Pars Today
हमने आपको बताया था कि इस्लामी मूल्यों के विरुद्ध कार्यवाहियां उस समय आरंभ हुईं जब इस्लामी समाज की बागडोर कुछ आत्ममुग्ध शासकों के हाथों में आई।
आपको याद होगा कि पिछले कार्यक्रम में हमने इस बात का उल्लेख किया कि कूफ़ा और शाम में इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम के भाषण का आम लोगों पर क्या असर हुआ।
हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम का जन्म सन 38 हिजरी क़मरी के जमादिउल औवल महीने के पूर्वार्ध में हुआ।
हमने इस बात की चर्चा की थी कि कुछ लोग आशूरा की एतिहासिक व महान घटना को एक सामान्य घटना समझते हैं जबकि ऐसा बिल्कुल नहीं है।
आपको अवश्य याद होगा कि पिछले कार्यक्रम में हमने कहा था कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने बनी उमय्या के दौर से मुकाबला करने के लिए बहुत प्रयास किया।
हमारी चर्चा यज़ीद बिन मोआविया के हाथ में इस्लामी शासन की लगाम आने के बाद शहीदों के सरदार हुसैन बिन अली अलैहेमस्सलाम के व्यवहार के बारे में है।
हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम कभी भी मोआविया की पाखंडी नीतियों के मुकाबले में ख़ामोश नहीं रहे जबकि मोआविया सदैव अपने विरोधियों की आवाज़ को दबाने की चेष्टा में रहता था।
हमारी चर्चा यहां पहुंची थी कि मोआविया के काल में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम उसके अत्याचार पर ख़ामोश नहीं रहते थे।
कूफ़े की मस्जिद में नमाज़ की हालत में हज़रत अली अलैहिस्सलाम की शहादत के बाद इमाम हसन अलैहिस्सलाम की इमामत का काल शुरू हुआ।
पैग़म्बरे इस्लाम (स) के छोटे नवासे इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का जन्म मदीना नगर में हुआ था।