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सूरए यूनुस, क़ुराने करीम का दसवां सूरा है जो पैग़म्बरे इस्लाम (स) के पैग़म्बर बनने के शुरूआती दिनों में नाज़िल अर्थात अवतरित हुआ था। इस सूरे में 109 आयते हैं।
पवित्र क़ुरआन के व्याख्याकारों के अनुसार सूरए तौबा का आरंभ बिस्मिल्लाह से न होकर वचन तोड़ने वाले शत्रुओं से विरक्तता से होना, इस गुट के प्रति ईश्वर के प्रकोप और क्रोध को दर्शाता है।
सूरए आराफ़ पवित्र क़ुरआन का सातंवा सूरा है।
पवित्र क़रआन के सूरए अनआम की 32वीं आयत में आया हैः संसार का जीवन खेल तमाशे के अतिरिक्त कुछ नहीं और परलोक, ईश्वर से डरने वालों के लिए सबसे अच्छा ठिकाना है।
सारी प्रशंसा ईश्वर के लिए है जिसने आकाशों और धरती की रचना की और उनमें अंधकार तथा प्रकाश बनाया परंतु काफ़िर, लोगों व वस्तुओं को अपने पालनहार का समकक्ष ठहराते हैं।
मौलाना के उच्च विचारों का दुनिया की बहुत सी ज़बानों में अनुवाद हुआ है और बहुत से विद्वान उनके विचारों से प्रभावित रहे हैं।
सूरे माएदा की आयत संख्या 27 से 31 धरती पर पहले मनुष्य व पहले ईश्वरीय दूत हज़रत आदम और उनके दो बेटों में से एक के दूसरे के हाथों क़त्ल किए जाने की घटना की ओर संकेत करती है।
कुरआने मजीद के पांचवें सूरे का नाम माएदा है।
पवित्र क़ुरआन के एक सूरे का नाम निसा है जिसका अर्थ होता है महिलाएं।
पवित्र क़ुरआन चमकता हुआ सूर्य है जो अपने प्रकाशमयी मार्गदर्शन से अज्ञानता और अंधकार से मुक्ति दिलाता है और परिपूर्णता तक पहुंचता है।