कंबोडिया के लोग अब भी गहरे रंग की मिट्टी से डरते हैं/ उसकी वजह अमेरिका ने जो अत्याचार उन पर ढ़ाया है
पार्सटुडे- अमेरिका ने कंबोडिया पर जो बमबारी की उसके बारे में अनुमान लगाया जाता है कि पांच लाख टन से अधिक बम और बारुत कंबोडिया के एक लाख 13 हज़ार से अधिक लोगों पर गिराये गये।
कंबोडिया की एक किसान महिला की तस्वीर जिसका पैर अमेरिका द्वारा बिछाई गयी बारुदी सुरंग से टकरा जाने से उड़ गया।
अमेरिका ने 30 अप्रैल 1970 को कंबोडिया पर हवा और ज़मीन से उस वक्त हमला किया जब वह कंबोडिया के पड़ोसी देश वियतमान में युद्धरत था। अमेरिकी सैनिकों ने इस हमले में कंबोडिया पर कब्ज़ा कर लिया। तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने एलान किया कि कंबोडिया पर कब्ज़ा करने का लक्ष्य अमेरिकी सैनिकों को वियतनाम से बाहर निकलने के अवसर देना था।
यद्यपि कंबोडिया वियतनाम का पड़ोसी देश है परंतु वियतनाम और अमेरिका के मध्य चलने वाले युद्ध में पहले ही उसने अपनी निष्पक्षता का एलान कर दिया था। रिचर्ड निक्सन ने कंबोडिया पर कब्ज़े का औचित्य दर्शाते हुए कहा कि अगर दुनिया का शक्तिशाली देश अमेरिका विश्व के विभिन्न परीक्षणों में एक बेचारे दैत्य की तरह अमल करे तो दुनिया के विभिन्न राष्ट्रों व समाजों पर राष्ट्रवादियों और कम्युनिस्टों का शासन हो जायेगा और इस प्रकार दुनिया में अमेरिकी हित खतरे में पड़ जायेंगे।
एक गोपनीय जंग
इस योजना का मास्टर माइंड किसेन्जर था। उसके साथ वाइट हाउस के दूसरे अधिकारियों ने मिलकर इस योजना को लोगों से पोशिदा रखने की कोशिश की।
उस समय अमेरिकी सरकार द्वारा बमबारी को छिपाने के साथ इन अपराधों के संबंध में जानकारियों और सुबूतों के प्रकाशन को भी मना कर दिया गया।
अमेरिका की यह सैनिक कार्यवाही कंबोडिया के लाखों लोगों के सीधे मरने का कारण बनी। कंबोडिया में मरने वाले लोगों की संख्या 10 लाख तक बताई गयी है।
सामाजिक और राजनीतिक ढ़ांचे का ख़राब हो जाना
कंबोडिया पर बमबारी की योजना किसेन्जर ने तैयार की थी। अमेरिका की बमबारी से कंबोडिया का राजनीतिक और सामाजिक ढांचा खराब हो गया और शांति व सुरक्षा प्रभावित हो गयी। कंबोडिया के एक भाग में 10 लाख से अधिक ग्रामीण बेघर हो गये जो अमेरिकी बमबारी से अपनी जान बचाकर भाग रहे थे।
कंबोडिया में जब राजनीतिक शून्य उत्पन्न हो गया तो KHMER ROUGE नामक गुट ने सत्ता हथिया ली और इस गुट ने कंबोडियाई लोगों के खिलाफ कल्पना से परे अपराध किये। अंदाज़ों के अनुसार कंबोडिया के लगभग 25 प्रतिशत लोग (16 लाख से लेकर 30 लाख लोग) इन अपराधों में मारे गये। मारे जाने वालों में कुछ को फांसी दे दी गयी, कुछ से ज़बरदस्ती काम कराया गया और कुछ भूख से मर गये।
किसान अब भी डरते हैं
उस समय की जो पीड़ायें हैं आज भी कंबोडिया में उनका आभास किया जाता है। इस संबंध में जो अध्ययन किये गये हैं वे इस बात के सूचक हैं कि किसानों पर भी अमेरिकी बमों के प्रभाव पड़े हैं और जो अमेरिकी बम नहीं फटे हैं उसके भय से कंबोडिया के किसान गहरे रंग की मिट्टी में जाने से डरते हैं।
आपत्ति जताने वाले विश्वविद्यालय के छात्रों की हत्या
अमेरिका ने कंबोडिया पर जो कब्ज़ा कर लिया था उस पर अमेरिका के भीतर विरोध किया जाने लगा। अमेरिका में विरोध इस सीमा तक अधिक हो गया था कि इस देश के राष्ट्रीय गारदों ने विरोध कर रहे विश्वविद्यालय के छात्रों पर गोली चला दी।
अमेरिकी विश्व विद्यालय ओहायो में अमेरिकी छात्रों की हत्या इसका खुला नमूना है।
कब्ज़े की समाप्ति
आपत्तियों में वृद्धि के साथ अमेरिकी कांग्रेस ने एक प्रस्ताव पारित करके निक्सन की सरकार को मजबूर किया कि वह जुलाई 1970 तक अमेरिकी सैनिकों को कंबोडिया से निकाल ले। अमेरिकियों ने उसी साल के अंत में कंबोडिया को छोड़ दिया।
अमेरिका ने कंबोडिया से निकल जाने के बाद वहां पर अपनी कठपुतली सरकार कायेम कर दी। अलबत्ता वियतनाम से अमेरिका के हार जाने के बाद कंबोडिया की सैनिक सरकार का भी अंत हो गया।
रोचक बात यह है कि अमेरिकी सैनिकों के कंबोडिया पर सैनिक चढ़ाई के पांच साल बाद( 30 अप्रैल 1975 को) वे वियतनाम से हार गये। MM
स्रोतः Sophal Ear. 2023. Henry Kissinger’s bombing campaign likely killed hundreds of thousands of Cambodians − and set path for the ravages of the Khmer Rouge. Theconversation.