उस महिला पत्रकार से मिलिए जिसकी ज़िंदगी जनरल क़ासिम सुलैमानी ने बदल दी
पिछले महीने दक्षिण अमरीका की एक महिला पत्रकार Monica Gazhardo मोनिका गाज़ारदो ने वेनेज़ोएला की राजधानी काराकास के इस्लामी सेंटर में पहुंचकर इस्लाम स्वीकार किया।
42 वर्षीय मोनिका पेशे से पत्रकार हैं। इस्लाम स्वीकार करने के बारे में मोनिका गाज़ारदो कहती हैं कि लेबना
न के 33 दिवसीय युद्ध के बारे में शहीद क़ासिम सुलैमानी का एक इंटरव्यू मैंने सुना था। उनकी बातों से मैं बहुत प्रभावित हुई। अपने इस इन्टरव्यू में शहीद क़ासिम सुलैमानी ने इमाम हुसैन, आशूरा और क़ुरआन के बारे में भी बात की थी।
शहीद क़ासिम सुलैमानी की बातों को सुनने के बाद मोनिका ने नेट पर इमाम हुसैन, करबला, आशूरा और क़ुरआन जैसे की-वर्ड्स ढूंढने शुरू किये। इन की-वर्ड्स के बारे में जानकारियां एकत्रित करने के बाद मोनिका, इस्लाम की ओर आकृष्ट होती हैं। वे कहती हैं कि जब मैंने यह देखा कि क़ासिम सुलैमानी जैसा महान व्यक्ति, इस्लामी शिक्षाओं के कारण आज उस स्थान पर है जिसे देखकर हमें देखकर आश्चर्य होता है। मोनिका का मानना है कि वास्तव में इस्लामी शिक्षाएं मानवजाति के हित में हैं।
दक्षिणी अमरीका के एक इस्लामी प्रचारक हुज्जतुल इस्लाम सुहैल असअद कहते हैं कि श्रीमती मोनिका गाज़ारदो को जहां शहीद क़ासिम सुलैमानी की बातों ने प्रभावित किया वहीं पर ईरान की ओर से ज़रूरतमंदों को की जाने वाली सहायता से भी वे बहुत इम्प्रेस हुईं। सुहैल असअद का कहना है कि जब ईरान ने वेनेज़ोएला को दो जहाज़ों से सहायता सामग्री भेजी थी तो इस बात ने मोनिका को बहुत प्रभावित किया। इससे उनकी समझ में आया कि इस्लाम, मानवता प्रेमी धर्म है जो दूसरों की सहायता करता है।
श्रीमती मोनिका पहले ईसाई थीं। बाद में शहीद सुलैमानी की बातों और इस्लामी गणतंत्र ईरान के व्यवहार ने उनको इस्लाम के बारे में सोचने पर मजबूर कर दिया। वे कहती हैं कि मैंने एक साल तक लगातार इस्लाम के बारे में शोध किया। मैंने पवित्र क़ुरआन का अनुवाद पढ़ा और नहजुल बलाग़ा का भी बहुत गहराई से अध्ययन किया। मोनिका कहती है कि इसी बीच मैंने एक ताज़ा यूरोपीय मुसलमान की किताब पढ़ी जिसका शीर्षक था, "ईरान वह देश जिसपर अमरीका हमला करना चाहता है"। यह किताब स्पेनिश भाषा में थी। बाद में मोनिका ने कुछ उन किताबों का भी अध्ययन किया जो शिया मुसलमानों के बारे में थीं। इसी बीच मोनिका ने इस्लामी सेंटर जाकर इस्लामी प्रचारक सुहैल असअद से अपने सवालों के जवाब पूछना शुरू कर दिये। पूरी तरह से संतुष्ट हो जाने के बाद मोनिका ने काराकास के इस्लामी सेंटर में जाकर कलमा पढ़ते हुए इस्लाम को गले लगाया।
मुसलमान बनते ही मोनिका ने हिजाब का प्रयोग शुरू कर दिया। अब यह पत्रकार हर जगह पर पर्दे में ही जाती है। इस बारे में उनका कहना है कि जब कोई मनुष्य किसी विचारधारा को स्वीकार करता है तो फिर उसको उससे संबन्धित सारी ही बातों को स्वीकार करना चाहिए। वे कहती हैं कि मैंने भी एसा ही किया। इस्लाम स्वीकार करने वाली यह महिला अपने इरादों में इतनी मज़बूत थी कि उनके मुसलमान बनने के बाद उनके परिवार के सदस्यों ने भी उनका अनुसरण शुरू कर दिया। मोनिका की मां ने अपनी बेटी के नए धर्म के बारे में विस्तार से अध्धयन आरंभ कर दिया है। इस बारे में मोनिका कहती हैं कि मेरे परिवार का साहित्य से संबन्ध रहा है। मेरे परिवार में अधिकतर लोग शिक्षित हैं। यही वजह है कि जब मैंने इस्लाम स्वीकार किया तो किसी ने भी मेरा विरोध नहीं किया। यहां तक कि उन्होंने मेरा इस्लाम स्वीकार करना ही कबूल किया और मेरी माता इस समय इस्लाम का अध्धयन कर रही हैं।
इस्लाम एसा धर्म है जिसकी शिक्षाएं हर काल में व्यवहारिक बनाए जाने के योग्य हैं। यह मानवजाति को मुक्ति देने वाला धर्म है। इस ईश्वरीय धर्म को लोगों तक पहुंचाने में पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा (स) ने अथक प्रयास किये और इस मार्ग में भांति-भांति की समस्याओं का सामना किया। इस्लाम की एक विशेषता यह है कि इसके भीतर एसा लचीनापन है जो मानवजाति की आधुनिक आवश्यकताओं के हिसाब से स्वयं को मोड़ने की क्षमता रखता है। यह वह क्षमता है जो संसार के अन्य धर्मों में से किसी में भी नहीं पाई जाती। यही कारण है कि इतिहास के विभिन्न कालों में इस्लाम की ओर दूसरे धर्मवालों का झुकाव रहा है जो अबतक जारी है।
इसी के मुक़ाबले में इस्लाम के शत्रु भी आदिकाल से ही इस्लाम को बदनाम करने और इसके ख़िलाफ़ दुष्प्रचार करने में व्यस्त दिखाई देते हैं। इस्लामी शिक्षाओं में एकेश्वर की उपासना, पैग़म्बरे इस्लाम (स) और उनके परिजनों का अनुसरण, अत्याचारियों तथा वर्चस्ववादियों का मुक़ाबला करना, अत्याचारग्रस्तों की रक्षा करना, लोगों के साथ प्रेम के साथ पेश आना, निर्धनों पर विशेष ध्यान देना, ईश्वर की सृष्टि में गहन चिंतन-मनन तथा इसी प्रकार की बहुत सी बातों का उल्लेख मिलता है। इस्लाम, मुसलमानों से पापों से दूरी और आत्मनिर्माण का अनुरोध करता है।
इस्लाम की अच्छी शिक्षाओं के ही कारण आजके ज़माने में पूरी दुनिया विशेषकर पश्चिम में लोगों के भीतर इस्लाम के प्रति झुकाव बहुत तेज़ी से बढ़ रहा है। हालांकि पश्चिम में ही इस्लाम विरोधी प्रचार का भी इस समय बोलबाला है। इस समय वहां पर इस्लामोफ़ोबिया अपने चरम पर है। इसके बावजूद सर्वे केन्द्रों का कहना है कि पूरी दुनिया में इस्लाम तेज़ी से फैल रहा है। Pew Research Center की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि सन 2060 तक अन्य धर्मों की तुलना में इस्लाम 70 प्रतिशत फैल चुका होगा। इस्लामी विद्वानों का कहना है कि इस्लाम अपनी तार्किक शिक्षाओं के आधार पर आगे बढ़ेगा और फैलता चला जाएगा। इससे पता चलता है कि इस्लामी शिक्षाएं तार्किक हैं जो मनुष्य को अपनी ओर खींचती हैं।
बड़े खेद की बात है कि पूरी दुनिया में इस्लामोफोबिया को विभिन्न आयामों से बढ़ाया जा रहा है। यह काम पहले तो ब्रिटेन ने विभिन्न हथकण्डे अपनाते हुए अंजाम दिया जिसमें से एक वहाबियत थी। इस्लाम का विरोध करने वाले देश अब दाइश, तालेबान, अलक़ाएदा, बोरोहराम और इसी प्रकार के अतिवादी गुट बनाकर जहां एक ओर पूरी दुनिया में इस्लाम को बदनाम कर रहे हैं वहीं पर इन आतंकी गुटों के माध्यम से मुसलमानों की हत्याएं करवा रहे हैं। दाइश जैसे गुट को बनाकर उसकी हिसंक कार्यवाहियों को पेश करने से इस्लाम विरोधी शक्तियों का लक्ष्य लोगों के भीतर इस्लाम के प्रति घृणा भरना है। यूरोप और अमरीका में मौजूद अतिवादी यहूदी और सलीबी गुटों का भरपूर प्रयास यह है कि इस्लाम को हिंसक दिखाकर मुसलमानों को आतंकवादी दर्शाया जाए।
विश्व में इतने बड़े पैमाने पर इस्लाम विरोधी कार्यवाहियों के बावजूद आज भी लोग इस्लामी शिक्षाओं का अध्ययन करके इस्लाम को अपने गले लगा रहे हैं। इसकी ताज़ा मिसाल श्रीमती मोनिका गाज़ारदो का स्वेच्छा से इस्लाम स्वीकार करना है। श्रीमती मोनिका गाज़ारदो ने जब स्वेच्छा से इस्लाम को गले लगाया और उनको इसकी अच्छी बातों का पता चला तो उन्होंने इन बातों को दूसरों तक पहुंचाने का प्रयास किया। वे चाहती हैं कि इस्लाम दुश्मनी को इस्लाम दोस्ती में बदला जाए।
इसी प्रकार की एक जर्मनी की महिला हैं, प्रोफेसर Odo Tovoroshka/ इस समय वे जर्मनी में सक्रिय हैं। प्रोफेसर ओडो टोवोरोशका ने सन 2019 में एक किताब लिखी है जिसका नाम है, "इस्लाम, दुश्मन या दोस्त"। यह नई मुसलमान महिला प्रोफेसर कहती हैं कि जर्मनी के राजनेता जब इस्लाम के बारे में ग़लत बातें करते हैं तो मुझको बहुत ग़ुस्सा आता है। यह लोग अधिकतर दावा करते हैं कि इस्लाम का जर्मनी से कोई संबन्ध नहीं है। उनका कहना है कि यूरोप में इस्लाम की उपस्थिति के इतिहास को अनदेखा किया जाना चाहिए। वे कहती हैं कि जब मैं और मेरे पति "इस्लाम, दुश्मन या दोस्त" नामक किताब लिख रहे थे तो उस समय जर्मनी में इस्लाम के बारे में अच्छा दृष्टिकोण नहीं पाया जाता था। इस बात को देखते हुए मैंने अपने पति के साथ लोगों को सही इस्लामी शिक्षा देने के लिए विभिन्न क्षेत्रों की यात्राएं कीं। उस समय मुझको बहुत से दक्षिणपंथियों ने डराया और धमकाया। उनकी धमकियों के बावजूद मैंने अपने मिशन को बंद नहीं किया।
प्रोफेसर ओडो टोवोरोशका आगे कहती हैं कि इस्लाम, नैतिकता और उचित सामाजिक व्यवहार पर बल देता है।ईश्वर ने पवित्र क़ुरआन में लोगों को अनेकेश्वर वाद की उपासना, हत्या, बलात्कार, लोगों पर आरोप लगाने, शराब पीने, जुआ खेलने तथा दूसरे से नफ़रत करने से मना किया है। इस बुराइयों के मुब़ाबले में इस ईश्वरीय किताब में सच्चाई, धैर्य, संजीदगी, उदारता, त्याग और इसी प्रकार की अच्छी बातों को अपनाने की बात कही है। इस्लाम एक सर्वव्यापी धर्म है। पूरी दुनिया में फैले हुए मुसलमान चाहते हैं कि वे अपने सच्चे धर्म को पूरे विश्व में फैलातेे हुए दुनिया के लोगों तक इस्लाम के मुक्ति के संदेश को पहुंचाएं।