स्वतंत्रता प्रभात 3
(last modified Sat, 11 Feb 2017 11:36:06 GMT )
Feb ११, २०१७ १७:०६ Asia/Kolkata

इस्लामी क्रान्ति की 38वीं सालग्रह निकट है।

यह क्रान्ति इसी तरह क्षेत्रीय व अंतर्राष्ट्रीय राजनैतिक समीकरणों में ध्यान का केन्द्र बनी हुई। इसी प्रकार क्षेत्रीय समीकरणों पर इसका असर है। इस्लामी क्रान्ति इमाम ख़ुमैनी के नेतृत्व में सफल हुयी। उन्होंने इस क्रान्ति को सफल बनाकर इतिहास रच दिया। बीसवीं शताब्दी की इस महाघटना ने एक ओर दुनिया में छायी दो ध्रुवीय व्यवस्था को उलट दिया तो दूसरी ओर ऐसे शासन को जड़ से उखाड़ फेका जो बाहरी शक्तियों पर निर्भर बहुत की मज़बूत शासन समझा जाता था और उसे बड़ी शक्तियों की ओर से समर्थन भी हासिल था। इमाम ख़ुमैनी ईरान जैसे देश में जो स्ट्रैटिजिक व आर्थिक दृष्टि से बहुत अहम है, ऐसा बड़ा राजनैतिक बदलाव लाए जो जनता पर आधारित है। इस्लामी क्रान्ति ने जो मुसलमान देशों में गहरी जागरुकता पैदा की उससे गहरे राजनैतिक बदलाव व राजनैतिक आंदोलनों की पृष्ठिभूमि मुहैया हुयी। इस क्रान्ति से एक बार फिर इस्लाम को दुनिया में एक निर्णायक शक्ति के रूप में पहचनवाया। वैचारिक आधार, नेतृत्व क्षमता और क्रान्ति से उत्पन्न गहरे बदलाव ने बहुत से राजनैतिक पंडितों को क्रान्ति की अवधारणाओं के बारे में पुनर्विचार करने पर मजबूर कर दिया। इस्लामी क्रान्ति की सफलता की वर्षगांठ इस बात का अवसर देती है कि हम इस बात को फिर से समझें कि यह क्रान्ति किस तरह कामयाब हुयी, क्योंकि इस क्रान्ति के ईरान सहित दुनिया पर गहरे प्रभाव के मद्देनज़र इसमें युवा पीढ़ी को बताने के लिए बहुत कुछ है।

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इस्लामी क्रान्ति को सफल बनाने में इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह के साथ ऐसे साथी थे जिनका क्रान्ति की सफलता और इस्लामी गणतंत्र व्यवस्था को मज़बूत बनाने में प्रभावी योगदान रहा है। इमाम ख़ुमैनी के इन सभी साथियों का पूरे संघर्ष के दौरान अत्याचारी शाही शासन के तत्वों की ओर से या तो पीछा किया जाता रहा, या उन्हें जेल में क़ैद किया गया या फिर देशनिकाला दिया गया। ईरान में इस्लामी क्रान्ति के अभियान के दौरान शहर व गांव की जनता के सभी वर्गों की भागीदारी का कारण यह था कि लोग शाही व्यवस्था से नफ़रत करते थे क्योंकि उसने देश में घुटन का माहौल बना रखा था और आज़ादी की आवाज़ को दबाने के लिए अनगिनत अपराध किए थे। इमाम ख़ुमैनी के साथियों ने अपने समय के सबसे ख़तरनाक जासूसी संगठन सावाक की ओर से दी गयी यातनाओं का जो उल्लेख किया है उससे देश में व्याप्त घुटन के माहौल के एक भाग का अंदाज़ा होता है। पिछले कार्यक्रम में वरिष्ठ नेता व इमाम ख़ुमैनी के उत्तराधिकारी आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई और ईरान के दूसरे राष्ट्रपति शहीद रजाई की यादों का उल्लेख किया था।   

इमाम ख़ुमैनी के निकटवर्ती साथियों में आयतुल्लाह हाशेमी रफ़सन्जानी भी थे जिन्होंने अपने संघर्ष काल का कुछ समय जेल में भी बिताया। उन्होंने गिरफ़्तारी के बाद पहली रात हुयी पूछताछ की यादें इन शब्दों में पेश की, “कोड़ा मारने और यातना देने के साथ गालियां और अपमान भी कर रहे थे। थोड़ी देर पिटाई करते तो एक कहता था मत मारो अभी बताएगा। कभी मुझे दीवार की ओर मुंह करके खड़ा कर देते और गर्दन पर चाक़ू रखकर कहते कि गर्दन काट देंगे। मेरे गले में घाव हो गया था। एक बार मेरा अपमान करने के लिए मुझे नंगा कर दिया। लगभग 4 बजे सुबह तक ऐसे ही हालत में रखा। कोड़ा गोश्त काट कर हड्डी तक पहुंच गया था। एक जगह से हड्डी भी टूट गयी थी। पूछताछ के कुछ दिन बाद आंख पर पट्टी बांध कर और कपड़े बदल कर मुझे सैन्य अस्पताल ले गए।”

कैहान अख़बार के संपादक हुसैन शरीअतमदारी को आयतुल्लाह रफ़सन्जानी के क़ैद होने से जुड़ी अहम बात याद है। वह इस संदर्भ में कहते हैं, “एक बार पूछताछ के दौरान मैंने ख़ुद को यातना के कमरे में बेहोश दर्शाया ताकि अधिकारी मुझे यातना न दें। उस वक़्त मैंने देखा कि उस यातना कक्ष में श्री हाशेमी रफ़सन्जानी को लाया गया। उन्हें मैने इससे पहले बैठकों में देखा था और उन्हें पहचानता था। अज़्ग़न्दी ने जो यातना देने में कुख्यात था, श्री रफ़सन्जानी के गले में फ़्रेंच नामक उपकरण फिट करके घुमा दिया। वह यह उपकरण है जिसे गर्दन में लगाकर उसे पेच से कसते जाते हैं जिससे सांस लेना नामुमकिन हो जाता है। मैंने कनखियों से वह दृश्य को देखा। अज़्ग़न्दी ने इस तरह फ्रेंच उपकरण को कस दिया था कि श्री हाशेमी का दम घुटने वाला था। अज़्ग़न्दी यातना देने के साथ साथ गाली भी दे रहा था। उसके बाद उसने कहा कि तुम ख़ुमैनी के लिए क्यों प्रचार कर रहे हो। अज़्ग़न्दी ने फ्रेंच को और सख़्त करते हुए श्री हाशेमी से कहा, अब ऐसा न करना और फिर कुछ क्षण बाद फ़्रेंच को खोल दिया। जैसे ही फ़्रेंच खुला श्री हाशेमी ने कहा, मैं फिर ऐसा ही करुंगा।”   

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शाही शासन के लिए इस बात से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता था कि अत्याचारी शासन का विरोध करने वाला मर्द, औरत या नौजवान है। वह शासन का विरोध करने वाले हर व्यक्ति को सख़्त से सख़्त यातना देते थे। सख़्त यातना पाने वालो में एक संघर्षकर्ता महिला भी थीं जिनका नाम था मर्ज़िया हदीदची दब्बाग़। मर्ज़िया दब्बाग़ वह महिला हैं जो 1988 में पूर्व सोवियत संघ के नेता मीख़ाईल गोर्बाच्योफ़ को इमाम ख़ुमैनी की ओर से ख़त लेकर जाने वाले प्रतिनिधिमंडल में शामिल थीं जिसकी अध्यक्षता आयतुल्लाह जवादी आमुली ने की थी।

मर्ज़िया दब्बाग़ ने सावाक के एजेंटों के हाथों गिरफ़्तारी और उन्हें दी गयी यातना के बारे में कहा, “थप्पड़, अपमान और फिर कोड़े, डंडे और गाली से यातना शुरु हुयी। कई बार मेरे हाथ पैर कुर्सी कर बांध कर और लोहे या तांबे की टोपी मेरे सिर पर रखकर विभिन्न वोल्ट का करंट लगाते जिससे शरीर थरथरा जाता। मुझे हर रोज़ कोड़े और डंडे मारते थे। कभी सामान्य तरीक़े से तो कभी ख़ास तरीक़े से कोड़े और डंडे मारते थे। कभी कभी पैर के तलवों पर इस तरह से कोड़े मारते थे कि मैं बेहोश हो जाती थी। उसके बाद पानी डाल कर मुझे उठाते थे कि चलूं ताकि पैर में सूजन न आए। इस कृत्य से शरीर में जो पीड़ा होती थी वह बहुत ही असहनीय होती थी।” मर्ज़िया दब्बाग़ सावाक की ओर से मिली यातना की कटु याद का एक और स्थान पर यूं उल्लेख करती हैं, “ एक बार मुझे तख़्त पर लिटाकर मेरे हाथ पैर दोनों ओर बांध दिए। जब यातना देने वाला कमरे में दाख़िल हुआ तो उसके मुंह में सिगरेट थी। उसने तुरंत सिगरेट मेरे हाथ पर रगड़ कर बुझा दी और मेरा मखौल उड़ाते हुए उसने कहा, ओह! सिगरेट बुझ गयी। उसने दुबारा सिगरेट जलायी। इस बार उसने मेरे शरीर के संवेदनशील हिस्से पर बुझाई जिससे सारी कोशिकाओं में पीड़ा महसूस हुयी।”     

सावाक के एजेंट प्रतिरोध की भावना और संघर्षकर्ताओं की दृढ़ता को ख़त्म करने के लिए विभिन्न प्रकार की शैली अपनाते थे। इस शैली में क़ैद या फ़रार कर चुके संघर्षकर्ताओं के बच्चों और निकटवर्तियों की गिरफ़्तारी और उन्हें यातना देना शामिल था। इस शैली से श्रीमती दब्बाग़ को बहुत ज़्यादा मानसिक पीड़ा होती थी। सावाक के एजेंटों ने उनकी 14 साल की बेटी को गिरफ़्तार करके बहुत सख़्त यातना दी ताकि उनकी मां के ज़रिए क्रान्तिकारियों के बारे में सूचनाएं हासिल कर सकें।

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सावाक की यातना से इमाम ख़ुमैनी के कई साथी शहीद हो गए। इन लोगों में आयतुल्लाह ग़फ़्फ़ारी और आयतुल्लाह सईदी उल्लेखनीय हैं। इस तरह की बहुत ज़्यादा यादें हैं जिसका इस सीमित समय में उल्लेख मुमकिन नहीं है। हमने इस कार्यक्रम में अत्याचारी शासक मोहम्मद रज़ा पहलवी और उसके पिता के दौर में राजनैतिक क़ैदियों की हज़ारों पेज पर आधारित यादों में से एक छोटा सा हिस्सा आपकी सेवा में पेश किया। अंत में सावाक के एजेंटों की यातना देने की कुछ शैलियों का उल्लेख करेंगे जिसकी उन्होंने मोसाद और सीआईए से ट्रेनिंग ली थी। सावाक की यातना देने की एक शैली यह थी कि वह क़ैदियों को जेल की सीढ़ियों और दीवार से बांध देते थे। हाथ और पैर को रस्सी या ज़न्जीर से सरिये में बांध देते थे। क़ैदी कुछ समय तक इसी हालत में रहता जिससे हाथ-पैर में दर्द, पेट में मरोड़, पेशाब निकलने की शिकायत, पैर में चुनचुनाहट और थकावट होती।

क़ैदियों के बदन के संवेदनशील हिस्सों पर कोड़े मारना भी यातना देने की एक शैली थी। नंगा करके तख़्त पर लिटाना और कोड़े मारना आम बात थी। क़ैदी को नंगा करके लोहे के तख़्त पर लिटा देते जिस पर गद्दा नहीं होता था, दोनों पैर को तख़्त के किनारों पर बांध देते और उसके शरीर पर ऊपर से नीचे तक कोड़े मारते थे। कभी कभी आरोपी की चीख़ की आवाज़ को दबाने के लिए मुंह में कपड़ा ठूंस देते थे। इस कृत्य से क़ैदी को मानसिक यातना भी होती थी। यातना देने वाले अपनी नीचता की सभी हद पार करते हुए आरोपी को नंगा करके उसके शरीर में लकड़ी या धातु की कोई चीज़ डाल देते थे। आरोपी को जलाना भी यातना की एक प्रचलित शैली थी। जलाने के लिए आयन अर्थात इस्तरी या सरिया को धिकाकर आरोपी के पूरे शरीर पर दबाते थे। इसी प्रकार नाख़ुन के नीचे सुई चुभोना भी यातना का एक प्रचलित अंदाज़ था। सावाक इतने प्रकार से यातनाएं देता था कि समय की कमी के कारण सबका उल्लेख संभव नहीं है।