आयत क्या कहती है? सृष्टि की व्यवस्था के संबंध में उनका अस्तित्व ईश्वर का आज्ञाकारी है।
चूंकि ईश्वर, इंसानों और फ़रिश्तों व जिन्नों समेत सभी जीवों का स्वामी है, इस लिए उसे अधिकार है कि जिस प्रकार चाहे उनके बारे में फ़ैसला करे।
सूरए रूम की आयत क्रमांक 26 का अनुवादः
और आकाशों और धरती में जो कोई भी है, उसी का है। (सृष्टि की व्यवस्था में) हर एक उसी का आज्ञाकारी है।
संक्षिप्त टिप्पणी:
संसार में कर्म के संबंध में इन्हें विरोध की संभावना प्रदान की गई है लेकिन सृष्टि की व्यवस्था के संबंध में उनका अस्तित्व ईश्वर का आज्ञाकारी है।
इस आयत से मिलने वाले पाठ:
1.न केवल जड़ वस्तुएं, वनस्पतियां और पशु बल्कि सोचने-समझने की क्षमता रखने वाले मनुष्य, फ़रिश्ते और जिन्न भी ईश्वर की सत्ता से बाहर निकलने की शक्ति नहीं रखते।
2.जिस प्रकार से सृष्टि की व्यवस्था में मनुष्य का अस्तित्व ईश्वर का आज्ञापालक है और इसी कारण वह शारीरिक विकास तक पहुंचता है, उसी तरह अगर वह धार्मिक व्यवस्था में भी ईश्वरीय आदेशों का पालन करे तो परिपूर्णता व कल्याण तक पहुंच जाएगा।