3 ख़ुर्दाद
24 मई 1982 को ईरानी जनता के हर्षोल्लास की थाह नहीं थी लोग एक दूसरे को बड़े गर्व के साथ उस शौर्य गया की सूचना दे रहे थे जिसे उनके वीर सपूतों ने सद्दाम की सेना के मुक़ाबले में रणक्षेत्र में रचा था।
24 मई 1982 को ईरानी जनता के हर्षोल्लास की थाह नहीं थी लोग एक दूसरे को बड़े गर्व के साथ उस शौर्य गया की सूचना दे रहे थे जिसे उनके वीर सपूतों ने सद्दाम की सेना के मुक़ाबले में रणक्षेत्र में रचा था। ईरान के वीर सपूतों ने एक भीषण व साहसपूर्ण लड़ाई में ख़ुर्रम शहर को आज़ाद कराया जो सद्दाम की सेना के अतिग्रहण में चला गया था। यह महासफलता न सिर्फ़ ईरान बल्कि दुनिया में अविश्वस्नीय रूप से मीडिया में छायी रही क्योंकि राजनैतिक व सैन्य मामलों के विशेषज्ञ, इराक़ के अतिग्रहण में मौजूद सबसे बड़े शहर की आज़ादी में ईरान की सफलता के महत्व से अवगत थे इसलिए वे अपने आश्चर्य को न छिपा सके।
ख़ुर्रमशहर ईरान के दक्षिण-पश्चिम में अरवन्द रूद नदी के तट पर स्थित है जिसके मुक़ाबले में इराक़ का बसरा शहर स्थित है। इराक़ के तत्कालीन तानाशाह सद्दाम ने 22 सितंबर 1980 को ईरान की धरती पर हमला शुरु होते ही अपने सैनिकों को इस महत्वपूर्ण बंदरगाह का अतिग्रहण करने के लिए रवाना किया। सद्दाम ने ईरान के दक्षिण-पश्चिम में स्थित ख़ुर्रमशहर सहित तेल से मालामाल ख़ूज़िस्तान प्रांत को 3 दिन के भीतर अतिग्रहण करने का दावा किया था। शायद आरंभिक सैन्य व राजनैतिक समीकरण के आधार पर सद्दाम और उसके घटकों की कल्पना का व्यवहारिक होना असंभव नहीं लग रहा था। उस समय ईरान में क्रान्ति ताज़ा ताज़ा सफल हुयी थी और उसे देश के भीतर क्रान्ति के विरोधियों और विदेशी षड्यंत्रों का सामना भी था। दूसरी ओर ईरानी सेना अमरीकी सैन्य सलाहकारों के चले जाने और कुछ आंतरिक समस्याओं के कारण कमज़ोर थी। इस्लामी क्रान्ति संरक्षक बल आईआरजीसी और स्वयंसेवी बल बसीज भी सुनियोजित रूप से संगठित व हथियारों से लैस नहीं हुआ था।
ईरान में इन हालात के कारण सद्दाम जैसे सत्तालोलुप व अतिक्रमणकारी के मन में ईरान पर हमले का विचार आया। वह उस समय अरब जगत के नेतृत्व का ख़्वाब देख रहा था और ख़ुद को एक शूरवीर के तौर पर पहचनवाना चाहता था। इस रक्तपिपासू तानाशाह को जिसने अपने देश में हिंसा के ज़रिए हर प्रकार के विरोध को दबा दिया था, तत्तकालीन दो बड़ी ताक़तों अमरीका और पूर्व सोवियत संघ सहित अनेक पश्चिमी व अरब सरकारों का समर्थन हासिल था। यही कारण था कि सद्दाम ने बड़ी मात्रा में हथियार ख़रीदा और सेना को संगठित कर ईरान पर 8 साल की जंग थोप दी जिसके नतीजें में ईरान और इराक़ दोनों ही राष्ट्रों को भारी नुक़सान पहुंचा।

सद्दाम के सैन्य कमान्डरों और समर्थकों के अनुमान के विपरीत ख़ुर्रम शहर पर हमला करने वाले अतिक्रणमकारी इराक़ी सैनिकों को ईरानी जनता व सैनिकों के कड़े प्रतिरोध का सामना करना पड़ा। इराक़ी सेना 3 दिन के भीतर इस शहर का अतिग्रहण करने का ख़्वाब देख रही थी किन्तु ख़ुर्रमशहर की जनता और इस शहर में मौजूद सैनिकों ने रसद व उपकरणों की कमी के बावजूद 35 दिनों तक सद्दाम की सेना की ओर से बमबारी व गोलाबारी का मुक़ाबला किया। यद्यपि 26 अक्तूबर 1980 को ख़ुर्रमशहर पर अतिक्रमणकारी सेना का क़ब्ज़ा हुआ किन्तु ईरान के आत्मसम्मान से ओत प्रोत जियालों को इस बात का विश्वास था कि देर या सवेर ईरान वतन की भूमि के इस टुकड़े को आज़ाद करा लेंगे। लगभग डेढ़ साल इंतेज़ार करना पड़ा। इस दौरान ख़ुर्रमशहर को ख़ू‘न में डूबा शहर’ कहा जाता था।
30 अप्रैल 1982 को रेडियो से पूरे ईरान में प्रसारित होने वाली सैन्य बैंड की आवाज़ ख़ुर्रमशहर की आज़ादी के लिए ईरानी सेना की बड़ी कार्यवाही की शुभसूचना दे रही थी। ख़ुर्रमशहर को आज़ाद कराने के विशेष अभियान का नाम ‘बैतुल मुक़द्दस’ अर्थात अतिग्रहित फ़िलिस्तीन में मौजूद मुसलमानों के पवित्र स्थल के नाम पर रखा गया था। 24 दिनों तक शौर्य दिखाने के बाद अंततः ख़ुर्रमशहर को ईरान के वीर सपूतों ने आज़ाद कराया और इस शहर की जामा मस्जिद पर अल्लाहो अकबर का ध्वज फहराया। ख़ुर्रमशहर की यह मस्जिद प्रतिरोध का प्रतीक समझी जाती है। इस प्रकार सद्दाम के ख़्वाबों का महल जो उसकी सेना के कांधे पर टिका था, अचानक ढह गया। इस घमन्डी तानाशाह को इस बात का यक़ीन नहीं था कि ईरानी जियाले उसकी अतिक्रमणकारी सेना के हाथ से ख़ुर्रमशहर को आज़ाद करा पाएंगे। इसलिए उसने ख़ुर्रमशहर के अतिग्रहण के वक़्त यह शेख़ी बघारी थी कि अगर ईरान इस शहर को आज़ाद करा ले तो बसरा की कुंजी ईरानी सेना के हवाले कर देंगे। इसके बाद से सद्दाम और उसके घटक एक के बाद एक नई समस्याओं में घिर गए। इराक़ी सेना निरंतर हारती गयी और बग़दाद पर क़ाबिज़ तानाशाही शासन के स्तंभ हिल गए।
ख़ुर्रमशहर की आज़ादी ईरान पर इराक़ द्वारा थोपी गयी 8 साल की जंग की प्रक्रिया में निर्णायक मोड़ साबित हुयी। क्योंकि इसके बाद ईरानी जियालों की सफलता का क्रम शुरु हुआ। इन सफलताओं में ख़ास तौर पर ख़ुर्रमशहर की आज़ादी में अनेक तत्वों का योगदान था। इन तत्वों में सबसे अहम तत्व वह था जिसने ईरान की इस्लामी क्रान्ति को सफल बनाया। इस महाक्रान्ति की सफलता में ईश्वर पर भरोसा, जनता की एकता और इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह के समझदारी भरे नेतृत्व का बड़ा योगदान था। ख़ुर्रमशहर की आज़ादी में ईरानी सैनिकों ने ईश्वर की कृपा और अपने अद्वितीय आध्यात्म के सहारे बैतुल मुक़द्दस कार्यवाही शुरु की और उसे सफलता तक पहुंचाया। ईरानी योद्धाओं की ईश्वर पर आस्था ने इराक़ी सेना की हथियारों की दृष्टि से वरियता को मिट्टी में मिला दिया। इस बात का उल्लेख भी ज़रूरी है कि पश्चिम के ताक़तवर देशों में फ़्रांस व अमरीका और इसी प्रकार पूर्व सोवियत संघ सद्दाम सेना की युद्धक विमानों, टैंकों और आधुनिक मीज़ाईल की मदद कर रहे थे। जर्मनी सद्दाम शासन को रासायनिक जनसंहारक हथियार बनाना सिखा रहा था जबकि अरब देश, धन के ज़रिए सद्दाम की सेना के अतिक्रमण के ख़र्च को पूरा कर रहे थे।

ख़ुर्रमशहर की आज़ादी में ईरानी सेना व आईआरजीसी की सफलता में एक और प्रभावी तत्व, आत्म विश्वास था। सद्दाम की सेना विदेशियों पर बहुत हद तक निर्भर थी जबकि ईरानी सेना ने ईश्वर की मदद और आत्मविश्वास के ज़रिए सफलता हासिल की। ख़ुर्रमशहर की आज़ादी की कार्यवाही योजना की दृष्टि से बहुत ही सटीक थी। यह कार्यवाही बहुत ही सुनियोजित रूप में शुरु हुयी और एक एक क़दम आगे बढ़ती गयी। ख़ुर्रमशहर की आज़ादी में सेना और आईआरजीसी के कमान्डरों ने सैन्य क्षेत्र में ऐसी नई रंणनीति अपनायी जो जंग को तेज़ी से आगे बढ़ाने और दुश्मन के उपकरणों से निपटने में बहुत प्रभावी रही। इसके अलावा ईरानी सेना का मनोबल बहुत ऊंचा था। ईरानी सेना अपने वतन के एक शहर की आज़ादी के लिए लड़ रही थी किन्तु इराक़ी सैनिक ख़ुद को सद्दाम के हाथ का खिलौना देख रहे थे जो एक नीच लक्ष्य की प्राप्ति चाहता था।
यद्यपि ख़ुर्रमशहर की आज़ादी के 34 साल बाद आज ईरान में कोई जंग नहीं हो रही है किन्तु ईरान पर हमले पर आधारित धमकियां सुनने में आ रही हैं। ऐसा लगता है कि जो लोग यह धमकी दे रहे हैं उन्होंने सद्दाम द्वारा थोपे गए आठ वर्षीय युद्ध के दौरान ईरानी योद्धाओं की ख़ुर्रमशहर सहित अन्य उज्जवल सफलताओं से पाठ नहीं लिया है। किन्तु ईरानी समाज पर एक नज़र डालने से ऐसे जोशीले जवान दिखाई देंगे जो ख़तरे की स्थिति में उसी संकल्प के साथ अपने वतन की रक्षा के लिए निकल पड़ेंगे। ऐसे जवानों की संख्या दसियों लाख है जिन्होंने पीड़ितों की मदद करने वाली स्वयंसेवी संस्था साज़माने बसीजे मुस्तज़अफ़ीन में ट्रैनिंग ली है ताकि ख़तरे की स्थिति में देश पर अतिक्रमण करने वाली हर ताक़त को नाको चने चबवा दें।
ईरान पर सद्दाम शासन द्वारा थोपे गए युद्ध के वर्षों की तुलना में इस समय इस्लामी गणतंत्र ईरान का अंतर्राष्ट्रीय मंच पर अच्छा स्थान है। ईरान की प्रतिरोधक सैन्य क्षमता इतनी बढ़ चुकी है कि युद्धोन्मादी किसी भी सैन्य अतिक्रमण से पहले उसके अंजाम को सोच कर दहल जाएंगे। ईरान अब तक अनेक आधुनिक सैन्य उपकरण बना चुका है जिनमें कुछ बहुत ही जटिल प्रौद्योगिकी से संपन्न हैं। जिस बात से दुनिया पर वर्चस्व जमाने का ख़्वाब देखने वाले चिंतित हैं वह यह कि ईरान ने इन उपकरणों को अपने विशेषज्ञों की सहायता से स्वदेशी प्रौद्योगिकी के ज़रिए बनाया है। यह प्रगति व आत्मनिर्भरता विज्ञान व प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में ईरान की महासफलता का पता देती है। हर कुछ दिन में ईरानी वैज्ञानिकों के कारनामे पर दुनिया तारीफ़ करती है। इस वक़्त आर्थिक व राजनैतिक दृष्टि से इस्लामी गणतंत्र ईरान का क्षेत्र सहित दुनिया में विशेष स्थान है। आज क्षेत्र में ईरान की भूमिका को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। लैटिन अमरीका, एशिया और अफ़्रीक़ा के अनेक देशों के साथ उनके व्यापक संबंध हैं। इन मैत्रीपूर्ण संबंध का बड़ा भाग व्यापक आर्थिक प्रगति और इन देशों के साथ ईरान के औद्योगिक लेन-देन का नतीजा है।
ख़ुर्रमशहर की आज़ादी की शौर्य गाथा को वर्षों बीतने के बावजूद आज भी ईरानी जनता इस याद को गर्व के साथ संजोए हुए है और इसे ‘प्रतिरोध व सफलता’ दिवस के रूप में याद करती है क्योंकि इस दिन ईरानी जनता ने यह दर्शा दिया था कि हर अतिक्रमणकारी को मुंह तोड़ जवाब देगी और हर प्रकार के सैन्य अतिक्रमण के मुक़ाबले में देश के लिए बलिदान पर तय्यार है।