Jan २५, २०२४ १२:४२ Asia/Kolkata
  • यमन पर अमरीका और ब्रिटेन के हमलों का चीन ने किया विरोध, लेकिन क्या सिर्फ़ विरोध में बयान जारी करना काफ़ी है?

चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिन ने यमनी प्रतिरोधी संगठन अंसारुल्लाह या अल-हौसी पर अमरीका और ब्रिटेन के हमलों का ज़िक्र करते हुए कहा है कि संयुक्त राष्ट्र संघ सुरक्षा परिषद ने किसी को भी यमन के ख़िलाफ़ ताक़त के इस्तेमाल का अधिकार नहीं दिया है।

वेनबिन का कहना था कि यमन समेत रेड सी के आसपास बसने वाले देशों की राष्ट्रीय संप्रभुता का सम्मान किए जाने की ज़रूरत है। ग़ौरतलब है कि यमन के संबंध में सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव के पारित होने के तुरंत बाद ही अमरीका और ब्रिटेन ने यमन पर हवाई हमले शुरू कर दिए, हालांकि इस प्रस्ताव में कहीं भी यमन के ख़िलाफ़ ताक़त के इस्तेमाल की बात का उल्लेख नहीं किया गया है। इसी संदर्भ में चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता का बयान महत्वपूर्ण है। बीजिंग का कहना है कि यमन पर अमरीका और ब्रिटेन के हवाई हमले, अतंरराष्ट्रीय क़ानून और यमन की संप्रभुता का उल्लंघन है और इस पर तुरंत विराम लगना चाहिए।

अंतर्राष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ और ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी में प्रोफ़ेसर वेन तीसॉंग का इस संदर्भ में कहना हैः अमरीका ने हमेशा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और उसके प्रस्तावों को एक उपकरण के रूप में इस्तेमाल किया है। अमरीका सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों की अपने तौर पर व्याख्या करता है और उनका दुरुपयोग करता रहा है, वह अपने हितों को सुरक्षित करने के लिए ग़ैर क़ानूनी हमलों को उचित ठहराता है। एक बार फिर अमरीका ने यमन के बारे में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के हालिया प्रस्ताव की ग़लत और भ्रामक व्याख्या की है।

सच्चाई यह है कि अमरीका, इंग्लैंड और उनके अन्य सहयोगियों ने रेड सी में अपने और ज़ायोनी शासन के जहाज़ों की सुरक्षा के बहाने, यमन पर हमले किए हैं। हालांकि यमन के अल-हौसी संगठन का कहना है कि रेड सी में इस्राईली और अमरीकी जहाज़ों के ख़िलाफ़ उसकी कार्यवाही ग़ज़ा युद्ध के संदर्भ में है। जबतक इस्राईल ग़ज़ा में फ़िलिस्तीनियों की नस्लकुशी बंद नहीं करत है, तब तक उनकी यह कार्यवाही जारी रहेगी और इसे दुनिया की कोई ताक़त नहीं रोक सकेगी।

अमरीका न सिर्फ़ ग़ज़ा में युद्ध विराम की सभी कोशिशों को नाकाम करता रहा है और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों को वीटो कर रहा है, बल्कि वह बढ़चढ़कर ग़ज़ा युद्ध में फ़िलिस्तीनियों के नरसंहार का समर्थन कर रहा है और ज़ायोनी सेना को गोलाबारूद और हथियारों की आपूर्ति कर रहा है। उसने अपने युद्धपोतों को इस क्षेत्र में भेजकर रेड सी पर हावी होने का प्रयास किया है।

इसमें कोई शक नहीं है कि बीजिंग ने वाशिंगटन और लंदन के ग़ैर क़ानूनी क़दम का विरोध किया है, लेकिन सुरक्षा परिषद में वीटो का अधिकार रखने वाले चीन से विश्व समुदाय को इससे अधिक की उम्मीद है। बीजिंग के लिए सिर्फ़ बयान जारी करना ही काफ़ी नहीं होगा, बल्कि उसे चाहिए कि इसके लिए सक्रिय कूटनीति का इस्तेमाल भी करे।

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