देश की सुरक्षा के लिए आवश्यक है रक्षातंत्र की मज़बूती
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इस्लामी क्रांति की सफलता के बाद वाले वर्षों में प्रतिरक्षा के क्षेत्र में ईरान ने जो प्रगति की है उससे शत्रओं में भय और क्रोध पाया जाता है।
(last modified 2023-04-09T06:25:50+00:00 )
Feb १७, २०२३ १७:४१ Asia/Kolkata

इस्लामी क्रांति की सफलता के बाद वाले वर्षों में प्रतिरक्षा के क्षेत्र में ईरान ने जो प्रगति की है उससे शत्रओं में भय और क्रोध पाया जाता है।

विश्व के विभिन्न देशों की प्रतिरक्षा शक्ति की सुरक्षा और उसको विकसित करने की शैली अलग-अलग है।  ईरान जैसा देश जिसकी स्ट्रैटेजिक पोज़ीशन हो और जिसको सदैव ही विदेशी शत्रुओं की धमकियों का सामना रहे उसके लिए बहुत ज़रूरी है कि वह अपनी प्रतिरक्षा शक्ति को मज़बूत बनाए और साथ ही उसको अपग्रेड भी करता रहे।  विभिन्न संकटों, कुछ देशों की अक्षमताओं और विदेशी हस्तक्षेप के कारण पश्चिमी एशिया एसा क्षेत्र बन चुका है जहां पर हर समय ख़तरे मुंह बाए खड़े हैं। 

ईरान की इस्लामी क्रांति की सफलता के साथ ही अमरीका सहित ईरान के शत्रुओं का यह प्रयास रहा है कि वे विभिन्न मार्गों से इस देश पर दबाव बनाए रखें जिसमें सैन्य हस्तक्षेप भी शामिल है।  इसी उद्देश्य से उन्होंने इराक़ के तानाशाह सद्दाम को ईरान पर हमले के लिए उकसाया जिसके परिणाम में ईरान पर थोपा गया आठ वर्षोंय युद्ध का सिलसिला जारी रहा।  हालांकि दुश्मनों की सोच यह थी कि ईरान के विरुद्ध युद्ध छेड़कर इस देश को कमज़ोर कर दिया जाएगा जबकि परिणाम इसके विपरीत सामने आए। 

ईरान पर थोपे गए युद्ध ने इस्लामी गणतंत्र ईरान को अपनी प्रतिरक्षा शक्ति को अधिक से अधिक मज़बूत करने के प्रति कटिबद्ध कर दिया।  उसका परिणाम यह निकला कि आज ईरान मिसाइल, ड्रोन, रेडार और आधुनिक तकनीक के क्षेत्र में बहुत आगे निकल गया।  वर्तमान समय में ईरान की प्रतिरक्षा शक्ति इस स्तर पर पहुंच चुकी है कि वह हर प्रकार की सुरक्षा चुनौती का सामना करने के लिए पूरी तरह से तैयार है। 

ईरान द्वारा अपनी प्रतिरक्षा शक्ति को मज़बूत करने का दूसरा कारण यह है कि अवैध ज़ायोनी शासन जैसे ईरान के शत्रु और उसके कुछ प्रतिस्पर्धी, अपनी रक्षा शक्ति को बढ़ाने के लिए अरबों डाॅलर ख़र्च कर रहे हैं।  उदाहरण स्वरूप "एसआईपीआरआई" नामक अन्तर्राष्ट्रीय संस्था के अनुसार ज़ायोनी शासन ने अपनी रक्षा शक्ति को मज़बूत करने के लिए सन 2021 में 25 अरब डाॅलर ख़र्च किये थे।  यह राशि, ईरान के रक्षा बजट का लगभग 4 बराबर है।  इसी बीच सऊदी अरब ने अपनी प्रतिरक्षा को सुदृढ़ करने के उद्देश्य से 55 अरब डाॅलर ख़र्च किये जो ईरान के रक्षा बजट का लगभग आठ गुना है।  इस हिसाब से अगर देखा जाए तो पश्चिमी एशिया में ईरान वह देश है जिसने अपनी प्रतिरक्षा पर सबसे कम पैसा ख़र्च किया है। 

हालांकि ईरान के शत्रु इसी मुद्दे को बढ़ा-चढाकर इसेे ईरानोफोबिया के रूप में पेश करते रहते हैं।  इसका मुख्य कारण यह है कि वे ईरान की बढ़ती हुई शक्ति को अपने विस्तावादी कार्यों के मार्ग में बाधा के रूप में देखते हैं।  यह बात पूरी तरह से स्पष्ट है कि वर्तमान समय में राष्ट्रीय प्रतिरक्षा शक्ति, राष्ट्रीय संप्रभुता की रक्षा का एक महत्वपूर्ण कारक बन चुकी है। 

इस संदर्भ में इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता  कहते हैं कि वह देश जिसके इतने अधिक दुश्मन हों उसको अपने राष्ट्र की सुरक्षा के प्रति सचेत रहना ज़रूरी है।  उन्होंने कहा कि इसीलिए हमने प्रतिरक्षा की ओर विशेष ध्यान दिया है।  आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई कहते हैं कि पवित्र क़ुरआन के आदेश के आधार पर भविष्य में भी हम इस क्षेत्र में जितना प्रयास कर सकते हैं करेंगे।

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