May १४, २०२४ १४:३४ Asia/Kolkata
  • ईरान की राजधानी तेहरान से एक मस्जिद, गिरजाघर और एक सिनेगॉग
    ईरान की राजधानी तेहरान से एक मस्जिद, गिरजाघर और एक सिनेगॉग

ज्ञान, हर अच्छाई की जड़ है जबकि उसके मुक़ाबले में अज्ञानता, हर बुराई की जड़ है।

पार्सटुडे- ब्राज़ील के साऊ पाऊलो नगर में इसी महीने एक कांफ्रेंस आयोजित हुई जिसका शीर्षक था, "इस्लाम, वार्ता और ज़िंदगी का धर्म" इस अन्तर्राष्ट्रीय कांफ्रेंस में "मजमए जहानी अहलैबैत" के महासचिव ने भाग लिया।  हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन रज़ा रमज़ानी ने इसमें विशेष मेहमान के रूप में हिस्सा लिया।

इस कांफ्रेंस में ब्राज़ील के न्याय मंत्रालय के प्रतिनिधि, इस देश की काफेड्रेशन आफ कार्डिनल के प्रतिनिधि, कुछ ईसाई धर्मगुरू और वहां के राजनीतिक शख़सियों ने भी भाग लिया।  कांफ्रेंस में हिस्सा लेने वाले वक्ताओं ने धर्मो के मध्य संवाद पर बहुत ज़ोर दिया।  यहां पर हम इस्लाम और शियत के बारे में हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन रज़ा रमज़ानी के विचारों के कुछ हिस्से पेश कर रहे हैं।

अपने संबोधन के आरंभ में उन्होंने शिया मुसलमानों की दृष्टिकोण से ज्ञान के महत्व पर प्रकाश डाला।  उन्होंने कहा कि ज्ञान, हर अच्छाई की जड़ है।  उसके मुक़ाबले में अज्ञानता, हर बुराई की जड़ है।  अगर कोई इंसान ख़ुद को अच्छी तरह से पहचान ले तो वह अपने पालनहार को भी पहचान सकता है। 

इस बारे में उन्होंने हज़रत अली अलैहिस्सलाम के इस कथन का उल्लेख किया जिसमें आप कहते हैं कि अगर इंसान ख़ुद को सही ढंग से पहचान ले तो दूसरे लोगों को भी अच्छी तरह से पहचान लेगा।  धिक्कार को अज्ञानता पर।  सबसे पहली अज्ञानता स्वयं अपने बारे में है।  हर वह इंसान जो अपने से ही अनजान हो वह गुमराह हो सकता है।  जब कोई ख़ुद गुमराह हो जाता है तो वह दूसरों को भी गुमराह बना देता है।  एसे में हमारी ज़िम्मेदारी बनती है कि पहले हम ख़ुद को पहचानें।  अरस्तू ने अपनी एकेडमी में लिख रखा था कि ख़ुद को पहचानो।  स्वयं को पहचानना, इंसानियत की तरक़्क़ी का राज़ है।  एसे में इंसान, दूसरों के बारे में अपनी ज़िम्मेदारी समझने लगता है।

इमाम अली, इंसाफ़ की आवाज़

उन्होंने आगे कहा कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम को सारे मुसलमान मानते हैं।  शिया मुसलमान उनको अपना पहला इमाम कहते हैं।  सुन्नी मुसलमान भी हज़रत अली अलैहिस्सलाम को चौथे ख़लीफ़ा के रूप में मानते हैं।  उनके भीतर बहुत सी विशेषताएं थीं जिनमे से एक न्याय भी था।  लेबनान के एक मश्हूर लेखक "जार्ज जुरदाक़" ने हज़रत अली अलैहिस्सलाम के बारे में एक किताब लिखी है।  इस किताब का नाम हैं "सौतुल एदाला"।  यह किताब पांच वोल्यूम में लिखी गई है।  मैं चाहता हूं कि इस किताब का तरजुमा स्पैनिश और पोरटोगीज़ ज़बान में किया जाए।  जार्ज जुरदाक़, हज़रत अली अलैहिस्सलाम के शहदाई थे।

इस्लाम, वार्ता और ज़िंदगी का धर्म नामक अन्तर्राष्ट्रीय कांफ्रेंस में "मजमए जहानी अहलैबैत" के महासचिव हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन रज़ा रमज़ानी

वार्ता करने वाले बनो

मजमए जहानी अहलैबैत के महासचिव कहते हैं कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम का कहना है कि लोग दो हिस्सों में बंटे हुए हैं।  एक दीनी भाई हैं जबकि दूसरे सृष्टि में तुम जैसे हैं।  हमको यह सिखाया गया है कि हम ईसाइयों और यहूदियों को अपना दीनी भाई पुकारें।  पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा (स) सबसे बात किया करते थे।  एक जगह पर ख़ुदा, पैग़म्बरे इस्लाम से कह रहा है कि कह दो कि तुम भी अपनी बातों को पेश करो और साथ में बात करो।

यहां तक कि वह लोग जो किसी को भी नहीं मानते हैं उनके साथ भी बात करो।  उनके सामने अपना तर्क पेश करो।  अगर तुम्हारी बात को न माना जाए और तुम्हारे तर्क को ठुकरा दिया जाए तो तुम उन बातों पर सब्र करो जो तुम्हारे विरुद्ध कही जाएं।  अगर तुम उनसे अलग होना चाहो तो उनके साथ नेकी से पेश आओ और नर्मी से अलग हो जाओ।

पैग़म्बरे इस्लाम के परिजन वार्ता के पक्षधर

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन रज़ा रमज़ानी, पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों को वार्ता का पक्षधर बताते हुए कहते हैं कि इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम और इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम जैसे हमारे धार्मिक मार्गदर्शकों ने इसाइयों के साथ भी वार्ता की।  उन्होंने अन्य धर्म के मानने वालों के साथ भी बातचीत की।  हमको एक-दूसरे से बात करके उनको समझना चाहिए।  इस्लाम, शांतिपूर्ण जीवन का प्रचार करते थे।  लोगों को एक-दूसरे के साथ मैत्रीपूर्ण ढंग से व्यवहार करना चाहिए।  इस्लाम चाहता है कि इंसान अपनी प्रकृति को नष्ट न करे और न ही उसको दूषित करे।

दुश्मनों की ज़मीन के पेड़ों को न काटो

इस्लामी शिक्षा संस्थान और यूनिवर्सिटी में पढ़ाने वाले इस धर्मगुरू का कहना था कि हमारे पास इस बात के पुष्ट प्रमाण मौजूद हैं कि आज से 1250 साल पहले इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम ने 50 अधिकारों के बारे में लिखा था।  इमामों का कहना हे कि प्रकृति या नेचर को नुक़सान न पहुंचाओ।  दुश्मनों तक के पेड़ों को भी नहीं काटो, उनको न जलाओ।  उनके पानी को दूषित न करो।  यह सब पर्यावरण के लिए ख़तरा हैं।  पवित्र क़ुरआन और पैग़म्बरे इस्लाम तथा उनके पवित्र परिजनों के कथनों में बहुत ही डिटेल से पर्यावरण के बारे में बात की गई है।

टैग्सः इस्लाम, शिया, शीया, अहलेबैत

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