इस्लामी गणतंत्र दिवस पर विशेष कार्यक्रम
(last modified Sun, 02 Apr 2023 02:53:42 GMT )
Apr ०२, २०२३ ०८:२३ Asia/Kolkata
  • इस्लामी गणतंत्र दिवस पर विशेष कार्यक्रम

12 फरवरदीन को ईरान में इस्लामी गणतंत्र दिवस के रूप में क्यों मनाया जाता है?

आज 12 फरवरदीन अर्थात पहली अप्रैल है। आज के दिन को ईरान में इस्लामी गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता है। सबसे पहले हम आपको यह बतायेंगे कि आज के दिन हुआ क्या था और इसका महत्व क्या है।

ईरान की इस्लामी क्रांति 11 फरवरी 1979 को सफल हुई थी। क्रांति की सफलता के दो महीने के अंदर इस्लामी व्यवस्था के संस्थापक स्वर्गीय इमाम खुमैनी रह. के आह्वान पर 10 और 11 फरवरदीन को जनमत संग्रह हुए थे और उस जनमत संग्रह में भाग लेने वाले 98 दशमलव दो प्रतिशत से अधिक लोगों ने इस्लामी व्यवस्था स्थापित करने के पक्ष में मत दिया था। इस्लामी क्रांति के सफल होने के लगभग 50 दिन बाद समूचे ईरान में जनमत संग्रह कराया गया जबकि यह चीज़ दुनिया की किसी भी क्रांति के इतिहास में नहीं दर्ज की गयी। इसी आधार पर उस समय बहुत से लोगों ने कहा कि ईरान में इस्लामी क्रांति को भारी जनसमर्थन प्राप्त है और इस्लामी व्यवस्था के पक्ष में लोगों ने जो मत दिया है उसे प्रमाण के रूप में देखा जा सकता।

12 फरवरदीन ईरानी जनता के मत को प्रकट करने का दिन है। इस्लामी व्यवस्था के संस्थापक स्वर्गीय इमाम खुमैनी रह. ने ईरानी जनता को संबोधित करते हुए कहा था कि यह जनमत संग्रह हमारे राष्ट्र का भविष्य निर्धारित करेगा, यह जनमत संग्रह आपको आज़ादी व स्वाधीनता प्रदान करेगा या इस जनमत संग्रह की वजह से आप अतीत की भांति घुटन के वातावरण में और दूसरों पर निर्भर रहेंगे। इस जनमत संग्रह में सबको भाग लेना चाहिये और आप जो चाहें उसका चयन कर सकते हैं। आप को अधिकार है और आप इस कागज पर डेमोक्रेटिक गणतंत्र लिख सकते हैं, राजशाही सरकार या जो चाहें लिख सकते हैं। इस संबंध में आपको पूरा अधिकार है।“

आज के दिन ईरानी जनता ने इस्लामी लोकतंत्र के हित में मतदान करके अत्याचार और राजशाही सरकार का अंत कर दिया। रोचक बात यह है कि 12 फरवरदीन को जो जनमत संग्रह हुआ था उसमें 98 प्रतिशत से अधिक लोगों ने इस्लामी गणतंत्र के पक्ष में वोट दिया था। दूसरे शब्दों में ईरान में इस्लामी व्यवस्था का आधार भारी जनसमर्थन है और आज तक इस व्यवस्था के जारी रहने का मूल कारण भी भारी जनसमर्थन है। अभी 11 फरवरी को ईरान की इस्लामी क्रांति की सफलता की 44वीं वर्षगाठ के अवसर पर समूचे ईरान में इस्लामी क्रांति के समर्थन में जो विराट रैलियां निकली थीं उन्हें इसी परिप्रेक्ष्य में देखा जा सकता है। इन महारैलियों में लोगों की भारी उपस्थिति ने दुश्मनों और उन लोगों की उन बातों पर भी पानी फेर दिया जिसमें वे कहते हैं कि 44 साल पहले लोग इस व्यवस्था और क्रांति के समर्थक थे पर अब एसा नहीं है।  

इस्लामी व्यवस्था की स्थापना से जहां ईरानी जनता व लोगों ने यह सिद्ध कर दिया कि अब उनकी इच्छा की सरकार व व्यवस्था बनी है वहीं इस व्यवस्था से निर्धन व वंचित वर्गों में यह संदेश भी गया कि अब उनके मत का महत्व है और वे भी देश के भविष्य में बराबर के भागीदार हैं। अब ईरान में जनता की सरकार और इस्लामी लोगतंत्र है। इस व्यवस्था से वंचित लोगों के दिलों में आशा की किरण जगी। शाह की तानाशाही व अत्याचारी सरकार के दौर में बहुत से लोग यह सोचते थे कि उनका कोई महत्व नहीं है पर इस्लामी व्यवस्था की स्थापना के बाद हर ईरानी देश के भविष्य में स्वयं को ज़िम्मेदार समझता है।

स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी रह. ने 12 फरवरदीन को ईद का नाम दिया और कहा है कि 12 फरवरदीन की सुबह ईश्वरीय सरकार का पहला दिन है और यह सबसे बड़ी धार्मिक और हमारी राष्ट्रीय ईद है। हमारी जनता व राष्ट्र को इस दिन को ईद के रूप में मनाना और इसकी रक्षा करनी चाहिये।  इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली खामनेई ने भी 12 फरवरदीन को लोगों की भारी उपस्थिति और उनके मत को इस्लाम को मत देने का नाम दिया। सर्वोच्च नेता फरमाते हैं एक अन्य विशेषता भी हमारे इस्लामी गणतंत्र दिन में है और वह यह है कि ईद केवल ईरानी लोगों के लिए नहीं है यह उन समस्त लोगों के लिए ईद हो सकती है जो मुसलमान हैं यानी लगभग एक अरब लोगों की ईद।

दोस्तो यहां एक बिन्दु का उल्लेख ज़रूरी है और वह यह है कि जिस समय ईरान में इस्लामी क्रांति सफल हुई थी उस समय पूरी दुनिया में मुसलमानों की जनसंख्या लगभग एक अरब थी। इसलिए इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता ने कहा था कि 12 फरवरदीन लगभग एक अरब लोगों की ईद हो सकता है।

इस्लामी क्रांति की सफलता से पहले बहुत से लोग यह सोचते थे कि इस्लाम और इस्लामी शिक्षाओं को मापदंड व आधार बनाकर न तो देश चलाया जा सकता है और न ही सरकार गठित की जा सकती है परंतु स्वर्गीय इमाम खुमैनी रह. ने इस्लामी व्यवस्था का गठन करके यह बता दिया कि इस्लामी शिक्षाओं की छत्रछाया में देश व समाज को चलाया जा सकता है और सरकार भी गठित की जा सकती है।

आज बहुत से वर्चस्वादी देश और सरकारें ईरान की इस्लामी व्यवस्था की जो विरोधी हैं उसकी एक वजह यह है कि ईरान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक आदर्श देश में परिवर्तित होता जा रहा है और दूसरे देशों में इस्लाम के प्रति रुझान तेज़ी से बढ़ता जा रहा है जिससे साम्राज्यवादी देश व सरकारें चिंतित हो गयी हैं। ईरान की इस्लामी व्यवस्था से शत्रुता की एक वजह यह है कि वर्चस्ववादी सरकारें व देश ईरान की इस्लामी व्यवस्था को अपने अवैध हितों के मार्ग में सबसे बड़ी रुकावट के रूप में देख रही हैं।

ईरान की इस्लामी व्यवस्था की एक विशेषता यह है कि वह लोगों में यह भावना जगाने की कोशिश कर रही है कि हम कर सकते हैं। यह व्यवस्था लोगों को अपने स्थानीय स्रोतों व संभावनाओं से लाभ उठाकर अपने पैरों पर खड़ा होना सिखा रही है जबकि कोई भी वर्चस्ववादी देश व सरकार इस बात को बिल्कुल पसंद नहीं करती कि लोगों में इस प्रकार की भावना उत्पन्न की जाये। वर्चस्ववादी देशों की एक आदत यह है कि वे आम जनमत विशेषकर तीसरी दुनिया के देशों के लोगों में यह भावना फैलाते हैं कि आप कुछ नहीं कर सकते, आप हमारी मदद के बिना जीवित नहीं रह सकते जबकि ईरान की इस्लामी व्यवस्था ने इस प्रकार के विचारों को चुनौती दे दी है और 44 वर्षों के अपने अमल से सिद्ध कर दिया है कि आप अपने पैरों पर खड़े होकर बहुत कुछ कर सकते हैं।

जब ईरान में शाह की तानाशाही व अत्याचारी सरकार थी तब शाह बड़ी शक्तियों विशेषकर अमेरिका के इशारे पर काम करता था और वह पूरी तरह दूसरों पर निर्भर था पर आज ईरान दुश्मनों विशेषकर अमेरिका के विभिन्न प्रकार के कड़े प्रतिबंधों के बावजूद विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय प्रगति कर रहा है। यह सब उसी भावना का नतीजा है कि हम कर सकते हैं।

ईरानी संविधान में इस बात का उल्लेख किया गया है कि दुनिया और इंसान पर अस्ल में शासन करने का अधिकार महान ईश्वर का है और ईश्वर ने ही इंसान को अपने सामाजिक जीवन पर शासन करने का अधिकार दिया है और किसी को भी यह ईश्वरीय अधिकार इंसान से न तो छीनने का अधिकार है और न ही इस बात का अधिकार है कि वह इस अधिकार को किसी व्यक्ति या विशेष गुट की सेवा में दे दे। इस्लामी व्यवस्था दुश्मनों की आंखों का कांटा बनी हुई है। ईरान ने जो विभिन्न क्षेत्रों में ध्यान योग्य प्रगति की है और कर रहा है वे सब प्रतिबंधों के काल की हैं। आज ईरान को कड़े प्रतिबंधों और दबावों का सामना है पर उसने मिसाइल, ड्रोन, नैनो और परमाणु तकनिक आदि क्षेत्रों में ध्यान योग्य प्रगति की और कर रहा है। दुश्मनों की चिंता का एक बहुत कारण ईरान की दिन प्रतिदिन प्रगति है और वे ईरान को प्रगति से रोकने के लिए आये दिन तेहरान के खिलाफ प्रतिबंध लगाते रहते हैं। कोई कार्य एसा बचा नहीं है जिसे दुश्मनों ने ईरान के खिलाफ अंजाम न दिया हो हां जो कार्य नहीं किया उसकी वजह यह है कि वे नहीं कर सकते। क्योंकि उन्हें इसके गम्भीर परिणामों की पूरी जानकारी है। मिसाल के तौर पर उन्होंने ईरान के खिलाफ सैनिक कार्यवाही नहीं तो उसकी वजह यह है कि वे ईरान के करारे जवाब और इसके भयावह परिणामों से भलीभांति अवगत हैं। आज दुश्मन जो हर कुछ समय पर ईरान के खिलाफ नये प्रतिबंध लगाता है तो उसकी वजह यह है कि इसके अलावा वह तेहरान के खिलाफ और कुछ कर ही नहीं सकता।

दुश्मनों को बहुत अच्छी तरह पता है कि ईरान अफगानिस्तान और इराक नहीं है और अगर ईरान इराक और अफगानिस्तान की तरह होता तो वे बहुत पहले ईरान पर भी हमला कर देते और तेहरान के खिलाफ प्रतिबंध लगाने का कष्ट न करते पर वे ईरान की सैनिक ताकत से बहुत अच्छी तरह अवगत हैं इसलिए उन्होंने ईरान पर सैनिक हमले का विचार ही दिमाक़ से निकाल दिया है और आये दिन तेहरान के खिलाफ नये प्रतिबंधों का एलान करते रहते हैं। दूसरे शब्दों में ईरान पर प्रतिबंध लगाने के सिवा उनके पास कोई विकल्प ही नहीं है।

बहरहाल ईरान की इस्लामी क्रांति को सफल हुए 44 साल का समय हो रहा है और वह राष्ट्रीय एकता व एकजुटता और शांति के साथ आगे बढ़ रही है। एकता और शांति, विकास और प्रगति के लिए बहुत जरूरी है। जिस व्यक्ति या समाज में शांति नहीं होगी वह या तो आगे नहीं बढ़ पायेगा या उसका आगे बढ़ाना बहुत धीमी गति से होगा। ईरान की इस्लामी व्यवस्था के दुश्मन इसे प्रगति से रोकने के लिए नित नये प्रतिबंध लगाते हैं और जब उन्होंने देखा कि उनके प्रतिबंध भी ईरान को प्रगति करने से नहीं रोक पा रहे हैं तो उन्होंने ईरान में अशांति उत्पन्न करने के लिए कुछ उपद्रवी तत्वों का खुलकर समर्थन करना आरंभ कर दिया।

इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता कहते हैं कि इतनी दुश्मनी के बावजूद इस्लामी गणतंत्र का अंजाम दूसरी व्यव्यस्थाओं और क्रांतियों जैसा क्यों नहीं हुआ? इसका कारण क्या है, इसका रहस्य व भेद क्या है? सर्वोच्च नेता कहते हैं इसका राज़ दो शब्द है गणतंत्र और इस्लामी। इन दो शब्दों का मिश्रण इसके बाकी रहने का रहस्य है। इस्लामी यानी इस्लाम और लोग, धार्मिक लोकतंत्र। यह स्वर्गीय इमाम खुमैनी रह. का बहुत बड़ा काम था। इस्लामी गणतंत्र की विचारधार को उन्होंने पेश किया और इसे व्यवहारिक बनाया। MM

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