इमाम हुसैन की पाठशाला में-2
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने जो आंदोलन किया उसके बारे में कुछ लोग यह विचार रखते हैं कि कूफ़ा नगर के लोगों ने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को जो पत्र लिखे और शासन अपने हाथ में लेने का जो निमंत्रण दिया उसके कारण इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम कूफ़ा की ओर रवाना हुए।
इस तरह कर्बला और आशूर की घटना कूफ़ावासियों के निमंत्रण का परिणाम है। अतः यदि कूफ़ा वासी इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को निमंत्रण न देते तो आशूर की घटना भी न होती। जबकि सही विचार यह है कि बेशक इमाम हुसैन कूफ़ावासियों के निमंत्रण पर इस नगर के लिए रवाना हुए लेकिन उमवी अत्याचार और भ्रष्टाचार के विरुद्ध इमाम हुसैन का आंदोलन इसी निमंत्रण का परिणाम नहीं था। यह इससे कहीं अधिक विस्तृत क्षितिज वाला आंदोलन था। ईश्वर ने क़ुरआन में अपने विशेष दूतों की एक विशेषता यह बताई है कि वह ईश्वर के अलावा किसी से नहीं डरते। क़ुरआन में ईश्वर ने कहा है कि जो लोग ईश्वर का संदेश पहुंचाते हैं और केवल उसी से डरते हैं तथा उसके अलावा किसी से नहीं डरते उन्हें किसी बात का भय नहीं रहता और ईश्वर हिसाब किताब के लिए काफ़ी है। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के अस्तित्व में वीरता और साहस उदाहरणीय था।
बचपन से ही इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का साहस बहुत स्पष्ट था जिससे शत्रु और मित्र हर कोई हतप्रभ था। बचपन में ही वह धर्म के मार्ग से विचलित करने वाली योजनाओं के सामने डट जाया करते थे और झूठे दावे करने वालों की हक़ीक़त सबके सामने आ जाती थी और वह अपना झूठा दावा छोड़ देते थे। यही कारण था कि इस प्रकार के लोग अपने झूठे दावे इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के सामने पेश करने से घबराते थे। युवाकाल में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने जमल, सिफ़्फ़ीन और नहरवान नामक युद्धों में जिस वीरता का प्रदर्शन किया उसकी ख्याति बहुत दूर तक फैल गई। जब भी सैनिकों के हौसले कमज़ोर होते इमाम हुसैन की वीरता देखकर सबका मनोबल बढ़ जाता था।

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम इस्लाम के शत्रुओं और शोषण का प्रयास करने वाली शक्तियों से बहुत कड़ाई से पेश आते थे। जहां भी वह ग़लत काम होते देखते सत्य की रक्षा के लिए खड़े हो जाते थे। जब मुआविया के अत्याचार और भेदभाव के कारण लोग ग़रीबी का दंश झेल रहे थे और यमन से टैक्स की भारी रक़म मुआविया को मिलती थी कि वह इस रक़म को अपनी अय्याशी पर खर्च करे तो इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने मुआविया के इस करतूत को पैग़म्बरे इस्लाम की शैली के विपरीत देखकर आदेश दिया कि टैक्स की रक़म ग़रीबों में बांट दी जाए।
धर्म के दुशमनों की चालों और इरादों से पर्दा हटाने में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का साहस भी बहुत दर्शनीय था। जब मुआविया ने अपनी आयु के अंतिम समय में अपने बेटे यज़ीद के शासन के लिए रास्ता साफ़ करना चाहा और इमाम हुसैन तथा दूसरे कुछ लोगों के सामने यज़ीद की तारीफ़ की तो इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम खड़े हो गए और एक एतिहासिक भाषण देते हुए यज़ीद के काले करतूतों को बयान किया तथा यज़ीद की तारीफ़ करने पर मुआविया की आलोचना की। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के इस भाषण से मुआविया की कोशिशों पर पानी फिर गया।
इमाम हुसैन का साहस आशूर के दिन करबला में अपने चरम बिंदु पर नज़र आया। जब इमाम हुसैन के सारे साथी शहीद हो गए और वह अकेले रह गए और सामने 30 हज़ार की सेना थी तब भी इमाम हुसैन के इरादे में कोई कमज़ोरी नहीं आई। हालांकि एक ओर साथियों के शव पड़े थे और दूसरी ओर महिलाएं और बच्चे प्यास से तड़प रहे थे। इन परिस्थितियों में इमाम हुसैन एसी वीरता से लड़े के इतिहास इसका कोई और उदाहरण पेश करने में असमर्थ है। ईश्वर अपने विशेष बंदों के बारे में कहता है कि वे ईश्वर के मार्ग में जेहाद करते हैं और किसी आलोचक की आलोचना से नहीं घबराते, यह वीरता का जज़्बा ईश्वर की कृपा है जिसे वह चाहता है प्रदान करता है और ईश्वर विस्तृत करने वाला और सर्वज्ञानी है।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम के वीर पुत्र हज़रत इमाम हुसैन यह कदापि सहन नहीं कर सकते थे कि धर्म को नष्ट कर दिया जाए और वे चुप रहें। इसी लिए जब मदीना नगर में यज़ीद के गवर्नर मरवान बिन हकम ने उनसे कहा कि वह यज़ीद की बैअत करें तो इमाम हुसैन ने बड़े दुख भरे स्वर में कहा कि जब आम जनता यज़ीद जैसे व्यक्ति के नेतृत्व के चंगुल में फंस जाए तो फिर इस्लाम से विदाई ले लेना चाहिए। अतः इमाम हुसैन इस्लाम की रक्षा के लिए मैदान में उतर पड़े।
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने मदीना नगर से बाहर निकलते हुए भ्रष्टाचार के विरुद्ध संघर्ष शुरू कर दिया। मदीना नगर से जाते समय अपने भाई मोहम्मद हनफ़िया से अपनी वार्ता में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने अपने आंदोलन के कारणों और लक्ष्यों को बयान किया। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने कहा कि मैं अकारण, उद्दंडतापूर्ण तथा विनाशकारी और अन्यायी रूप से मदीने से नहीं निकला हूं बल्कि अपने नाना की क़ौम में सुधार के लिए निकला हूं। मैं अच्छाई का आदेश देने और बुराई से रोकने के कर्तव्य पर अमल करना चाहता हूं और अपने अपने नाना तथा अपने पिता की शैली के अनुसार काम करना चाहता हूं।
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम मुआविया के शासन काल में भी ख़ामोश नहीं बैठे। जब भी ज़रूरी होता वह अच्छाई का आदेश देने और बुराई से रोकने के अपने दायित्व पर ज़रूर अमल करते। उन्होंने मक्के की अपनी एक यात्रा में विभिन्न इस्लामी क्षेत्रों से आए विद्वानों और महत्वपूर्ण लोगों के बीच झिंझोड़ कर रख देने वाला एक भाषण दिया। इस भाषण में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने इस्लाम के वातस्तविक रूप की रक्षा के संबंध में विभिन्न शहरों के विद्वानों के भारी दायित्वों को बयान किया और उमवी शासकों के अत्याचारों पर ख़ामोशी के विनाशकारी परिणामों की ओर से सचेत किया। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने एसे सभी लोगों की आलोचना की जो उमवी शासकों की धर्म विरोधी नीतियों पर ख़मोश थे। उनका कहना था कि इन शासकों के साथ किसी भी प्रकार की नर्मी अक्षम्य गुनाह है। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने कहा कि हे ईश्वर तू जानता है कि उमवी शासकों के विरुद्ध हमने जो कुछ भी किया है वह दुनिया की महत्वहीन संपत्ति और शासन हाथ में लेने के नहीं है बल्कि इस लिए है कि हम तेरे बंदों को तेरे धर्म के प्रतीकों से अवगत करवाएं और तेरी बस्तियों में सुधार करें। हम चाहते हैं कि तेरे पीड़ित बंदे सुरक्षित रहें और धर्म के आदेशों, नियमों और पराम्पराओं पर अमल किया जाए।
कर्बला के पूरे सफ़र में इमाम हुसैन ने जो भी भाषण दिए और जो वार्तालाप किया है सब इतिहास में मौजूद है। इन भाषणों से पूरी तरह स्पष्ट हो गया कि यज़ीद के शासन के विरुद्ध इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के आंदोलन का लक्ष्य क्या था। यही वजह है कि जब रास्ते में यज़ीदी कमांडर हुर अपनी सेना के साथ मिला तो इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने हुर के सिपाहियों को संबोधित करते हुए पैग़म्बरे इस्लाम के एक कथन को आधार बनाकर कहा कि हे लोगो पैग़म्बरे इस्लाम ने कहा है कि यदि कोई व्यक्ति किसी अत्याचारी शासक को देखे जिसने ईश्वर द्वारा हराम घोषित की गई चीज़ों और हलाल और हलाल घोषित की गई चीज़ों को हराम कर रखा हो, ईश्वर से किया गया वादा तोड़ा हो, ईश्वर के बंदों के बीच पाप कर रहा हो, और वह व्यक्ति उस शासक के विरुद्ध अपने कर्म और बयान से विद्रोह न करे तो ईश्वर उसे उसी अत्याचारी के समान समझता है। अतः हे लोगो जान लो कि इन उमवी शासकों ने शौतान का रास्ता पकड़ लिया है, ईश्वर के आदेशों का पालन छोड़ दिया है, खुले आम भ्रष्टाचार कर रहे हैं और ईश्वर द्वारा निर्धारित की गई सीमाओं को तोड़ा है। यज़ीदियों ने बैतुल माल अर्थात सरकारी ख़ज़ाने को अपनी संपत्ति बना लिया है ईश्वर द्वारा हलाल घोषित की गई चीज़ों को हराम कर दिया है और मैं सुधार के लिए सबसे उचित पात्र हूं।

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का कारवां चल पड़ा। इसमें सबसे आगे इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम थे जिनका चेहरा सूरज की तरह दमक रहा था। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को कूफ़े में अब्दुल्लाह इब्ने ज़ियाद के हाथों हज़रत मुस्लिम इब्ने अक़ील की शहादत की ख़बर मिली लेकिन इसके बावजूद यह कारवां शराफ़ नामक मंज़िल से कूफ़ा के लिए रवाना हो गया। जब दोपह का समय हो गया तो कारवां में शामिल किसी साथ ने हैरत से कहा अल्लाहो अकबर। इमाम हुसैन ने पूछा कि यह नारा क्यों लगाया। उसने कहा कि यहां से कूफ़े के खजूर के बाग़ दिखाई देने लगे हैं। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने कहा कि यह खजूर के बाग़ नहीं हथियारों से लैस सेना है जो हमारी ओर बढ़ रही है। देखते ही देखते यज़ीदी सेना के कमांडर हुर अपने एक हज़ार सैनिकों के साथ आ पहुंचा। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने देखा कि सिपाही बहुत थके हुए हैं अतः आदेश दिया कि सिपाहियों और उनके घोड़ों को पानी पिलाया जाए।
नमाज़ का वक़्त हो गया था। सबने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की इमामत में नमाज़ अदा की। इसके बाद इमाम हुसैन ने अपने करवां को आगे बढ़ने का आदेश दिया लेकिन हुर ने रास्ता रोका। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने कहा कि तुम क्यों रास्ता रोक रहे हो। हुर ने कहा कि मुझे युद्ध करने का आदेश नहीं है लेकिन मुझसे कहा गया है कि कूफ़े तक आपके साथ साथ रहूं। मैं चाहता हूं कि मेरे और आपके बीच में कोई टकराव न हो। हुर ने कहा कि अल्लाह के वास्ते आप इस युद्ध से पीछे हट जाइए क्योंकि इस लड़ाई में आप निश्चित रूप से क़त्ल कर दिए जाएंगे। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने कह कि तुम मुझे मौत से डराते हो। क्या मुझे क़त्ल कर देने से तुम्हारा सब कुछ संभल जाएगा। इसके बाद इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने अपने कारवां को कर्बला की ओर मोड़ दिया। हुर ने इस बारे में इब्ने ज़ियाद को सूचित किया। जब इब्ने ज़ियाद को यह सूचना मिली तो उस समय इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का कारवां कर्बला पहुंच चुका था। इब्ने ज़ियाद ने हुर को पत्र लिया कि इमाम हुसैन को एक एसी जगह रोको जहां पानी न हो। हुर ने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम से कहा कि आप को अब मैं और आगे नहीं जाने दूंगा क्योंकि इब्ने ज़्याद ने मुझ पर एक जासूस लगा रखा है जो यह देखाता है कि मैं यज़ीद के आदेशों का पालन कर रहा हूं या नहीं। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के कारवां में शमिल एक व्यक्ति ने कहा कि आइए हम हुर्र से युद्ध कर लेते हैं। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने इस प्रस्ताव को रद्द कर दिया है और कहा कि हम कभी भी युद्ध की शुरुआत नहीं करेगे। यह स्थिति इसी तरह जारी रही यहां तक कि उमरे साअद को यज़ीदी सेना का सेनापति बनाया गया।

आशूर का दिन हुआ तो देनों सेनाएं आमने सामने खड़ी हुईं। इस बीच हुर ने अपने एक साथी से कहा कि मैं खुद को स्वर्ग और नरक के बीच में देख रहा हूं। ईश्वर के सौगंध में स्वर्ग के अलावा किसी चीज़ को नहीं चुनूंगा चाहे इसके नतीजे में मेरे बदन के टुकड़े हो जाएं या मुझे जला दिया जाए। हुर ने यह कहा और इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के ख़ैमे की ओर रवाना हो गए। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के पास पहुंच कर हुर ने कहा कि हे पैगम्बरे इसलाम के नवासे मैं आप पर क़ुरबान जाऊं मैं वही व्यक्ति हूं जिसने आपका रास्ता रोका और यहां इस मरुस्थल में ले आया। मुझे यह उम्मीद नहीं थी कि यह लोग आप से युद्ध करने लगेंगे। बहरहाल मैं आपकी सेवा में आया हूं क्या मेरा प्रायश्चित स्वीकार हो सकता है। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने बड़ी विनम्रता से कहा कि हां ईश्वर प्रायश्चित को स्वीकार करने वाला है। हुर ने इमाम हुसैन की ओर से यज़ीदी सेना से युद्ध लड़ा और बड़ी बहादुरी से लड़ा तथा इसी लड़ाई में वे शहीद हो गए।