Oct ०९, २०२३ १६:४९ Asia/Kolkata

इस बात में अब कोई संदेह नहीं रह गया है कि यह दुनिया आज भी मज़लूमों के साथ इंसाफ़ करने में पूरी तरह असहाय है। आज भी साम्राज्यवाद का बोल-बाला है। आज भी कमज़ोरों को दबाया जाता है और ज़ालिमों के साथ लोग गर्व के साथ खड़े हुए दिखाई देते हैं। दिलचस्प बात यह है कि यह जानते हुए कि कौन सत्य पर है और कौन असत्य पर, आज के दौर में लोग असत्य का साथ ही देते हुए नज़र आते हैं।

75 वर्ष से हर दिन अत्याचारों की हर सीमा को सहन करने वाला फ़िलिस्तीनी राष्ट्र आज भी इस साम्राज्यवादी दुनिया के सामने इस्राईल के मुक़ाबले में एक उग्रवादी राष्ट्र है। ज़रा सोचें, एक ऐसा देश कि जिसका इतिहास, दुनिया के सभी इतिहासों से पुराना है। एक ऐसा देश कि जो दुनिया के सबसे ख़ुशहाल देशों में से एक था। आज उस देश का असत्तिव केवल इस लिए ख़तरे में है क्योंकि उस देश में रहने वाले मुसलमान हैं। वहीं उस देश के वजूद का ख़त्म करने के लिए साम्राज्यवादी शक्तियों ने एक ऐसे अवैध और आतंकी शासन की स्थापना की है कि जो पूरे पश्चिमी एशिया में अशांति का मुख्य कारण बना हुआ है। लेकिन इस बात में भी कोई शक नहीं है कि कोई भी घर बाहर वालों के हस्तक्षेप से तब तक बर्बाद नहीं होता है, जब तक घर का कोई सदस्य दुश्मनों से हाथ न मिला ले, आज फ़िलिस्तीन जो इस स्थिति में पहुंचा है उसकी असल वजह स्वयं इस्लामी जगत है। ख़ास कर इस्लामी जगत में मौजूद बहुत सारे ऐसे देशों के शासक हैं, जो केवल और केवल अपने शासन को बचाए रखने के लिए साम्राज्यवादी शक्तियों के आगे घुटने टेके हुए हैं और उनकी हर इच्छा को पूरा करने में ही अपनी जीत समझते हैं। वहीं कुछ ऐसे देश और संगठन हैं जो फ़िलिस्तीन के वजूद का बाक़ी रखने के लिए हर तरह की क़ुर्बानी दे रहे हैं। इनमें से एक इस्लामी गणराज्य ईरान है जो हर तरह के अत्याचारी प्रतिबंधों और दबावों के बावजूद पूरी दृढ़ता के साथ मज़लूम फ़िलिस्तीनी राष्ट्र के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा है। अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया लेकिन इस्लामी क्रांति की सफलता के बाद आज तक ईरान ने कभी भी फ़िलिस्तीन की उत्पीड़ित जनता का हाथ नहीं छोड़ा।

इस्राईल के हवाई हमले में घायल मासूम फ़िलिस्तीनी बच्चा।

बहरहाल अब यहां यह सवाल उठता है कि आख़िर दुनिया के वे देश जो यह दावा करते हुए थकते नहीं दिखाई देते हैं कि वे मानवाधिकार के धव्जवाहक हैं, वे इस्राईल द्वारा हर दिन फ़िलिस्तीनी राष्ट्र पर होते हुए अत्याचारों पर क्यों आंखें मूंदे रहते हैं? क्या इस ज़मीन पर फ़िलिस्तीनियों को रहने का अधिकार नहीं है? आख़िर कब तक फ़िलिस्तीनी जनता अपने ऊपर होते हुए ज़ुल्मों पर ख़ामोश रहें? क्या फ़िलिस्तीनी राष्ट्र के पास यह अधिकार नहीं है कि वे उनपर अत्याचार करने वालों का मुक़ाबला करें? क्या फ़िलिस्तीन की जनता केवल इसलिए ज़ुल्मों को बर्दाश्त करे क्योंकि वे मुस्लिम हैं? इसी तरह के बहुत सारे सवाल हैं कि जिसका जवाब शायद ही किसी के पास हो। अब तो आशचर्य यह होने लगा है कि भारत जैसा लोकतांत्रिक देश जो हमेशा फ़िलिस्तीनी राष्ट्र के अधिकारों की बात करता था वह भी इस्राईल का समर्थन करता हुआ नज़र आ रहा है। कुल मिलाकर फ़िलिस्तीन के प्रतिरोधक गुटों ने जिस प्रकार इस्राईल को उसी की ज़बान में मुंहतोड़ जवाब दिया है यह उसका हक़ बनता है। कोई भी दुनिया का देश इस स्थिति में नहीं है कि वह फ़िलिस्तीनियों द्वारा की गई जवाबी कार्यवाही को ग़लत ठहरा सके। बस वही शासन फ़िलिस्तीनियों की जवाबी कार्यवाही को ग़लत ठहराने का प्रयास कर रहे हैं कि जिनके हाथ स्वयं मुसलमानों के ख़ून से रंगे हुए है। अब समय आ गया है कि इस्राईल से उसके अत्याचारों का हिसाब लिया जाए। इस अवैध शासन को पश्चिमी एशिया से पूरी तरह समाप्त किया जाए कि जिसके कारण यह पूरा इलाक़ा अशांति की आग में जल रहा है। (RZ)   

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