तेहरान के अहले सुन्नत के इमामे जमाअतः इमाम हुसैन अलै. का महाआंदोलन भलाई का आदेश देने और बुराई से रोकने का बेहतरीन उदाहरण है
(last modified 2024-08-08T09:39:43+00:00 )
Aug ०८, २०२४ १५:०९ Asia/Kolkata
  • तेहरान के अहले सुन्नत के इमामे जमाअतः इमाम हुसैन अलै. का महाआंदोलन भलाई का आदेश देने और बुराई से रोकने का बेहतरीन उदाहरण है

पार्सटुडे- तेहरान के सादेक़िया क्षेत्र के सुन्नी मुसलमानों के इमामे जुमा व जमाअत ने कहा है कि इमाम हुसैन अलै. का महाआंदोलन भलाई का आदेश देने और बुराई से रोकने का बेहतरीन उदाहरण है।

मामूस्ता शैख़ अज़ीज़ बाबाई ने इस्लाम के विभिन्न संप्रदायों को एक दूसरे से निकट करने वाली अंतरराष्ट्रीय असेंबली की ओर से आयोजित एक वेबिनार में कहा कि भलाई का आदेश देना और बुराई से रोकना इस्लामी शरीअत का आधार है और इस्लाम का संदेश पहुंचाने वाले समस्त संदेशकों और इमामों की अस्ली ज़िम्मेदारी है क्योंकि इस वाजिब के ज़रिये इस्लामी व्यवस्था पूरी होती है।

 

उन्होंने आगे कहा कि हम देखते हैं कि धर्म के कुछ अनुयाई व अनुसरणकर्ता अज्ञानता व अनभिज्ञता या अपनी ग़लत आंतरिक इच्छाओं का अनुसरण करने के कारण धर्म से गुमराह हो जाते हैं या अपनी धार्मिक ज़िम्मेदारी अदा करने से भागते हैं और ज़ालिम को अपनी जगह बिठाते हैं, इस बात में कोई संदेह नहीं है कि इसी परिप्रेक्ष्य में समाज में बड़ी गुमराही अस्तित्व में आती और फ़ैलती है और इसी कारण अल्लाह पवित्र क़ुरआन में हमें बनी इस्राईल के अंजाम से डराता व सावधान करता है।

 

मामूस्ता बाबाई ने कहा कि अल्लाह उस गिरोह को कामयाब होने वाला गिरोह कहता है जो लोगों को अच्छाई का आदेश देता और बुराई से रोकता है।

 

सादेक़िया के इमामे जुमा व जमाअत ने कहा कि यह हक़ीक़त है कि जब एक समाज में गुनाह होने लगे और उस समाज में अच्छाई का आदेश देने और बुराई से मना करने का कोई फ़ायदा न रह जाये तो यह गुनाह पूरे समाज के ख़त्म होने का कारण बनता है। उन्होंने कहा कि अल्लाह पवित्र क़ुरआन के सूरे तौबा की आयत नंबर 71 में नमाज़ और ज़कात से पहले भलाई का आदेश देने और बुराई से रोकने का ज़िक्र किया है जो इस आदेश की महानता का सूचक है।

 

उन्होंने आगे कहा कि इब्ने कसीर की तफ़सीर में आया है कि पैग़म्बरे इस्लाम की एक अच्छी विशेषता यह थी कि वे लोगों को अच्छाई का आदेश देते और बुराई से रोकते थे। वह कभी भी भलाई के अलावा किसी दूसरी चीज़ का आदेश नहीं देते थे और बुराई के अलावा किसी अन्य चीज़ से नहीं रोकते थे।

 

मामूस्ता बाबाई कहते हैं कि अल्लाह मुसलमानों की महत्वपूर्ण विशेषता के बारे में कहता है कि तुम बेहतरीन उम्मत हो जिसे लोगों के लिए पैदा किया गया है जब तक तुम भलाई का आदेश दोगे और बुराई से रोकेगे।

सादेक़िया के इमामे जुमा और जमाअत कहते हैं कि अल्लाह दूसरी जगह पर कहता है कि अहले ईमान और नेफ़ाक़ में एक अंतर यह है कि अहले ईमान यानी मोमिन मर्द और औरतें हमेशा अच्छे कामों का आदेश देते हैं और बुरे व ग़लत कार्यों से रोकते व मना करते हैं और इसके विपरीत मुनाफ़िक़ मर्द और मुनाफ़िक़ औरतें एक दूसरे को बुरे व ग़लत कार्यों की ओर बुलाते हैं और अच्छे कार्यों से एक दूसरे को रोकते हैं।

 

उन्होंने अंत में कहा कि अच्छाई का आदेश देने और बुराई से रोकने का बेहतरीन नमूना इमाम हुसैन अलै. की शहादत और आशूरा का आंदोलन है। इस आधार पर हमें अच्छाई का आदेश देने और बुराई से रोकने से निश्चेत नहीं होना चाहिये और उस पर विशेष रूप से ध्यान देना चाहिये। MM

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