Mar ०२, २०१६ १७:१६ Asia/Kolkata

मौलाना के उच्च विचारों का दुनिया की बहुत सी ज़बानों में अनुवाद हुआ है और बहुत से विद्वान उनके विचारों से प्रभावित रहे हैं।

मौलाना के उच्च विचारों का दुनिया की बहुत सी ज़बानों में अनुवाद हुआ है और बहुत से विद्वान उनके विचारों से प्रभावित रहे हैं। मौलाना, सातवीं हिजरी क़मरी बराबर तेरहवीं ईसवी में ईरान के विशाल सांस्कृतिक प्रभाव वाले क्षेत्र में रहते थे। पिछले कार्यक्रम की तरह मौलाना की विख्यात रचना मस्नवी मानवी की समीक्षा जारी रखेंगे। तथा मौलाना की बयान करने की विशेष शैली के बारे में आपको बताएंगे। मौलाना बयान करने की अपनी विशेष शैली से अपने पहले और बाद के शायरों से भिन्न नज़र आते हैं।

शोधकर्ता, मस्नवी की कहानियों को विषय की दृष्टि से चार हिस्सों में बांटते हैं, आत्मज्ञान, बुद्धिमत्ता, क़ुरआनी और रूपकात्मक कहानियां। मस्नवी मानवी की कहानियों की विषयवस्तु आत्मज्ञान है। मौलाना की नज़र में कहानी में शरीर और आत्मा दोनों होती है। मौलाना कहानी के शरीर, उसके प्रकार और बयान करने की शैली में अधिक रूचि नहीं रखते बल्कि वे कहानी की आत्मा पर ध्यान देते हैं। कहानी की आत्मा, कहानी में निहित अर्थ होता है। हक़ीक़त में मौलाना ने अपनी शिक्षाओं व विचारों को बयान करने के लिए कहानी को ज़रिया बनाया है।

मौलाना ने कहानी बयान करने के लिए अनेक शैलियां अपनायी हैं। मस्नवी की कहानियों में कुछ ऐसी कहानियां हैं जो बहुत लंबी हैं। उन्होंने इस प्रकार की कहानियों में एक दूसरे से जुड़े रूपक और उपाख्यान की शैली अपनायी है ताकि पढ़ने वाला ऊबने न पाए। स्वाभाविक सी बात है कि इस प्रकार के उपाख्यान से पाठक ऊबने नहीं पाता और कहानी को बेहतर ढंग से समझता है। मिसाल के तौर पर मौलाना ने ‘राजा और दासी’ ‘ तूती और व्यापारी’ तथा ‘शेर और ख़रगोश’ की कहानी में इस शैली को अच्छी तरह इस्तेमाल किया है। उन्होंनें इन कहानियों में जहां ज़रूरी समझा अपनी बात को किसी दूसरी कहानी के ज़रिए और स्पष्ट किया है। वास्तव में इनमें से ज़्यादातर कहानियां कि जो अस्ल कहानी के तहत आयी हैं, मौलाना ने अपनी असल कहानी की व्याख्या के लिए पेश की हैं। इस तरह की कहानियों में असल कहानी उस प्लेट या फ़्रेम की तरह है जिसमें उससे छोटी कहानी मौजूद है। दूसरे शब्दों में मुख्य फ़्रेम से अधिक स्पष्ट वह फ़्रेम है जिसमें बाक़ी छोटी कहानियां फ़िट हो जाती हैं। मान लें कि कहानी का फ़्रेम एक नसीहत या मिसाल है जिसके बारे में पढ़ने वाले को समझाना है तो फ़ौरन उसे समझाने के लिए कहानियां पेश करते हैं।

मौलाना के बारे में समकालीन शोधकर्ता डॉक्टर तक़ीपूर, मौलाना रूम की कहानियों में बयान करने की शैली के बारे में कहते हैं, “कहानी के अंदर कहानी का उल्लेख हालांकि पद्य व गद्य की किताबों जैसे सिंदबाद वृत्तांत, कलीले व दिमने तथा अत्तार निशापूरी की मस्नवी में मौजूद है लेकिन इनमें से किसी में उतनी समानता नहीं है जितनी मस्नवी में है। इन रचनाओं में लेखक कहानियों को नैतिक व आत्मज्ञान से संबंधित विचारों को बयान करने या उन्हें साबित करने के लिए लाते हैं। विचारों को बयान करना और उन्हें सही साबित करने के लिए कहानियां पेश करना, पाठक की अपेक्षा के अनुसार है। दूसरी रचनाओं में कहानी का नियंत्रण लेखक व सुनाने वाले के हाथ में है और वे कहानी को अपनी मर्ज़ी व दृष्टिकोण के अनुसार पेश करते हैं। लेकिन मस्नवी में ऐसा लगता है कि कहानी का नियंत्रण मौलाना रूम के हाथ में नहीं है।”

दूसरी ओर लंबी कहानियों के बीच में एक के बाद एक रूपक के इस्तेमाल के कारण पाठक का मन अस्ल कहानी से भटक जाता है। मिसाल के तौर पर मस्नवी की मशहूर कहानी ‘पीर चंगी’ में पाठक को इसी तरह की मुश्किल पेश आती है।

मौलाना ने ‘पीर चंगी’ कहानी को उपाख्यानात्मक रूप में इतना लंबा कर दिया है कि पढ़ने वाले को लगता है कि पीर चंगी से संबंधित अस्ल कहानी ख़त्म हो गयी है। यही कारण है कि मौलाना के लिए इस कहानी को जारी रखने के लिए ‘पीर चंगी का बाक़ी भाग और उसका बयान’ शीर्षक पेश करना ज़रूरी हो गया। ‘प्यांबर व ज़ैद’ और ‘मस्जिदे आशिक़ कुश’ भी इसी तरह की कहानियां हैं।

मौलाना से पहले भी कहानी के भीतर कहानी पेश करने की शैली का चलन था और फ़ारसी साहित्य की बहुत सी प्राचीन कहानियों में यह शैली प्रचलित थी जैसे कलीले व दिमने, मर्ज़बान नामे, संदबाद नामे, यहां तक कि फ़िरदोसी के शाहनामे में भी।

मस्नवी की ज़्यादातर कहानियां विषय की दृष्टि से रूपक कहानियां हैं। कहानी पेश करने की शैली, सातवीं हिजरी क़मरी से पहले की शैली है। इन कहानियों जैसी ज़बान, मौलाना ने अन्य रचनाओं में इस्तेमाल नहीं की है। इन कहानियों को बयान करने के लिए प्रयोग छंद, पुराने शब्द और पुरारी भाषा का इस्तेमाल, अर्थ को बयान करने के लिए शब्दों का बेधड़क इस्तेमाल, साहित्यिक दृष्टि से अहम कहानियों का चयन, आत्मज्ञान की विषयवस्तु, ये सबके सब वे विशेषताएं हैं जिनसे मस्नवी की कहानियों को बयान करने की शैली मौलाना की व्यक्तिगत शैली नज़र आती है।

मस्नवी की कहानियों की विषयवस्तु नैतिकता, आत्मज्ञान और ज्ञान के बारे में है। ज़्यादातर कहानियों में समय और स्थान स्पष्ट नहीं है। सिर्फ़ कुछ कहानियां समय की दृष्टि से स्पष्ट हैं। मस्नवी की कहानियां, शब्दों के चयन और तर्कपूर्ण बयान की नज़र से भी सफल हैं। मौलाना रूम ने कहानी के हर पात्र के व्यक्तित्व के अनुसार शब्दों को चुना है और इसी चीज़ ने उनकी कहानी में जान डाल दी है। मौलाना रूम ने ज़्यादातर कहानियों में ख़ुद को वर्णनकर्ता के रूप में पेश करते हुए कहानी के पात्रों से ख़ुद को दूर रखा है। मौलाना रूम ने कहानी को सच्ची ज़ाहिर करने के लिए इन कहानियों को प्रसिद्ध धर्मगुरुओं व महापुरुषों की ज़बान से पेश किया है और इन हस्तियों की ज़बान का ख़्याल रखा है। इस प्रकार मौलाना रूम अपनी कहानियों को सच्चाई से ज़्यादा क़रीब ज़ाहिर कर सके। कहानियों में जिन हस्तियों को पेश किया गया है, उनमें से ज़्यादातर हस्तियों को पाठक पहचानता है और जहां पर कोई पात्र मशहूर नहीं है वहां पर मौलाना रूम ने आम संज्ञा का इस्तेमाल किया है। इसी प्रकार मौलाना रूम ने अपनी कहानियों में कहीं कहीं सर्वनाम का इस्तेमाल किया है जो व्यक्ति वाचक नाम की ओर इशारा करता है।

कहानी का एक मुख्य अंश प्लॉट अर्थात कथावस्तु कहलाता है। कथावस्तु इमारत की तरह कहानी के ढांचे को शुरु से आख़िर तक जोड़े रखती है। कथावस्तु वह चीज़ है जो पाठक में कहानी के प्रति रूचि बनाए रखती है। कहानियों की कथावस्तु, कहानियों के विभिन्न अंगों के बीच कारक व परिणाम की समीक्षा के लिए बहुत अहम होती है। मौलाना रूम ने मस्नवी की ज़्यादातर कहानियों यहां तक कि आत्मज्ञान से संबंधित विषयों में भी कारक और परिणाम के बीच संबंध को मद्देनज़र रखा है। कहानी के वर्णनकर्ता व लेखक के रूप में मौलाना रूम ने यह दर्शाया है कि वे पूर्वजों की कहानियों से भलिभांति अवगत हैं और उन्हें अपने विचारों के अनुरुप फिर से पेश किया है।


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