वसन्त के बारे कु़रआने मजीद की आयतों की व्याख्या
(last modified Mon, 19 Mar 2018 09:13:18 GMT )
Mar १९, २०१८ १४:४३ Asia/Kolkata

सर्दियों की बड़ी बड़ी रातों और छोटे छोटे दिनों के गुज़रने के बाद जब रातें छोटी और दिन बड़े होने लगते हैं तो लोगों के कान, वसन्त की  आहट पर लग जाते हैं ।

जाड़ा, वसन्त ऋतु  की आगवानी के लिए आगे बढ़ता है और फिर बहार आ जाती है और आते ही सूखी व निर्जीव धरती पर अपना हरा- भरा , रंग बिरंगा आंचल कुछ एेसे फैला देती है कि धरती का रंग रूप ही बदल जाता है और जाड़ों में  सफेद कपड़ों  में लिपटी कराहती  किसी विधवा की तरह नज़र आने वाली यह धरती, अचानक ही  सोलह श्रंगार किये किसी दुल्हन की तरह नजर आने लगती है लेेकिन उसकी सुन्दरता के पीछे जो संदेश होता है उसे मन की आंखों से ही पढ़ा जा सकता है और मन की आंखों ईश्वर से जुड़ने से ही खुलती हैं और कुरआने मजीद सूझ बूझ बढ़ाने में काफी मददगार होता है। कुरआने मजीद के सूरए फ़ातिर की आयत नंबर 9 में कहा गया है कि और वह ईश्वर है जिसने हवाओं को भेजा, फिर बादलों को भड़काया, फिर उन्हें शहरों की ओर भेजा ताकि उनके द्वारा धरती को  जो मर चुकी थी, फिर से जीवित करे और ऐसा ही है प्रलय के दिन लोगों को दोबारा जीवित किया जाना। 

 

कुरआने मजीद में स्पष्ट रूप से " बसन्त" का नाम नहीं लिया गया है लेकिन उसकी दसियों आयतों में बहार की विशेषताओं और लाभों का उल्लेख किया गया है। कुरआने मजीद की बहुत सी आयतों में बादलों, वर्षा, पानी, पेड़ पौधों और फलों व बागों की बात की गयी है और यह सारी आयतें, वास्तव में बहार का गुण भी बयान करती हैं। इसके साथ ही हरियाली, धरती पर पेड़ पौधे उगने और खेती बाड़ी जैसे बहार के लाभों को भी कु़रआने मजीद में बार बार गिनाया गया है। इस तरह से यदि देखा जाए तो वसन्त ऋतु एक ऐसी पाठशाला है जिसमे ईश्वर और आत्मज्ञान का पाठ पढ़ाया जाता है और ईश्वर इस तरह से उन लोगों को जवाब देता है जो यह कहते हैं कि इन्सान मर जाने के बाद कैसे फिर से जीवित हो सकता है? । कुरआन मजीद के सूरए बक़रह की आयत नंबर 164 जन्म व मृत्य की इस पूरी प्रक्रिया और उससे मिलने वाले पाठ की ओर इशारा किया गया है। इस आयत में कहा गया है कि निश्चित रूप से आकाशों, धरती, की रचना, रात दिन के अंतर और  समुन्द्र में दौड़ने वाली नौका कि जिससे लोगों को फायदा होता है और जो ईश्वर आकाश से पानी बरसाता है और फिर उससे मर जाने वाली धरती में प्राण फूंकता है और धरती पर जो उसे भांति भांति के जानवर फैलाए हैं , यह जो हवा चलती है और जो ज़मीन व आसमान के बीच सधे हुए बादल हैं यह सब बुद्धि रखने वालों के लिए चिन्ह हैं। 

 

 यह तो वास्तव में सोचने व चिंतन करने का चरण है जिसका उल्लेख कुरआने मजीद की इस आयत में किया गया है और फिर इस भूमिका के बाद यह चरण और वह पाठ है जिसका उल्लेख कुरआने मजीद के सूरए नूह की आयत नंबर 17 और 18 में किया गया है। इस आयत में कहा गया है कि और अल्लाह ने तुम्हें धरती से उगाया है फिर तुम्हें वहीं लौटा देगा और फिर वहीं से निकालेगा। इस आयत में , मनुष्य के इस नश्वर संसार के जीवन का सार पेश किया गया है और यह बताया गया है कि इन्सान मिट्टी से बना है और एक दिन उसे उसी मिट्टी में मिल जाना है और यही पर सब कुछ खत्म नहीं होगा, मिट्टी में मिल जाने के बाद क़यामत के दिन ईश्वर फिर से उसी मिट्टी से इन्सान को निकालेगा और उससे उसके कर्मों का हिसाब लेगा। 

 

कुरआने मजीद की विभिन्न आयतों में चिंतन पर बहुत बल दिया गया है और इस के लिए समुद्र, संगम, नदी, वर्षा , पहाड़ , आकाश, धरती, हवा, तूफान, सूरज, सितारे, चांद पेड़ पौधे और इस तरह से बहुत से प्रकृति के रूपों का उल्लेख किया गया है और कहा गया है कि इन पर विचार किया जाना चाहिए। इसी लिए कहा जाता है कि यह दुनिया, ईश्वर का दर्पण है और इस दुनिया में विदित रूप से बसन्त ईश्वर की महानता का वह दृश्य है जो इस प्रकृति रूपी दर्पण में सब से अधिक साफ दिखायी देता है। यह दृश्य जो देख लेता है उसके सामने संसारिक सुख  की सच्चाई खुल कर सामने आ जाती है और वह इस लोक के क्षणिक सुख को त्याग कर, परलोक के सदैव रहने वाले सुख के लिए काम करता है और उसके लिए स्वंय को तैयार करता है लेकिन जिसके मन की आंखें बंद होती हैं वह इसी संसार के जल्द ही खत्म हो जाने वाले सुखों को प्राथमिकता देता है और इस संसार को जो वास्तव में परलोक के गंतव्य का मार्ग है, गंतव्य समझ लेता है, वास्तव में एेसे लोगों को बहुत घाटा होता है लेकिन जब उनको इस बात का आभास होता है तो फिर बहुत देर हो चुकी होती है। 

 

ईश्वर ने सत्य को सब के सामने प्रकट करने की व्यवस्था की है और इसी लिए वह मौसमों के बदलने की प्रक्रिया की मिसाल देकर, मनुष्य को फिर से जीवित किये जाने के विचार को सिद्ध करता है। जैसा कि कु़रआने मजीद के सूरए हदीद की आयत नंबर 17 में आया है कि जान लो कि निश्चित रूप  से अल्लाह धरती को उसकी मौत के बाद दोबारा जीवित करता है, हमने तुम्हारे लिए आयतों को स्पष्ट रूप से बयान किया है कि शायद तुम्हें अक़्ल आ जाए। 

इसी प्रकार सूरए फातिर की आयत नंबर 9 में कहा गया है कि वह अल्लाह है जिसने हवा को भेजा तो उसने बादलों को भड़काया फिर उसे हमने मृत नगर की ओर भेजा और हमने धरती को मौत के बाद फिर से जीवन प्रदान किया और मनुष्य को दोबारा जीवित होना भी ऐसे ही है। 

 

इस तरह से हम यह कह सकते हैं कि वसन्त का मौसम, धर्मों में दोबारा जीवित किये जाने की विचारधारा का उदाहरण है। इस उदाहरण को हम हर साल देखते हैं  इस लिए हमें उससे पाठ लेना चाहिए। इतिहास के अनुसार पैगम्बरे इस्लाम के एक अनुयायी ने उनसे पूछा कि अल्लाह किस प्रकार प्रलय के दिन मरे हुए इन्सानों को फिर से जीवित करेगा? क्या इस संसार में इसकी कोई मिसाल है? पैगम्बरे इस्लाम ने कहा कि क्या तुम ने कभी सूखा ग्रस्त और मरी हुई ज़मीन को देखा है ? क्या कुछ दिनों के बाद वही ज़मीन तुम्हें हरी भरी नज़र नही आयी ? उस अनुयायी ने कहा जी हां । पैगम्बरे इस्लाम ने कहा ः ईश्वर इसी प्रकार मुर्दों को फिर से ज़िन्दा करेगा और यह इसी सृष्टि में मौजूद उदाहरण है। 

 

अंत में यह कहना चाहेगें कि जिस तरह से मौसम, बदलाव के ज़रिए अपने अंदर अपार सुन्दरता भर लेता है उसी तरह हम भी नये विचारों और नये व्यवहारों से खुद को सुसज्जित कर सकते हैं । हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि हर वसन्त ऋतु  अपनी समस्त सुन्दरताओं के बावजूद हमें यह याद दिलाता है कि हमारी उम्र का एक साल कम हो गया इस लिए हमें हर क्षण से लाभ उठाना चाहिए और उसे किसी अच्छे काम के लिए प्रयोग किया जाना चाहिए। जैसा कि पैगम्बरे इस्लाम ने इन क़ीमतों लम्हों की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए अपने प्रसद्धि अनुयाई, अबू ज़र से कहा कि  हे अबूज़र! पांच चीज़ों के आने से पहले, पांच चीज़ों से लाभ उठाने का अवसर न गवाओ, बुढ़ापे से पहले जवानी से, बीमारी से पहले स्वास्थ्य से, निर्धनता से पहले धन व दौलत  से, व्यस्त होने से पहले समय से और मौत से पहले जीवन से। 

 

 

 

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