।

नूरुद्दीन अब्दुर्रहमान जामी की किताब हफ़्त औरंग में एक अन्य विषय जिसका बहुत अधिक उल्लेख हुआ है, वह फ़ना फ़िल्लाह या ईश्वर का अस्तित्व में डूब जाना है। फ़ना, ईश्वर की पहचान और सूफ़ीवाद का अंतिम चरण है। जामी, ईश्वर को समुद्र की तरह बताते हैं और कहते हैं कि ईश्वर के खोजी, उस बूंद की तरह हैं जो समुद्र की ओर बढ़ रही है और जब वह बूंद समुद्र तक पहुंच जाती है तो उसका नश्वर अस्तित्व ख़त्म हो जाता है लेकिन वह समुद्र से मिल कर अमर हो जाती है। इस स्थिति में जहां जहां तक उसकी नज़र जाती है उसे सिर्फ़ समुद्र दिखाई देता है। अब वहां मैं, हम, मेरा और हमारा का नामो निशान तक बाक़ी नहीं रहता, जो कुछ है, केवल समुद्र या दूसरे शब्दों में ईश्वर है।

जामी का कहना है कि वही इंसान फ़ना फ़िल्लाह या ईश्वर के अस्तित्व में खो जाने के चरण तक पहुंच सकता है जिसने अपने आपको सांसारिक मोह-माया से मुक्त कर लिया हो। इस चरण में पहुंच कर मनुष्य, उस आदर्श जैसा बन जाता है जो ईश्वर का वांछित है। जामी की मसनवियों विशेष कर सिलसिलतुज़्ज़हब, तोहफ़तुल अहरार, लैली व मजनून और ख़िरदनामए इस्कंदरी में इस तरह के विचार अधिक स्पष्ट रूप से देखे जा सकते हैं। उनके विचार में ईश्वर हमेशा, इंसान के साथ होता है लेकिन उसे एक ऐसे दर्पण की ज़रूरत होती है जिसमें वह प्रतिबिंबित हो सके। इंसानों के दिलों के आईने में ज़ंग लग चुका है और यह ज़ंग, ईश्वर के प्रतिबिंबिन में रुकावट है। इस लिए अगर कोई ईश्वर को देखना चाहता है तो उसके पास अपने दिल के ज़ंग को हटाने के अलावा कोई और रास्ता नहीं है।

जामी के विचारों का एक और बुनियादी ध्रुव, इश्क़ या प्रेम है। उनकी नज़र में हर चीज़ का वास्तविक अर्थ प्यार से ही समझ में आ सकता है और अगर इश्क़ को हटा दिया जाए तो किसी भी चीज़ का सही अर्थ समझ में नहीं आएगा। उनकी नज़र में इश्क़ के बारे में एक अहम बिंदु यह है कि वे नश्वर प्रेम को अनंत प्रेम तक पहुंचने के लिए एक पुल समझते हैं और उनका कहना है कि वास्तविकता के समुद्र तक पहुंचने के लिए इश्क़ की कश्ती में सवार होना अपरिहार्य है। जामी कहते हैं कि जिसने इश्क़ से लाभ नहीं उठाया वह इस संसार में अजनबी और अकेला है।

नूरुद्दीन अब्दुर्रहमान जामी की नज़र में इश्क़ उस अमृत की तरह है जो इंसान को अमर बना देता है। जो दिल, प्रेम के अमृत से तृत्प न हो सके वह सच्चा दिल ही नहीं है और जो आशिक़ न हो, वह इंसान ही नहीं है। इश्क़ की छाया में ही दुनिया की हर चीज़ ने अपना सुंदर वस्त्र ग्रहण किया है। जामी कहते हैं कि इश्क़, सृष्टि का सबसे लोकप्रिय अफ़साना और सबसे अधिक पसंद किया जाने वाला गीत है।

 

 

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