Jul १७, २०२२ १९:२२ Asia/Kolkata

पवित्र नगर मक्का और मदीना के बीच में ग़दीर नाम का एक छोटा तालाब है जिसके पास इतिहास की महत्वपूर्ण घटना घटी है। 18 ज़िलजिज्जा को महान व सर्वसमर्थ ईश्वर ने पैग़म्बरे इस्लाम पर वही अर्थात ईश्वरीय संदेश भेजा कि हे पैग़म्बर उस चीज़ को पहुंचा दीजिये जो तुम्हारे पालनहार की ओर से उतारी जा चुकी है और अगर आपने यह कार्य नहीं किया तो पैग़म्बरी का कोई कार्य ही अंजाम नहीं दिया और ईश्वर लोगों से आपकी सुरक्षा करेगा।

जब यह आयत उतरी तो हज़ारों हाजी पैग़म्बरे इस्लाम के पास मौजूद थे। जो हाजी ग़दीरे खुम से आगे निकल गये थे पैग़म्बरे इस्लाम ने उन्हें वापस पीछे लौटने का आदेश दिया और जो पीछे रह गये थे और अभी ग़दीर के तक नहीं पहुंचे थे उनकी प्रतीक्षा करने का आदेश दिया गया। जब सब इकट्ठा हो गये तो ऊंटों की काठी का मिंबर बनाया गया और पैग़म्बरे इस्लाम उस मिंबर पर गये और सबसे पहले उन्होंने महान ईश्वर का गुणगान किया और उसके बाद एक लाख 20 हज़ार हाजियों को संबोधित करते हुए पूछा कि क्या मैं तुम सब पर तुम्हारी जानों व नफ्सों से ज़्यादा अधिकार नहीं रखता इस पर समस्त हाजियों ने एक आवाज़ में कहा कि क्यों नहीं आप हमारे नफ्सों व जानों पर हमसे ज़्यादा अधिकार रखते हैं। उसके बाद पैग़म्बरे इस्लाम ने कहा मुझे एक महत्वपूर्ण संदेश पहुंचाना है अगर उस संदेश को मैंने नहीं पहुंचाया तो मैंने पैग़म्बरी का कोई कार्य ही अंजाम नहीं दिया। उसके बाद पैग़म्बरे इस्लाम ने हज़रत अली अलैहिस्सलाम को खड़ा होने का आदेश दिया और उनका दाहिना हाथ पकड़ कर कहा कि जिस- जिस का मैं मौला व स्वामी हूं यह अली भी उस- उस के मौला व स्वामी हैं। उसके बाद महान ईश्वर के फरिश्ते हज़रत जीब्रईल पैग़म्बरे इस्लाम पर नाज़िल हुए और उन्होंने महान ईश्वर का संदेश सुनाया जिसमें महान ईश्वर कहता है। "आज हमने तुम्हारे धर्म को पूरा कर दिया और अपनी नेअमत को तुम पर पूरा कर दिया और तुम्हारे लिए इस्लाम धर्म को चुना व पसंद किया। उसके बाद पैग़म्बरे इस्लाम ने कहा हे लोगो हिदायत व पथप्रदर्शन का नूर मेरे अंदर करार दिया गया है और उसके बाद यह प्रकाश अली और उसके पश्चात उनकी संतान में करार दिया गया है। उसके बाद पैग़म्बरे इस्लाम ने फरमाया कि उपस्थित, अनुपस्थित लोगों को तक इस ईश्वरीय संदेश को पहुंचायें। मैं शीघ्र ही तुम लोगों के बीच से चला जाऊंगा और दो मूल्यवान चीज़ें तुम लोगों के मध्य छोड़ कर जा रहा हूं। एक कुरआन और दूसरे मेरे परिजन हैं। तुम जब तक इन दोनों से जुड़ो रहोगे कभी भी गुमराह नहीं होगे।

ग़दीरे ख़ुम में जो कुछ हुआ वह कोई सामान्य घटना नहीं है।  यह वह दिन है जिस दिन पैग़म्बरे इस्लाम ने अपने बाद अपने उत्तराधिकारी की घोषणा की और पैग़म्बरे इस्लाम ने ग़दीरे ख़ुम में जो कुछ कहा उससे उन्होंने इस्लामी समाज के दायित्व को निर्धारित कर दिया और यह स्पष्ट कर दिया कि मेरे बाद मेरा उत्तराधिकारी कौन होगा। इस आधार पर ग़दीरे ख़ुम की एतिहासिक घटना को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक स्थानांतरित किया जाना चाहिये ताकि आने वाली पीढ़ियां इस बात से अवगत हो सकें कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम पैग़म्बरे इस्लाम के उत्तराधिकारी हैं और जिस दिन पैग़म्बरे इस्लाम ने हज़रत अली अलैहिस्सलाम को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया उसी दिन महान ईश्वर ने इस्लाम धर्म के पूरा होने की घोषणा की और महान ईश्वर ने कहा कि हमने इस्लाम धर्म को तुम्हारे लिए पसंद किया। ग़दीरे खुम की घटना इस्लामी इतिहास की महत्वपूर्ण घटना है और समस्त मुसलमानों पर अनिवार्य है कि वे ग़दीरे ख़ुम की घटना को समझें।

ग़दीरे ख़ुम की घटना को बीते हुए कुछ ही महीने गुज़रे थे कि बड़ी ही हृदयविदारक घटना घटी और पैग़म्बरे इस्लाम ने इस नश्वर संसार से विदा ले ली। इस दुःखद घटना से पूरे इस्लामी समाज में शोक और दुःख की लहर दौड़ गयी परंतु कुछ मुसलमान इस प्रकार के मौके की प्रतीक्षा में थे और उन्होंने मौके का दुरुपयोग किया और पैग़म्बरे इस्लाम के आदेश पर ध्यान देने के बजाये अपनी मर्ज़ी से स्वयं को उनका उत्तराधिकारी घोषित कर लिया। बहुत से विद्वानों और बुद्धिजीवियों का मानना है कि पैग़म्बरे इस्लाम ने जिस बात का आदेश ग़दीरे ख़ुम में दिया था अगर मुसलमान उस पर ध्यान देते और उस पर अमल करते तो इस्लाम अब तक विश्व व्यापी धर्म हो चुका होता। इसी कारण जिन लोगों ने इस्लामी इतिहास का अध्ययन किया और अध्ययन के बाद उन्हें पता चला कि पैग़म्बरे इस्लाम के स्वर्गवास के बाद इस्लाम के सही व सच्चे रास्ते को मोड़ दिया गया जिस पर उन्होंने खेद व्यक्त किया है। प्रसिद्ध फ्रांसीसी दर्शनशास्त्री वेल्टर अपने खेद को इस प्रकार बयान करते हैं।" हज़रत मोहम्मद की अंतिम कामना पूरी न हुई कि उन्होंने अली को अपने बाद अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया था।"

 ग़दीरे ख़ुम की इतिहासिक घटना की कुछ आयामों से समीक्षा ज़रूरी है।

पहली बात यह है कि इस्लाम धर्म में नेतृत्व का अर्थ सत्ता की प्राप्ति नहीं होता और इस्लाम में किसी को भी इस बात का अधिकार नहीं है कि वह स्वयं से नबी या इमाम बन जाये। ख़ुद पैग़म्बरे इस्लाम अपनी मर्ज़ी से पैग़म्बर नहीं बने थे बल्कि महान ईश्वर ने उन्हें यह पद प्रदान किया था और महान ईश्वर जिसे भी अपना प्रतिनिधि बनाता है उसे हर प्रकार के पाप से मासूम होना चाहिये। अगर एसा नहीं होगा कि तो हर इंसान को नबी या इमाम के हर कार्य पर संदेह होगा कि पता नहीं कि वह महान ईश्वर की इच्छा के अनुरुप है या नहीं। जब लोगों में नबी या इमाम के कार्यों के प्रति संदेह उत्पन्न हो जायेगा तो वे उसके अनुपालन में असमंजस का शिकार हो जायेंगे और उस पर अमल करने में आना- कानी से काम लेंगे। दूसरे शब्दों में उसके अनुसरण व अनुपालन में दृढ़ता से काम नहीं लेंगे जबकि महान ईश्वर ने नबी और इमाम को भेजा ही इसलिए है कि लोग उसका अनुसरण करें। अगर लोगों को उनके अनुसरण में संदेह व असमंजस हो जायेगा तो महान ईश्वर द्वारा नबी या इमाम बनाये जाने का उद्देश्य ही खत्म हो जायेगा।

सारांश यह कि पैग़म्बर और उसके उत्तराधिकारी को हर प्रकार के पाप से मासूम होना चाहिये ताकि लोग किसी प्रकार के संदेह व असंजस के बिना उसका अनुसरण कर सकें। अगर मुसलमानों ने पैग़म्बरे इस्लाम के अंतिम हज और अंतिम वसीयत पर अमल किया होता तो उनके स्वर्गवास के बाद मुसलमान इतने संप्रदायों में न बटते। हज़रत अली अलैहिस्सलाम समस्त भलाइयों व सदगुणों के स्रोत व प्रतिमूर्ति थे। अगर मुसलमान हज़रत अली अलैहिस्सलाम को पैग़म्बरे इस्लाम का उत्तराधिकारी मान लेते तो लोक- परलोक की अच्छाइयां उन्हें प्राप्त होतीं परंतु मुसलमानों ने अपने ग़लत चयन से स्वयं को लोक- परलोक की भलाई से वंचित कर लिया।

यहां इस बात का उल्लेख आवश्यक है कि कुछ मुसलमान यह कहते हैं कि पैग़म्बरे इस्लाम ने जो यह कहा था कि जिसका- जिसका मैं मौला हूं उसके- उसके यह अली भी मौला हैं तो मौला का एक अर्थ दोस्त होता है इसके जवाब में कहा जाता है कि अगर मौला का अर्थ दोस्त होता तो जो हाजी ग़दीर के तालाब से आगे निकल गये थे पैग़म्बरे इस्लाम उन्हें वापस आने का आदेश न देते और जो ग़दीर के तालाब से पीछे रह गये थे और वहां आ रहे थे उनकी प्रतीक्षा न की जाती। अगर केवल यह कहना होता कि अली भी तुम्हारे दोस्त हैं तो यह कहने के लिए धूप में इतने हाजियों को रोकने की ज़रुरत नहीं थी। यही नहीं जब महान ईश्वर ने पैग़म्बरे इस्लाम से कहा कि हे पैग़म्बर उस आदेश को पहुंचा दीजिये जो तुम्हारे पालनहार की ओर से इससे पहले नाज़िल किया जा चुका है और अगर आप ने यह कार्य नहीं किया तो पैग़म्बरी का कोई कार्य ही अंजाम नहीं दिया। यहां इस बात का भी उल्लेख ज़रूरी है और वह यह है कि कोई बहुत महत्वपूर्ण बात थी जिसकी घोषणा के लिए महान ईश्वर ने पैग़म्बरे इस्लाम से कहा था और यह भी कहा था कि इससे पहले जो तुम्हारे पालनहार की ओर से नाज़िल किया जा चुका है और साथ ही यह भी कहा था कि अगर आपने यह काम नहीं किया तो पैग़म्बरी का कोई कार्य ही अंजाम नहीं दिया। इससे यह पता चलता है कि यह बहुत ही महत्वपूर्ण कार्य है। दूसरे शब्दों में यह कार्य नमाज़ और रोज़े से भी अधिक महत्वपूर्ण था। अगर एसा न होता तो महान ईश्वर यह न कहता कि अगर आपने यह कार्य अंजाम नहीं दिया तो पैग़म्बरी का कोई कार्य ही अंजाम नहीं दिया। जो लोग यह कहते हैं कि मौला के माने दोस्त हैं तो उन्हें चाहिये कि पवित्र कुरआन की उन आयतों पर ध्यान दें जिसके नाज़िल होने के बाद पैग़म्बरे इस्लाम ने यह कार्य अंजाम दिया तो उन्हें बहुत अच्छी तरह ज्ञात हो जायेगा कि मौला के क्या अर्थ हैं।

ईदे ग़दीर के जश्न में डूबा समूचा ईरान

रोचक बिन्दु यह है कि जब 1 लाख 20 हज़ार हाजियों ने हज़रत अली अलैहिस्सलाम की बैअत की थी तो उनमें से किसी ने भी यह नहीं कहा कि मौला के माना दोस्त के हैं जबकि सब के सब अरबी भाषा समझते थे और उनकी ज़बान अरबी थी। जो मुसलमान यह कहते हैं कि मौला के माना दोस्त हैं उनसे पूछा जाना चाहिये कि जिन हाजियों ने हज़रत अली अलैहिस्सलाम की बैअत की थी क्या उन्होंने मौला के माना समझे बिना बैअत की थी? और हज़रत अली अलैहिस्सलाम को बधाई दी थी?

इसी प्रकार यहां एक अन्य बिन्दु का उल्लेख ज़रूरी है और वह यह है कि अगर मौला के माने दोस्त के हैं तो पैग़म्बरे इस्लाम के साथ हज करने वालों ने बैअत क्यों की? क्या दोस्ती साबित करने के लिए भी बैअत की जाती है? इस्लामी इतिहास में एक भी मिसाल नहीं मिलती जिससे यह साबित होता हो कि दोस्ती साबित करने के लिए बैअत भी होती है। अगर मौला के माना दोस्त के होते तो एक लाख 20 हज़ार हाजियों के मध्य इस बात को कहने की ज़रूरत नहीं थी और अगर मौला के माना दोस्त के होते तो पैग़म्बरे इस्लाम इसके लिए इतना प्रबंध न करते कि जो हाजी आगे निकल गये हैं उन्हें वापस बुलाया जाये और जो पीछे रह गये हैं उनकी प्रतीक्षा की जाये।

बहरहाल जिस तरह पैग़म्बरे इस्लाम ने हाजियों को संबोधित करके पूछा था कि क्या मैं तुम्हारी जानों पर तुमसे अधिक अधिकार नहीं रखता तो सबने कहा था कि क्यों नहीं आप मेरी जानों पर हमसे ज़्यादा अधिकार रखते हैं। उसके बाद पैग़म्बरे इस्लाम ने हज़रत अली अलैहिस्सलाम का हाथ पकड़ कर कहा था कि जिस- जिस का मैं मौला हूं उस उस के अली भी मौला हैं और पैग़म्बरे इस्लाम ने महान ईश्वर से प्रार्थना की थी कि हे पालनहार हक़ को उधर- उधर मोड़ना जिधर -जिधर अली मुड़े और उसे अपमानित करना जो अली को अपमानित करे।

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