इस्फ़हान संगीत की परंपरा: ईरानी संस्कृति की एक अनमोल धरोहर
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पार्सटुडे: इस्फ़हान,जो अपनी फ़ीरोज़ा रंग की गुंबदों और शानदार सफ़वी वास्तुकला के लिए जाना जाता है,अपने भीतर एक संगीतमय खजाना भी समेटे हुए है जिसने सदियों से ईरान की ध्वनि को आकार दिया है।
(last modified 2025-11-20T11:03:23+00:00 )
Nov २०, २०२५ १४:५४ Asia/Kolkata
  • इस्फ़हान संगीत की परंपरा: ईरानी संस्कृति की एक अनमोल धरोहर
    इस्फ़हान संगीत की परंपरा: ईरानी संस्कृति की एक अनमोल धरोहर

पार्सटुडे: इस्फ़हान,जो अपनी फ़ीरोज़ा रंग की गुंबदों और शानदार सफ़वी वास्तुकला के लिए जाना जाता है,अपने भीतर एक संगीतमय खजाना भी समेटे हुए है जिसने सदियों से ईरान की ध्वनि को आकार दिया है।

सूफ़ियाना बाँसुरी वादक हसन कसाई से लेकर स्वर्णिम आवाज़ वाले ताज इस्फ़हानी तक, यह शहर हमेशा से शास्त्रीय ईरानी संगीत के दिग्गजों का केंद्र रहा है। पार्सटूदी के अनुसार, सन 2011 में, इस्फ़हान की पारंपरिक संगीत परंपरा को ईरान की राष्ट्रीय अमूर्त सांस्कृतिक विरासत सूची में शामिल किया गया, जिससे ईरानी संस्कृति के एक मूल आधार के रूप में इसका स्थान और मजबूत हुआ।

 

इस्फ़हान के संगीत की आत्मा

 

इस विरासत के केंद्र में 'बयात इस्फ़हान' नामक एक राग है; यह ईरानी संगीत की सबसे लोकप्रिय धुनों में से एक है जो अपने रोमांटिक स्वभाव के लिए जानी जाती है। बयात इसफ़हान को अक्सर "विरह का स्वर" कहा जाता है; यह एक संगीतमय यात्रा है जो कोमल उदासी की दुनिया में ले जाती है, मानो कोई प्रेमकथा हो जो कभी भी अपने भावनात्मक मार्ग से भटकती नहीं है।

 

बयात इस्फ़हान की उत्पत्ति 'होमायून' नामक एक प्रमुख शास्त्रीय ईरानी राग से हुई है। यह धुन प्रेम को गहन और सतत कोमलता के साथ व्यक्त करती है। अन्य रागों के विपरीत जो विभिन्न भावनाओं के बीच दोलन करते हैं, बयात इस्फ़हान एक स्थिर भावनात्मक धारा के साथ श्रोता को एक संगीतमय कथा में बाँध लेती है।

 

इसकी मधुर धुनें उन लोगों के लिए भी पहचानने योग्य हैं जो पूर्वी संगीत से परिचित नहीं हैं; इसमें माइनर स्केल (छोटा सप्तक) से समानता और सूक्ष्म अंतराल में बदलाव है जो इसे एक विशेष रूप से ईरानी स्वाद प्रदान करते हैं। इस धुन की भावनात्मक पराकाष्ठा 'अशाक़' नामक हिस्से में होती है, जिसका नाम ही इसकी भावनात्मक गहराई को दर्शाता है।

 

सुरों से परे

 

ईरान के संगीत में इस्फ़हान की भूमिका केवल तकनीकी ढाँचे तक सीमित नहीं है; बल्कि यह संगीत और गीत के प्रति शहर के सदियों पुराने प्रेम से उपजी है। सफ़वी युग में, जब इस्फ़हान ईरान की राजधानी था, संगीत दरबारी जीवन का एक हिस्सा था और राजकुमारों के लिए इसे सीखना अनिवार्य था।

 

कुछ शोधकर्ताओं का मानना है कि इस्फ़हान का संगीत से जुड़ाव सफ़विदों से भी पहले, प्राचीन ईरानी इतिहास में ही बन गया था। इस्फ़हान के संगीत को टिकाऊ बनाने वाली बात है इसकी शहर की आत्मा को प्रतिबिंबित करने की क्षमता: रोमांटिक, चिंतनशील और यादों से सराबोर।

 

इस्फ़हान संगीत परंपरा में, वादक और गायक 'मुनासिब-ख़ानी' नामक एक तकनीक में एक साथ मिलकर गाते-बजाते हैं, जिससे आवाज़ और वाद्ययंत्र के बीच एक कोमल संवाद स्थापित होता है। गायन में लगाए जाने वाले कंपन (गिटकिरी) कविता की भावनात्मक सुंदरता को बढ़ाने के लिए प्रयोग किए जाते हैं और इस परंपरा की एक विशिष्ट विशेषता बन गए हैं।

 

इस परंपरा ने पड़ोसी समुदायों जैसे क़शकाई, बोयरअहमदी और दज़फ़ूली की धुनों को भी अपनाया है और इस्फ़हान की सांस्कृतिक विविधता का प्रतीक बन गई है।

 

सुरों के संरक्षक

 

इस्फ़हान के संगीत की निरंतरता उन उस्तादों (मास्टर) के कारण संभव हुई है जिन्होंने इस मौखिक परंपरा को पीढ़ी-दर-पीढ़ी सँभाला है। क़ाजार काल के दौरान, मर्सिया पाठ करने वालों (तअज़िया-ख़्वानों) ने इस्फ़हान की विशिष्ट शैली को तेहरान ले जाकर संगीतकारों की एक नई पीढ़ी को प्रभावित किया।

 

सैयद रहीम इस्फ़हानी, ताज इस्फ़हानी और अन्य हस्तियों ने इन धुनों को रिकॉर्ड करके और सिखाकर शहर के संगीत को जीवित रखा। सैयद अब्दुर्रहीम इस्फ़हानी ने, जिनकी अद्भुत स्मृति और कोमल आवाज़ थी, ताज इस्फ़हानी, अदीब ख़ांसारी और हबीब शातिर-हाजी जैसे शिष्य तैयार किए।

 

अब्दुलहुसैन बराज़ंदे ने, जो तार, वायलिन और सन्तूर के उस्ताद थे, अपने समय के कवियों और संगीतकारों के साथ सहयोग करके ऐसी रचनाएँ बनाईं जो ईरानी ओपेरा और ओपेरेटा में मील का पत्थर साबित हुईं। उन्होंने 300 से अधिक रचनाएँ लिखीं, जिनमें से केवल 30 का ही प्रदर्शन हुआ।

 

बीसवीं सदी के प्रमुख व्यक्तित्व जलाल ताज इस्फ़हानी ने इस्फ़हान गायन परंपरा को पुनर्जीवित किया और मोहम्मद रेज़ा शजरियान और हुसैन ख़्वाजे-अमीरी जैसे कलाकारों को प्रशिक्षित किया। उनकी रचनाएँ, जैसे "आतिश-ए-दिल", फारसी कविता की मैत्रीपूर्ण भावना और कोमलता का प्रतिबिंब हैं।

 

आज, डॉ. मोहम्मद महदी वाज़ेही इस्फ़हानी, जो अपने कलात्मक नाम मोहम्मद इस्फ़हानी से जाने जाते हैं, इस विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं। उन्होंने पारंपरिक और पॉप संगीत के मेल से शास्त्रीय ईरानी आवाज़ को नई पीढ़ियों से परिचित कराया है और इस्फ़हान के संगीत की आत्मा को जीवित रखा है।

 

इस्फ़हान का संगीत आज भी इस शहर के बाग़ों, आँगनों और लोगों के दिलों में गूँजता है; एक शाश्वत लय जो अपने प्रत्येक स्वर में सदियों के इतिहास, भावना और कला को समेटे हुए है। (AK)

 

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