Feb २७, २०२३ २०:२२ Asia/Kolkata
  • ईरान एक झटके में यूरोपीय देशों के अहंकार को मिट्टी में मिला सकता है, लेकिन ऐसा क्यों नहीं करता इसकी वजह जानकर आप भी करेंगे तारीफ़

एक ओर अमेरिका के साथ मिलकर यूरोपीय देश लगातार ईरान पर अमानवीय और ग़ैर-क़ानूनी प्रतिबंध लगाए जा रहे हैं। साथ ही पाबंदियां लगाने वाले देश यह नहीं सोचते हैं कि इन प्रतिबंधों से कौन लोग सबसे ज़्यादा प्रभावित होते हैं। वे तो केवल अपनी ताक़त और अहंकार का प्रदर्शन करने में ही अपनी जीत समझते हैं।

इस्लामी गणराज्य ईरान में इस्लाम धर्म के सिद्धांतों पर आधारित शासन है। ईरान की सरकार कभी भी कोई भी ऐसा फ़ैसला नहीं लेती है और न ही लेगी जो आम और बेगुनाह इंसानों के लिए परेशानी और कठिनाईयों का कारण बने। ईरान की इस्लामी सिद्धांतों पर चलने वाले शासन के इस कार्य को दुश्मन इसकी कमज़ोरी समझते हैं, जबकि उन्हें यह नहीं पता कि यह ईरान की कमज़ोरी नहीं है बल्कि उसकी शराफ़त और अपने धर्म के प्रति उसका विश्वास है जो उसे ऐसा कोई भी काम करने की इजाज़त नहीं देता है कि जिससे किसी भी इंसान को किसी भी तरह की तकलीफ़ पहुंचे। क्योंकि प्रतिबंधों और पाबंदियों से सबसे ज़्यादा किसी भी को परेशानियां या कठिनाईयां सहन करनी पड़ती हैं तो वह है उस देश की जनता कि जिनपर प्रतिबंध लगाए जाते हैं। जैसाकि कोरोना महामारी के समय ईरान में कोविड-19 से संक्रमित लोगों की जान बचाने के लिए पाबंदियों की वजह से दवाईयों और अन्य मेडिकल्स उपकरणों की ख़रीदारी में बधाएं पैदा हुईं और यह रुकावटें कारण बनी बहुत से लोगों की जान जाने की। वहीं हाल ही में सीरिया और तुर्किए में आए भीषण भूंकप में हज़ारों लोगों की जान गई और लाखों लोग घायल हो गए। वहीं कई लाख लोग बेघर भी हुए हैं। जिन्हें इस समय सबसे ज़्यादा मानवीय मदद की ज़रूरत है।

अमेरिका और यूरोपीय देशों के प्रतिबंधों की वजह से मानवीय सहायता से वंचित सीरिया की भूकंप पीड़ित जनता।

इस बीच तुर्किए को जहां दुनिया भर के देशों से लगातार मदद मिल रही है वहीं सीरिया पर अमेरिका और यूरोपीय देशों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों की वजह से बहुत ही कम देश मानवता प्रेमी सहायता भेज पा रहे हैं। सीरिया के भूकंप पीड़ितों की मदद करने वाले देशों में ईरान सबसे आगे है, जबकि भारत की ओर से भी इस देश को सहायता सामग्री भेजी गई है। अब सवाल यही है कि क्या वे देश जो अपने आपको दुनिया के सबसे विकासशील देश बताते हैं, जो मानवाधिकारों के रक्षक होने का दावा करते हैं, उनकी कथनी और करनी में कितना अंतर है? इस बीच इस्लामी क्रांति संरक्षक बल सिपाहे पासदारान के कमांडर जनरल हुसैन सलामी ने यूरोपीय देशों के अमानवीय रवैये पर अपनी कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए पश्चिमी देशों को चेतावनी देते हुए कहा कि ईरानी राष्ट्र की सहनशीलता की सीमा है, यूरोपीय देशों का वजूद तेल और सुरक्षा की बुनियाद पर बचा हुआ है, इसलिए  उन्हें सावधान रहना चाहिए और ख़ुद को ख़तरे में नहीं डालना चाहिए। उन्होंने कहा कि इस समय हम एक निर्णायक और घातक स्थिति में हैं क्योंकि आज का दुश्मन अतीत की तुलना में अलग रूप में राष्ट्र, धर्म, क्रांति और व्यवस्था के ख़िलाफ़ खड़ा है।

इस्लामी क्रांति संरक्षक बल सिपाहे पासदारान के कमांडर जनरल हुसैन सलामी।

जनरल सलामी ने साफ़-साफ़ कहा कि यूरोपीय देश फ़ार्स की खाड़ी से तेल ले रहे हैं कि जिसकी सुरक्षा इस्लामी गणराज्य ईरान द्वारा प्रदान की जाती है। अगर हम चाहें तो उन्हें एक ही झटके में मिट्टी में मिला दें। लेकिन हम पैग़म्बरे इस्लाम (स) और उनके परिजनों के मानने वाले हैं, जो अपने ऊपर होने वाले ज़ुल्म को बर्दाश्त तो कर लेते हैं, लेकिन कभी भी दूसरों पर ज़ुल्म नहीं करते। लेकिन दुशमनों को यह याद रखना चाहिए कि हमारे धैर्य की भी एक सीमा है। आईआरजीसी के कमांडर जनरल हुसैन सलामी ने कहा कि यूरोपीय देश ईरानी राष्ट्र के ख़िलाफ़ आर्थिक प्रतिबंधों लगाने में अग्रणी हैं, जबकि हमारे पास जो ताक़त है उससे हम उनके ख़िलाफ़ एक बड़ी आर्थिक जंग शुरु कर सकते हैं, एक ऐसी लड़ाई जिस वे बर्दाश्त भी नहीं कर सकते हैं। कुल मिलाकर यूरोपीय देशों ने जो एक ग़लत फ़हमी पाल रखी है कि वे चो जाहें करें, जितना चाहें अत्याचार करें और जिस भी देश को चाहें अपनी ताक़त के बल पर झुका लें, तो उनकी इस ग़लत फ़हमी का भरपूर इलाज ईरान के पास है, लेकिन ईरान कभी भी ज़ुल्म का जवाब ज़ुल्म से नहीं देगा इसलिए उस समय का इंतेज़ार है कि जब ज़ालिम के सामने चुप बैठने के लिए इस्लाम ने मना किया है। वह ऐसा वक़्त होगा कि इन सारे अहंकारी देशों की ग़लत फ़हमी एक ही झटके में मिट्टी में मिल जाएगी। (रविश ज़ैदी R.Z)

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