धर्म इंसान को अर्थ देता है/ज़िम्मेदार आध्यात्मिकता की ज़रूरत
मज़हब इंसान को ज़िम्मेदारी समझने का बोध देता है।
पार्सटुडे-धर्म के बारे में गहरी सोच का न पाया जाना और कुछ धर्मों के बीच पाए जाने वाले मतभेदों ने शायद कुछ लोगों को धर्म को अनेदखा करते हुए नैतिकता को धर्म से बदलने के लिए प्रेरित किया।
"मजमए जहानिये अहलेबैत" नामक संस्था के महासचिव हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन रज़ा रमज़ानी ने अपने एक संबोधन में बताया कि पूरब और पश्चिम में बहुत से लोग धर्म को मानव सोच से ही अलग कर दें। इस प्रकार से वे धर्म को पूरी तरह से नष्ट करना चाहते हैं। इसी के साथ वे बताते हैं कि कुछ लोगों ने धर्म को सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक पटल से दूर करते हुए उसको बहुत सीमित कर दें।
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन रज़ा रमज़ानी कहते हैं कि धर्म बहुत व्यापक है एसे में हमको उसके बारे में रूढीवादी दृष्टिकोण नहीं रखना चाहिए। दीन के बारे में जो बात सबसे महत्वपूर्ण है वह यह है कि उसके प्रति हमारा दृष्टिकोण बहुत ही व्यापक और गहरा होना चाहिए। धर्म, बहुआयामी है। इमसें बाहरी और भीतरी दोनो ही आयामों को दृष्टिगत रखा गया है। यह इंसान की बनावट के हिसाब से मन और आत्मा का प्रशिक्षण करता है। शारीरिक आयाम की दृष्टि से इसके कुछ मूल नियम हैं जो स्वास्थ्य के लिए बहुत ही अच्छे और प्रभावी हैं।
कुछ लोग धर्म को भ्रम का कारण मानते हैं जो मानसिक और भावनात्मक दबाव का कारण बनता है। रज़ा रमज़ानी के अनुसार अगर हम धर्म के बारे थोड़ी गहराई से सोचें तो यह, न केवल भ्रम का कारण नहीं है बल्कि भ्रम को दूर करने वाला है। मज़हब इंसान के अंदर पाई जाने वाली गुत्थियों को सुलझाता है। यह उसके मन और आध्यात्मक को आराम देता है। इसी के साथ धर्म, मनुष्य के भीतर ज़िम्मेदारी की भावना को भी जागृत करता है।
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन रज़ा रमज़ानी का मानना है कि विज्ञान और तकनीक की दुनिया में बढ़ती प्रगति की वजह से कुछ लोग यह मानने लगे कि इस तरक्क़ी की वजह से लोग मज़हब से दूर हो जाएंगे। वह धर्म से कोई संबन्ध नहीं रखेंगे। यहां तक कि पश्चिम में कुछ गुटों ने इस सोच को आम करना शुरू कर दिया कि हम ख़ुदा के बिना भी धर्म रख सकते हैं। यह वह लोग हैं जो धर्म के बारे में गहराई से जानकारी नहीं रखते। उनको धर्म के बारे में आंशिक जानकारी है।
हुज्जतुल इस्लाम रमज़ानी कहते हैं कि आजकल लोगों मे अध्यात्म के प्रति लगाव दिन ब दिन तेज़ी से बढ़ता जा रहा है। उनका कहना है कि आज हम पश्चिम में नक़ली आध्यात्म के साक्षी हैं। अमरीका और यूरोप मे इस समय कम से कम चार हज़ार आर्टिफिश्ल आध्यात्म पाए जाते हैं। जहां कहीं भी नक़ली चीज़ होगी वहां पर अस्ली भी ज़रूर पाई जाती होगी। जबतक अस्ली चीज़ बाक़ी है नक़ली को कोई महत्व नहीं मिल पाएगा।
"मजमए जहानिये अहलेबैत" के महासचिव कहते हैं कि धर्म, इंसान को यह पाठ देता है कि वह धार्मिक नियमों से जुड़ा रहे। हमारा यह मानना है कि धर्म ही इंसान को वास्तविक शांति प्रदान कर सकता है। दूसरे शब्दों में धर्म के माध्यम से ही इंसान वास्तविक शांति तक पहुंच सकता है।
श्री रज़ा रमज़ानी के अनुसार इस आध्यात्म पर विश्व स्वास्थ्य संगठन में कोई विशेष ध्यान नहीं दिया गया। आज वे भौतिक आयाम के अतरिक्त सामाजिक, मनोवैज्ञानिक और आध्यात्मिक आयाम की ओर ध्यान केन्द्रित कर रहे हैं। इसका मतलब यह है कि हम जैसे-जैसे आगे की तरफ़ बढ़ रहे हैं विश्व समुदाय में धर्म और आध्यात्म की आवश्यकता बढ़ रही है।
हुज्जतुल इस्लाम रमज़ानी ने यह बताया कि धर्म के बारे में गहरी सोच का न पाया जाना और कुछ धर्मों के बीच पाए जाने वाले मतभेदों ने ही शायद कुछ लोगों को धर्म को अनेदखा करते हुए नैतिकता को धर्म से बदलने के लिए प्रेरित किया। उनका कहना है कि हमारा मानना है कि धर्म को अगर उसके सही और व्यापक अर्थों में समझा जाए तो दीन के भीतर जो नैतिकता है वह स्वयं ही प्रकट होगी।
इसका यह मतलब नहीं है कि मज़हबी सोच का इंसान बहुत ही तन्हाई पसंद होता है बल्कि यह सोच, मानव समाज में शांति उत्पन्न करने के अतिरिक्त मनावीय संबन्धों को भी विकसित करती है। यह आध्यात्मिकता जो सच्ची धार्मिक शिक्षाओं से पैदा हुई है वह एक ज़िम्मेदार आध्यात्मिकता है।
हुज्जतुमल इस्लाम रमज़ानी ने कोरोना काल का उल्लेख करते हुए कहा कि ईरान में उस ज़माने में बहुत से स्वास्थ्यकर्मी, डाक्टर, धार्मिक छात्र, यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स और समाज के अन्य वर्गों के लोगों ने अपनी जान को ख़तरे में डालकर लोगों की सेवा की। इस काम में को लोग शहीद भी हो गए।
इस बारे में इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने कहा कि यह मेरी इच्छाओं में से एक है। काश मानवताप्रेमी इस सहायता की ख़ूबसूरती को अच्छे ढंग से पेश किया जाए। अगर कोई इंसान वास्वत में ईश्वरीय सोच का स्वामी हो जाए तो फिर वह कभी भी इस तरह की परेशानी का शिकार नहीं होगा।
"मजमए जहानिये अहलेबैत" के महासचिव हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन रज़ा रमज़ानी ने अपने संबोधन के अंत में फ़िलिस्तीन के मुद्दे का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि इस समय ग़ज़्ज़ा के मानवताप्रेमी समर्थन के लिए अहलेबैत के मानने वालों के बीच एकता बहुत ज़रूरी है। वे लोग जो मानवता की सुरक्षा करना चाहते हैं उनको चाहिए कि वे एकजुट होकर ग़ज़्ज़ा के यतीम बच्चों के लिए चैन-सुकून उपलब्ध करवाएं।वर्तमान समय में ग़ज़्ज़ा को मानवता के आधार पर मानवीय सहायता की बहुत ज़रूरत है।
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