Jan २०, २०२१ १३:२६ Asia/Kolkata
  • जल संकटः दुनिया में पानी की होती कमी,  इस महा संकट से निपटने के लिए हमे क्या करना चाहिए?

दोस्तो आज पूरी दुनिया में किसी पर भी पानी की अहमियत की बात छिपी नहीं है। यहां पर इस बात का उल्लेख आवश्यक है कि पानी की बचत के साथ साथ इसके समाधान पर भी ध्यान देना आवश्यक है। अतीत में यह कल्पना की जाती थी कि दुनिया में पानी के स्रोत असीमित हैं लेकिन आज दुनिया के ज़्यादातर देशों ने पानी के स्रोतों के सीमित होने के विषय को समझ लिया है और उन्होंने पानी बचाव की शैली पर काम करना भी शुरु कर दिया है।

जल संकट ऐसी घटना है जो प्राकृतिक रूप से या मनुष्य द्वारा अचानक या धीरे धीरे अस्तित्व में आती है और इसको दूर करने के लिए आपातकालीन और मूलभूत कार्यवाहियां किए जाने की आवश्यकता है। जल संकट से निपटने के लिए सरकारें और मनुष्य कुछ काम करते हैं ताकि जल संकट के नुक़सानों को कम किया जा सके और सामान्य जीवन को पलटाया जा सके। जल संकट के काल में भी सही जानकारियां संकट के असर को सीमित कर सकती हैं और जल के सही प्रयोग में जनता के भाग लेने के हालात प्रशस्त कर सकती हैं। उदाहरण स्वरूप पूरी दुनिया में जल संकट के आम होने के बाद अमरीका के दो वैज्ञानिकों ने इस वैश्विक समस्या से छुटकारा पाने के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय नुस्ख़ा पेश किया, इन दो विशेषज्ञों ने दुनिया के 80 देशों के 1200 जल विशेषज्ञों की राय ली और जल संकट से निपटने की शैलियों का एलान किया। विशेषज्ञों द्वारा बयान किए गये दृष्टिकोणों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि पानी के प्रयोग की शैली को बदलकर इस संकट को नियंत्रित किया जा सकता है। वे कहते हैं कि सबसे पहले यह समझने की ज़रूरत है कि जल संकट मुंह खोले खड़ा हुआ है और इसके बाद ही जल संकट की समस्या पर नियंत्रण पाया जा सकता है और फिर हमको बड़ी शैलियों पर काम करने की आवश्यकता है। कम पानी का संकट हमारे ग्रह को हमेशा सताता रहता है। मीठे पानी का भंडर निरंतर कम हो रहा है, पानी के बहुत अधिक सिस्टम, जो इकोसिस्टम की रक्षा करते हैं और मानव जनसंख्या की ज़रूरतों को पूरा करते हैं, इस संकट से बुरी तरह प्रभावित हैं। नदियां, झीलें और भूमिगत जलभंडार या तो सूख चुके हैं या बहुत अधिक प्रदूषित हो चुके हैं और दुनिया के आधे से ज़्यादा तालाब ख़त्म हो चुके हैं। सबसे ज़्यादा पानी का इस्तेमाल किसान करते हैं और ग़लत तरीक़े से इस्तेमाल की वजह से ज़्यादातर पानी बर्बाद हो जाते हैं। दुनियाभर में जलवायु परिवर्तन और पानी के तरीक़ों के इस्तेमाल की वजह से क्षेत्रों में कम पानी और सूखेपन की समस्या पैदा हो रही है और जिस तरह से इस समय पानी का इस्तेमाल हो रहा है उससे हालात और भी ख़राब हो सकते हैं।  अब हमको यह यक़ीन कर लेना चाहिए कि दुनिया के सामने कम पानी का संकट मंडरा रहा है। वर्ल्ड वाइड फ़ंड फ़ार नेचर का कहना है कि अगले दस वर्षों के दौरान दुनिया का सबसे बड़ा संकट पानी का संकट होगा और इस संकट से एशिया के देश दूसरे महाद्वीपों की तुलना में अधिक प्रभावित होंगे।

अब सवाल यह पैदा होता कि जल संकट की समस्या को किस तरह हल किया जाए, इस बारे में दुनिया के देश विचार विमर्श में लगे हुए हैं। सिंगापुर उन देशों में है जिसने जल संकट की समस्या के बारे में सोचना और उसके हल के लिए कोशिशें शुरु कर दी हैं। सिंगापुर ने पानी को फ़िल्टर करने या नीवाटर की योजना पर काम शुरु कर दिया है और यह चीज़ इस संकट से छुटकारा पाने का एक बेहतरीन रास्ता है। पानी को मीठा बनाने का अर्थ यह है कि पानी को विभिन्न तकनीकों के प्रयोग द्वारा स्वस्थ्य और पीने योग्य बनाना है। स्वीडन उन देशों में से है जो पानी की कमी और संकट के ख़िलाफ़ तकनीकी समाधान के रास्ते पर चल पड़ा है। उदाहरण स्वरूप स्वीडन में रहने वाले एक ईरानी इन्जीनियर ने एक आश्चर्यजनक पाइप का आविष्कार किया जिससे पानी की काफ़ी बचत की जा सकती। यह ख़बर दुनियाभर के अख़बारों में सुर्ख़ियां में रहा। यह ऐसा पाइप है, जो प्रयोग हुए नब्बे प्रतिशत से अधिक पानी को फ़िल्टर कर सकता था और दोबारा पानी को इस्तेमाल करने योग्य बनाने की ताक़त रखता था। बारिश के पानी को सबसे अधिक बेहतर ढंग से प्रयोग किया जा सकता है। भारत और मलेशिया जैसे आविष्कारक देशों ने ऐसे सिस्टम बनाए हैं जो अधिक से अधिक बारिश के पानी को प्रयोग कर सकता है। विश्व खाद्य संगठन फ़ाओ ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि परमाणु तकनीक के प्रयोग से कृषि क्षेत्र में अनेक प्रकार के सुधार कार्य किए गये जिससे न केवल पानी की कमी का मुक़ाबला किया जाए बल्कि पानी की कमी के साथ भी अधिक से अधिक कृषि उत्पाद किए जा सकते हैं। उदाहरण स्वरूप चिल में चॉकलेट और कॉफ़ी की खेती में सुधार किया गया और परमाणु तकनीक के प्रयोग से इनकी खेती की जा रही है। कृषि की यह तकनीक, 25 प्रतिशत तक के पानी की बचत कर सकती है। इन सबके साथ सोलर और विंड एनर्जी जैसी नवीकरणीय ऊर्जा का उल्लेख न किया जाए तो अच्छा न होगा। यह तकनीके जीवाश्म ईंधन का विकल्प साबित हो सकती हैं और इससे ग्रीन हाऊस गैसों के उत्सर्जन को रोका जा सकता है और ज़मीन को गर्म होने और प्राकृतिक ग्लेशियर की तबाही को रोकता है। ओईसीडी द्वारा बताए गये आंकड़ों के आधार पर पानी की बर्बादी की वजह से पानी की क़ीमतों में वृद्धि होती है और इन सबके बावजूद अमरीका जैसे बहुत से देशों में पानी की बहुत कम क़ीमत है और इस शैली में सुधार की आवश्यकता है।

दूसरी ओर मध्यपूर्व जैसे क्षेत्रों में समुद्र के पानी से नमक हटाने के कारख़ानों का प्रयोग किया जा सकता है जिसमें बहुत अधिक ऊर्जा होती है। यहां इस बात का उल्लेख आवश्यक है कि समुद्र के पानी से नमक निकल जाने पर वह बहुत अधिक ऊर्जावान होता है लेकिन इस शैली से उन देशों में जहां गर्मी बहुत अधिक पड़ती है और जहां दिन में ज़्यादातर तेज़ धूप निकली रहती है, ऊर्जा की कमी को पूरा किया जा सकता है। उदाहरण स्वरूप सऊदी अरब, सोलर एनर्जी द्वारा समुद्री जल का विलवणीकरण, पानी के अधिक स्रोत का प्रयोग करने का इरादा रखता है। बहुत से विशेषज्ञों का यह मानना है कि वर्तमान समय में नवीन तकनीकों का प्रयोग करके पानी को बर्बादी से रोका जा सकता है और यही वजह है कि बहुत से देश इस बारे में अधिक कोशिश कर रहे हैं। पूर्वी एशिया के देश भी स्वच्छ, साफ़ और पीने योग्य पानी के प्रयोग के लिए इसी शैली का प्रयोग कर रहे हैं।  दूसरे शब्दों में यूं कहा जा सकता है कि दुनिया में के 70 प्रतिशत स्वच्छ जल का प्रयोग कृषि के क्षेत्र में प्रयोग होता है और सिंचाई की शैली को बेहतर बनाकर पानी की ज़रूरत और पानी के ख़र्चे के बीच दूरी को कम किया जा सकता है।     बहुत से देशों में देखा गया है कि पानी की कमी की वजह से किसानों को कृषि उत्पादों में काफ़ी कमी का सामना करना पड़ रहा है। इन हालात में बारिश से होने वाली सिंचाई और बूंद बंद पानी से होने वाली सिंचाई की शैली को आधुनिक शैली के रूप में याद किया जाता है लेकिन अब भी बहुत कम किसान ही इस शैली का प्रयोग कर रहे हैं।

 

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