पंद्रह ख़ुर्दाद आंदोलन
(last modified Sun, 05 Jun 2016 07:22:13 GMT )
Jun ०५, २०१६ १२:५२ Asia/Kolkata

ईरानी राष्ट्र के संघर्ष के इतिहास में 15 ख़ुर्दाद का आंदोलन निर्णायक घटनाओं में से एक है।

ईरानी राष्ट्र के संघर्ष के इतिहास में 15 ख़ुर्दाद का आंदोलन निर्णायक घटनाओं में से एक है। इस महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना का ईरानी राष्ट्र के भविष्य पर गहरा असर पड़ा। इस घटना ने इस्लामी क्रान्ति की सफलता का मार्ग समतल किया। इसलिए इस घटना को वर्चस्ववादी व्यवस्था के ख़िलाफ़ ईरानी राष्ट्र के संघर्ष के जन्म लेने में निणीयक माना जाता है।

 

ईरान के राजनैतिक इतिहास में ऐसी घटनाएं मौजूद हैं जिन्हें वर्चस्ववादी व्यवस्था के ख़िलाफ़ संघर्ष के उदाहरण के तौर पर पेश किया जाता है। इन्हीं विशेषताओं वाली घटना 15 ख़ुर्दाद की घटना भी है। 15 ख़ुर्दाद आंदोलन के वजूद में आने के पीछे राजनैतिक, सामाजिक और धार्मिक कारण थे। साम्राज्यवादी शक्तियों के ख़िलाफ़ ईरानी राष्ट्र के संघर्ष के इतिहास में वजूद में आने वाले आंदोलन बहुत अहम हैं किन्तु इन निर्णायक घटनाओं में विदेशी षड्यंत्र से मुक़ाबला, ईरानी राष्ट्र की महत्वपूर्ण विशेषता रही है।

 

15 ख़ुर्दाद के आंदोलन की मुख्य पहचान यह है कि यह आंदोलन ईरान में अमरीकी हस्तक्षेप के ख़िलाफ़ हुआ था। 19 अगस्त 1953 का सैन्य विद्रोह और उसके बाद राजनैतिक घटनाओं का क्रम जिसमें साम्राज्यवादी शक्तियों के हस्तक्षेप से लेकर कपिचलेशन क़ानून शामिल है, 15 ख़ुर्दाद 1342 बराबर 5 जून 1963 के आंदोलन के जन्म लेने की पृष्ठिभूमि बना और अंततः इसके नतीजे में ईरान में अत्याचारी शाही शासन का विघटन हुआ।

इमाम ख़ुमैनी के राजनैतिक आंदोलन का उद्देश्य वर्चस्ववादी व्यवस्था को नकारना था। इस्लामी क्रान्ति के संस्थापक इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह का 1963 का मशहूर भाषण साम्राज्यवाद के ख़िलाफ़ था। इस भाषण के कारण इमाम ख़ुमैनी को गिरफ़्तार किया गया और फिर देशनिकाला दे दिया गया। इस भाषण का ईरानी राष्ट्र के आंदोलन पर गहरा असर पड़ा जो बाद में वर्चस्ववादी व्यवस्था के ख़िलाफ़ ईरानी राष्ट्र के संघर्ष में निर्णायक मोड़ बना। इमाम ख़ुमैनी ने 15 ख़ुर्दाद के ऐतिहासिक आंदोलन के ज़रिए ईरान से अमरीकी साम्राज्य के संबंध को चुनौती दी। उस समय ईरान में शाही शासन ने ऐसा घुटन का माहौल बना दिया था कि जनता को किसी प्रकार की आलोचना का अधिकार नहीं था।

 

इस क्रान्तिकारी आंदोलन से ईरान में सामाजिक व राजनैतिक हालात ने करवट ली। यह आंदोलन शाही शासन के ख़िलाफ़ संघर्ष का आधार बना।

ज़ाहिरी तौर पर 15 ख़ुर्दाद आंदोलन को शाही शासन के कारिंदों ने दबा दिया था किन्तु यह आंदोलन नाकाम नहीं हुआ बल्कि इस आंदोलन ने इमाम ख़ुमैनी को देशनिकाला दिए जाने के बावजूद इस्लामी क्रान्ति की सफलता की पृष्ठिभूमि मुहैया की।

 

पर्यवेक्षकों का मानना है कि इस्लामी क्रान्ति की सफलता में साम्राज्य के ख़िलाफ़ तंबाकू नामक ऐतिहासिक आंदोलन, संवैधानिक क्रान्ति, तेल के राष्ट्रीयकरण और पंद्रह ख़ुर्दाद जैसे आंदोलन ने पृष्ठिभूमि मुहैया की थी। जैसा कि इमाम ख़ुमैनी ने अपने भाषणों में 15 ख़ुर्दाद को इस्लामी क्रान्ति की सफलता के आरंभिक बिन्दु के रूप में याद किया। 15 ख़ुर्दाद आंदोलन ने ही ईरान में शाही शासन के ख़िलाफ़ राजनैतिक अभियान की भूमि समतल की थी। यही वजह है कि 15 ख़ुर्दाद आंदोलन बाद के चरणों में अत्याचारी शासन के ख़िलाफ़ ईरान के विभिन्न वर्गों में अप्रसन्नता की लहर पैदा करने में निर्णायक साबित हुआ। ऐसी लहर जो बड़े क्रान्तिकारी आंदोलनों के जन्म लेने की पृष्ठिभूमि तथा महाजागरुकता के शुरु होने के लिए प्रेरणा बनी। अत्याचार व भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ दृढ़ता ही 15 ख़ुर्दाद आंदोलन का सबसे महत्वपूर्ण तत्व है। इस दृढ़ता ने इस आंदोलन को व्यापक बनाया। यही विशेषता ईरान की इस्लामी व्यवस्था के राजनैतिक विचारों की भी आधार बनी कि जिसके पीछे सत्य व न्याय की प्राप्ति के मार्ग में संघर्ष पर आधारित इमाम ख़ुमैनी के विचार थे।

ईरान के ख़िलाफ़ अमरीका की साम्राज्यवादी नीतियों व हस्तक्षेप 15 ख़ुर्दाद आंदोलन का मुख्य कारण था। ईरान के राजनैतिक इतिहास में चाहे वह क्रान्ति से पहले या इस्लामी क्रान्ति की सफलता के बाद का समय हो, अमरीकी हस्तक्षेप कभी ख़त्म नहीं हुआ। अगर 15 ख़ुर्दाद आंदोलन पर समीक्षात्मक नज़र डालें तो यह बिन्दु स्पष्ट हो जाएगा कि इसके पीछे ईरान के ख़िलाफ़ अमरीका का साम्राज्यवादी व्यवहार है।

 

15 ख़ुर्दाद आंदोलन के कारण पर नज़र डालने से पता चलता है कि उस समय के राजनैतिक व सामाजिक हालात का इस आंदोलन के घटित होने में बहुत बड़ा रोल था। इस मामले का सबसे अहम आयाम, 1954 के सैन्य विद्रोह के बाद ईरान के संबंध में अमरीकी विदेश नीति थी। 1954 के सैन्य विद्रोह में मुसद्दिक़ की सरकार का तख़्ता पलटा गया ताकि अमरीका व ब्रिटेन की इच्छा से ईरान में शाह का अत्याचारी शासन मज़बूत हो।

 

बाद में मीडिया में प्रकाशित दस्तावेज़ों से यह बात स्पष्ट हुयी कि 19 अगस्त 1953 के सैन्य विद्रोह में अमरीका का हाथ था। सीआईए द्वारा प्रकाशित दस्तावेज़ से 19 अगस्त 1953 के विद्रोह में पश्चिमी देशों की संलिप्तता की पुष्टि होती है और स्वयं सीआईए ने इस विद्रोह में अपनी संलिप्तता को स्वीकार किया है। अमरीकी गुप्तचर संस्था सीआईए द्वारा आधिकारिक रूप से प्रकाशित दस्तावेज़ के अनुसार, सीआईए ने ईरान की तत्कालीन क़ानूनी सरकार को सैन्य विद्रोह के ज़रिए गिराने का षड्यंत्र दो महीना पहले तय्यार किया था। मोहम्मद मुसद्दिक़ की सरकार के पतन के 60 साल बाद सीआईए ने अपनी वर्गीकृत रिपोर्टों में मुसद्दिक़ की सरकार को गिराने में अपनी संलिप्तता को स्वीकार किया।

 

 इस संदर्भ में इस विद्रोह की साठवीं सालगिरह पर अमरीका के राष्ट्रीय सुरक्षा आर्काइव की ओर से दसियों दस्तावेज़ प्रकाशित हुए। फ़ॉरेन पॉलिसी पत्रिका ने एक लेख में जिसका शीर्षक था, सीआईए की स्वीकारोक्ति ईरान में सैन्य विद्रोह में उसका हाथ, लिखा कि सीआईए को मुसद्दिक़ की सरकार को गिराने में अपनी संलिप्तता को आधिकारिक रूप से मानने में 60 साल का वक़्त लगा। ये दस्तावेज़ मुसद्दिक़ की सरकार को गिराने में अमरीकी हस्तक्षेप की आधिकारिक घोषणा के समान हैं किन्तु इसके साथ ही विदेशी मीडिया में अमरीका को अन्य खिलाड़ियों के बीच एक खिलाड़ी दिखाने की कोशिश की जाती है ताकि देशी व विदेशी खिलाड़ियों के बीच अमरीका का मुख्य रोल छिप जाए।

 

 इतिहास से पता चलता है कि ईरान के राजनैतिक इतिहास में साम्राज्यवादी शक्तियों के मुक़ाबले में जनता के धार्मिक व राष्ट्रीय आंदोलन व दृढ़ता के अनेक उज्जवल पृष्ठ मौजूद हैं। इनमें से हर एक ईरान के राजनैतिक हालात में प्रभावी बदलाव का आरंभिक बिन्दु साबित हुआ।

 

पर्यवेक्षकों की नज़र में इमाम ख़ुमैनी ने आज़ादी और मानवीय प्रतिष्ठा पर बल और वर्चस्व का इंकार करते हुए दुनिया में प्रजातंत्र व आज़ादी की स्थापना का दावा करने वाली व्यवस्थाओं को चुनौती दी और राष्ट्रों की जागरुकता को क्रान्तिकारी आंदोलनों का आधार बनाया। इमाम ख़ुमैनी इस्लामी क्रान्ति को ऐसे मार्ग पर ले गये कि वह आदर्श बन गयी। इस महाक्रान्ति के प्रभाव में इस्लामी जगत में आशा व आत्मविश्वास की भावना मज़बूत हुयी और इस्लामी जागरुकता आंदोलन घटित हुए।

 

 

ईरान में इस्लामी क्रान्ति की सफलता और इस देश में उद्दंडी शाही शासन के पतन के बाद ईरान से अमरीका की दुश्मनी का नया दौर शुरु हुआ। अमरीकी वर्चस्व और साम्राज्यवादी शक्तियों के मुक़ाबले में ईरानी राष्ट्र की दृढ़ता व प्रतिरोध सिर्फ़ नारा नहीं थी बल्कि ईरानी राष्ट्र ने साम्राज्यवादी षड्यंत्रों के मुक़ाबले में अपने संकल्प को साबित करते हुए दुनिया के सामने साम्राज्य के ख़िलाफ़ संघर्ष के वास्तविक अर्थ को पेश किया। इस्लामी क्रान्ति की सफलता को लगभग 4 दशक का समय बीत रहा है, ईरानी राष्ट्र की दृढ़ता ने दुश्मन के षड्यंत्रों को नाकाम बना दिया है। आज ईरानी राष्ट्र अमरीकी प्रतिबंधों व धमकियों के बावजूद स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी के सिद्धांतों पर भरोसा करते हुए प्रगति के मार्ग पर आगे बढ़ रहा है। इन्हीं सिद्धांतों पर अमल करते हुए ईरानी राष्ट्र आत्म विश्वास से ओत प्रोत, स्वाधीन व सम्मानीय राष्ट्र बन चुका है। इस वक़्त विज्ञान की अनेक शाखाओं में ईरान को दुनिया के अग्रणी देशों में गिना जाता है। इसी प्रकार आज ईरान दुनिया के अन्य राष्ट्रों के लिए आदर्श बन चुका है।

 

सामाजिक-राजनैतिक दृष्टि से 15 ख़ुर्दाद की घटना के बाद के ईरान के राजनैतिक हालात ने यह दर्शा दिया कि ईरानी राष्ट्र ने किसी भी समय राजनैतिक, सांस्कृतिक, आर्थिक व सैन्य मामलों में अमरीकी प्रभाव को स्वीकार नहीं किया है। 15 ख़ुर्दाद आंदोलन का संदेश भी यही है कि अमरीकी वर्चस्व के मुक़ाबले में ईरानी राष्ट्र जागरुक है और इसका दृढ़ता से मुक़ाबला करेगा।