ईरानी संस्कृति और कला-55
हर वह राष्ट्र जिसने इस्लाम को स्वीकार किया उसने एकेश्वर पर आस्था की घोषणा करते हुए यह बात मानी कि हज़रत मुहम्मद (स) ईश्वर के अन्तिम दूत हैं।
राजाओं की तानाशाही और उनके भ्रष्टाचार से तंग आकर ईरानियों ने इस्लाम का स्वागत किया। बहुत ही कम समय में इस्लाम ईरान में फैल गया। इस प्रकार से ईरान में राष्ट्रीय स्तर पर एक नया जीवन आरंभ हुआ। इस्लाम स्वीकार करने के बाद इस बात की आवश्यकता का आभास किया गया कि उपासना के लिए कोई केन्द्र अवश्य होना चाहिए। ईरानी राष्ट्र ने जब इस्लाम स्वीकार किया तो धार्मिक उपासनाओं और धार्मिक आयोजनों को अंजाम देने के लिए जो इमारतें बनवाईं उनके कई नाम दिये गए।
ईरानियों द्वारा इस्लाम धर्म को स्वीकार करने के बारे में ईरानी मामलों के एक अमरीकी विशेषज्ञ आर्थरपोप कहते हैं कि इस्लाम ने ईरानियों को मनोबल दिया जिससे लोगों के बीच इस्लाम के प्रति लगाव और रुझान तेज़ हुआ। इस्लाम ने अपने मानवीय आयाम के दृष्टिगत लोगों के बीच प्रेम की भावना को मज़बूत किया। इस्लाम सबको समान दृष्टि से देखता है और लोगों को सम्मान देता है। इस्लाम स्वीकार करने के बाद ईरान की वास्तुकला में नई शैली का प्रचलन हुआ जो मस्जिद, मदरसे, इमामबाड़े, मज़ार और अन्य धार्मिक इमारतों के रूप में सामने आई।
एतिहासिक प्रमाण इस बात को सिद्ध करते हैं कि उपासना के उद्देश्य से ईरान के नगरों और देहातों में पहली हिजरी शताब्दी में मस्जिदों का निर्माण आरंभ हो चुका था। ईरान की सबसे पुरानी मस्जिद के खण्डहर आज भी मौजूद हैं जो पहली हिजरी शताब्दी के पहले दशक में बनाई गई थी। ईरान में जो धार्मिक इमारतें बनाई गईं उनमें से एक का नाम "तकिया" भी है। इस इमारत को मुहर्रम या आशूर से संबन्धित धार्मिक आयोजन के लिए प्रयोग किया जाता था। इस इमारत को आरंभ में सामान्यतः लोगों को एक स्थान पर एकत्रित करने या सार्वजनिक कार्यक्रमों के आयोजन के लिए बनवाया गया था। सफ़वी शासनकाल और उसके बाद तकिया नामक इमारत की उपयोगितर बदल गई। अब इसे मुहर्रम से संबन्धित कार्यक्रमों से विशेष कर दिया गया। यह परिवर्तन आरंभ में ईरान के काशान तथा क़ज़वीन नामक केन्द्रीय नगरों से आरंभ हुए जो बाद में पूरे ईरान में फैल गए।
क़ाजारी काल में अज़ादारी के मंचन के लिए तकिये का प्रयोग किया जाने लगा। बाद में यह इमारत इसी से विशेष हो गई। यहां पर हम आपको ईरान के कुछ मशहूर "तकियों" की वास्तुकला के बारे में बताएंगे। ईरान के एतिहासिक नगर यज़्द में एक एतिहासिक काम्पलेक्स स्थत है जिसका नाम है "अमीर चख़माक़"। यह इमारत यज़्द नगर के केन्द्र में स्थित है। इस इमारत में मस्जिद, छोटा सा बाज़ार और पानी के दो भण्डार मौजूद हैं। इस इमारत का निर्माण नवीं हिजरी में कराया गया था। इसको यज़्द के तत्कालीन शासक जलालुद्दीन चख़माक़" ने बनवाया था। मस्जिद के उत्तर में एक बड़ा सा मैदान है जो वर्तमान समय में नगर का केन्द्रीय भाग है। इसको आरंभ से ही चख़माक़ चौराहे के नाम से जाना जाता है। इमारत में बने हुए जल भण्डार, अब यज़्द नगर के जल संग्रहालय में बदल चुके हैं। इस काम्प्लेक्स के प्रवेश द्वार पर इमारत के बनने की तारीख और बनाने वाले के नाम का एक शिलालेख लगा हुआ है। यहां पर किया गया टाइल्स का काम, नवीं हिजरी शमसी में टाइल्स के कामों का उत्कृष्ट नमूना है। मस्जिद के सामने लकड़ी से बना खजूर का एक पेड़ रखा हुआ है। एक परंपरा के अनुसार आशूर के दिन नगर के लोग इस पेड़ को उठाकर पूरे नगर में घुमाते हैं और बाद में उसको उसी स्थान पर वापस रख देते हैं।
यज़्द नगर के प्रतीक के रूप में इस इमारत का दृश्य, ईरान की अधिकांश धार्मिक इमारतों की भांति दो ऊंची मीनारे हैं। इसके ऊपर बहुत ही सुन्दर ढंग से टाएल का रंगारंग काम किया गया है। टाएल के इस काम ने बहुत ही आकर्षक दृश्य पैदा कर दिया है। धनुषाकार आर्च बना हुआ है।
ईरान की विख्यात एतिहासिक इमारतों में से एक का नाम "तकिये मुआवेनुल मुल्क" भी है। यह इमारत क़ाजारी काल की है। ईरान की यह एतिहासिक इमारत देश के पश्चिम में स्थित किरमानशाह नगर में मौजूद है। "तकिये मुआवेनुल मुल्क" पुराने नगर के आबशूरान मुहल्ले में है। इसको हुसैन ख़ान के आदेश पर बनाया गया था जो "मोईनुर्रेआया" के नाम से मश्हूर थे। इस इमारत के तीन भाग हैं हुसैनिया, ज़ैनबिया और अब्बासिया। तकिया नामक यह इमारत सड़क से 6 मीटर नीचे बनी है। इसमें प्रविष्ट होने के लिए 17 सीढ़ियां नीचे जाना पड़ता है। प्रवेश के लिए बनाई गई सीढ़ियों के निकट पानी पीने के लिए एक छोटा सा "सक़्क़ाख़ाना" बना हुआ है। सक़्क़ाख़ाना छोटा सा एक एसा स्थान होता है जिसे इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के छोटे भाई हज़रत अब्बास की याद में बनाया जाता है। सामान्यतः सक़्क़ाख़ाने जैसी इमारतें ईरान में बनाई जाती थीं जिनपर हज़रत अब्बास की छवि को उकेरा जाता है। बहुत से लोग इस स्थान पर जाकर मन्नतें-मुरादें मानते हैं और दुआएं करते हैं। इस प्रकार के सक़्क़ाख़ाने आज भी मौजूद हैं।
"तकिये मुआवेनुल मुल्क" के प्रविष्ट द्वार को काशीकारी के काम से इतने सुन्दर ढंग से सजाया गया है कि इसने ईरान में बनाए जाने वाले अन्य तकियों की तुलना में इसे सबसे अलग बना दिया है। "मुआवेनुल मुल्क हुसैनिये" का प्रांगण छोटा है जिसके चारों ओर दो मंज़िला कमरे बने हुए हैं। इसमें बहुत सी ताक़ भी बनी हुई हैं। इन ताक़ों के भीतर भी टाइल्स का काम किया गया है। इन टाइल्स पर ईरानी राजाओं तथा अज़ादारी के चित्र बने हुए हैं। इसके कुछ भागों पर इमारत के बनाए जाने की तिथि और उसकी प्रशंसा में शेर लिखे गए हैं। जिस कवि ने यह शेर लिखे हैं उनका नाम है, वालेह किरमानशाही।
ईरान का सबसे प्रसिद्ध तकिया, दौलत नामक तकिया है। इसको नासिरुद्दीन शाह के आदेश पर सन 1867 में बनवाया गया था। इसके निर्माण में बहुत अधिक धन तथा 5 वर्षों का समय लगा था। जिस काल में दौलत नामक तकिया बनाया गया था उस समय तेहरान में इसी प्रकार की लगभग 45 इमारते थीं। अपनी विशेष वास्तुकला के कारण दौलत तकिया अन्य तकियों से बिल्कुल भिन्न है।
तकियए दौलत, गुलिस्तान महल के दक्षिण पश्चिम में स्थित है। यह शमसुल इमारा तथा मस्जिदे इमाम के सामने बना हुआ है। उस्ताद हुसैनअली महरीन ने इसको बनाने की योजना तैयार की थी। इस समय इस इमारत की कोई भी निशानी बाक़ी नहीं है। अब इसे एतिहासिक प्रमाणों और पुराने चित्रों के आधार पर ही परिचित करवाया जा सकता है। शोधकर्ताओं का मानना है कि तकियए दौलत को कुछ प्राचीन धर्मशालाओं को दृष्टिगत रखकर बनाया गया था। यह इमारत आठ कोणीय थी जिसकी ऊंचाई 24 मीटर थी। इस इमारत के भीतर 20 हज़ार लोगों की क्षमता थी।
इस इमारत के हर माले पर कई ताक़ और छोटे-छोटे कमरे बने हुए हैं। इनमे से कुछ कमरों में दरवाज़े और खिड़कियां बनी हुई हैं। इमारत के बाहरी भाग पर पत्थर और ईंटों का काम किया गया है। इसके प्रवेष द्वार धनुष के आकार के बने हुए हैं। इस इमारत के बीच में एक गोलाकार चबूतरा बना हुआ था जिसकी ऊंचाई एक मीटर थी जबकि उसकी चौड़ाई 20 मीटर बताई जाती है। चबूतरे या प्लेटफार्म के चारों ओर सीढ़िंया बनी हुई थीं। चबूतरे पर ताज़िये का मंचन करने वाले इन्ही सीढ़ियों से प्लेटफार्म तक आया-जाया करते थे। इसी चबूतरे से मिलाकर छह मीटर का एक मार्ग बनवाया गया था जिसके माध्यम से कलाकार घोड़ों पर मंचन के लिए जाया करते थे। तकिये दौलत के तीन प्रवेष द्वार थे। इसके भीतर संगमरमर से बना हुआ एक मिंबर है जिसकी सीढ़ियों की संख्या 20 है। इमारत के केन्द्रीय प्रांगण के चारों ओर हौज़ बने हुए थे जो पानी से भरे रहते थे। रात के समय प्रकाश के लिए इमारत के भीतर शमादान और फ़ानूस लगाए गए थे।
तकियए दौलत में वर्षों तक ताज़िये का मंचन किया जाता रहा किंतु नाटक मंचन की आधुनिक शैली आ जाने और इसके लिए आधुनिक ढंग के हाल बन जाने के बाद इसकी उपयोगिता धीरे-धीरे समाप्त होती चली गई। इस प्रकार बहुत सी समस्याओं के कारण सन 1947 तक तकियए दौलत नामकी इमारत लगभग नष्ट हो चुकी थी किंतु इसके एक बड़े भाग में बाद में बैंक बना दिया गया।