एक इंसान की हत्या समस्त इंसानों की हत्या के समान है, इस्लाम में इंसान की हत्या हराम है
(last modified 2024-08-11T14:12:33+00:00 )
Aug ११, २०२४ १९:४२ Asia/Kolkata
  • एक इंसान की हत्या समस्त इंसानों की हत्या के समान है, इस्लाम में इंसान की हत्या हराम है

पार्सटुडे- पवित्र क़ुरआन कहता है कि अगर कोई इंसान किसी इंसान की हत्या करता है और जिस इंसान की हत्या की गयी है उसने किसी की न तो हत्या की है और न ही ज़मीन में फ़साद किया हो तो ऐसे इंसान की हत्या समस्त इंसानों की हत्या के समान है और जिसने एक इंसान को मुक्ति दिला दी यानी उसे नजात दिला दी तो मानो उसने समस्त इंसानों को ज़िन्दा कर दिया।

एक इंसान की हत्या बहुत बड़ा गुनाह व अपराध है और प्राचीन समय से समस्त मानव समाजों में इस पर ध्यान दिया गया है। एक इंसान की हत्या उस समय अपराध व गुनाह समझी जाती है जब जानबूझ कर इंसान की हत्या की जाये और इस्लाम में इसकी कड़ी भर्त्सना की गयी है और उसे माफ़ न किया जाने वाला गुनाह समझा जाता है।

 

पवित्र क़ुरआन और इस्लामी रिवायतों में बारमबार इसके हराम होने की ओर संकेत किया गया है। इसी प्रकार यह भी कहा गया है कि जो भी इंसान किसी निर्दोष इंसान की हत्या करेगा उसे कड़ा से कड़ा दंड दिया जायेगा।

 

इस्लाम में इंसान की हत्या हराम है

इस्लाम में किसी इंसान की हत्या की कड़ी भर्त्सना की गयी है और उसकी गणना बड़े गुनाहों में की जाती है। पवित्र क़ुरआन सूरे इस्रा की 33वीं आयत में कहता है कि उस नफ़्स व इंसान की हत्या न करो जिसे अल्लाह ने हराम क़रार दिया है मगर यह कि वह सच व वास्तव में क़त्ल किये जाने का हक़दार हो और अगर किसी की नाहक़ व मज़लूमी की हालत में हत्या कर दी जाये तो हमने उसके वली व अभिभावक को बदला लेने व क़ेसास करने का अधिकार क़रार दिया है तो रक्तपात न करो और मज़लूम की मदद की जायेगी।

 

यह आयत स्पष्ट शब्दों में किसी इंसान की हत्या को हराम बताती है और कहती है कि इंसान की जान सम्मानीय है और केवल विशेष परिस्थिति में और अल्लाह के क़ानून के अनुसार क़ेसास किया जा सकता है।

 

पैग़म्बरे इस्लाम और उनके पवित्र परिजनों के कथनों में भी गम्भीरता से इस विषय का उल्लेख किया गया है। मिसाल के तौर पर इमाम जाफ़रे सादिक़ अलैहिस्सलाम इरशाद फ़रमाते हैं" क़यामत के दिन एक आदमी को एक आदमी के पास लाया जायेगा। वह उस आदमी को उसी के ख़ून में लथपथ करेगा जबकि लोगों का हिसाब- किताब हो रहा होगा तो जो इंसान अपने ख़ून में लथपथ होगा वह कहेगाः हे अल्लाह के बंदे! मेरे साथ क्यों ऐसा व्यवहार कर रहे हो? तो वह कहेगा अमुक व फ़ला दिन मेरे ख़िलाफ़ काम किये थे और मैं मारा गया था"

 

यह रिवायत स्पष्ट रूप से इस बात की सूचक है कि जो किसी इंसान की हत्या करेगा परलोक में कड़ा दंड उसकी प्रतीक्षा में है और यह रिवायत इंसान की जान की सुरक्षा पर बल देती है।

समाज में एक इंसान की हत्या का असर

एक निर्दोष इंसान की हत्या का न केवल व्यक्तिगत रूप से बल्कि सामाजिक रूप से भी विनाशकारी असर है। पवित्र क़ुरआन सूरे माएदा की 32वीं आयत में कहता है कि जो कोई किसी इंसान की हत्या कोई हत्या किये बिना या ज़मीन में फ़साद किये बिना हत्या करता है तो मानो उसने समस्त इंसानों की हत्या की और जिसने एक इंसान को बचा लिया मानो उसने समस्त इंसानों को ज़िन्दा कर दिया।

 

पवित्र क़ुरआन की यह आयत इंसान की जान के महत्व और उसकी हत्या से समाज में पड़ने वाले प्रभाव की ओर संकेत करती है। एक इंसान की हत्या समाज में दूसरे इंसानों की हत्या का कारण बन सकती है। दूसरे शब्दों में एक इंसान की हत्या से सामाजिक तानाबाना ख़त्म हो सकता है या बिगड़ सकता है। क्योंकि मानवीय समाज एक शरीर की भांति है और शरीर के किसी अंग को नुक़सान पहुंचने से दूसरे अंग प्रभावित हो सकते हैं उसी तरह समाज के एक व्यक्ति की हत्या से समाज के दूसरे समस्त इंसान प्रभावित हो सकते हैं।

 

उसी तरह समाज के एक व्यक्ति को नजात देना इतना महत्वपूर्ण है कि मानो समस्त इंसान को मुक्ति दिला दी है। जब इंसान एक दूसरे का इतना अधिक ख़याल करेंगे तो वह सामाजिक बंधन की मज़बूती का कारण बनेगा।

 

इस्लाम में एक इंसान की हत्या का दंड और ब्लड मनी और माफ़ करने का विषय

 

अगर कोई इंसान किसी इंसान की हत्या करता है तो इस्लाम ने इसके लिए कड़ा दंड निर्धारित किया है जिसमें सबसे महत्वपूर्ण क़ेसास है। यानी हत्या के बदले हत्या। इस्लाम क़ेसास के अलावा माफ़ करने पर भी बल देता है। पवित्र क़ुरआन सूरे शूरा की आयत नंबर 40 में कहता है कि बुराई का दंड उसी की तरह है और अगर कोई माफ़ कर दे और सुधार करे तो उसका फ़ल व प्रतिदान अल्लाह पर है। अल्लाह ज़ालिमों व अत्याचारियों को पसंद नहीं करता है।

 

जिस व्यक्ति की हत्या की गयी है इस्लाम ने उसके अभिभावकों को यह अधिकार दिया है कि वे चाहें तो क़त्ल के बदले क़त्ल करें या ब्लड मनी लें या माफ़ कर दें। यह न्याय को लागू करने में इस्लाम के लचीलेपन को दर्शाता है। इसी प्रकार इस्लाम का यह आदेश माफ़ करने और परित्याग को प्रोत्साहित करता है।

 

ईरान की इस्लामी क्रांति के संस्थापक स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी रह. अपनी किताब तहरीरूल वसिला में फ़रमाते हैं कि जानबूझ कर किया गया क़त्ल क़ेसास का कारण है और दिया अर्थात ब्लड मनी का कारण नहीं है परंतु जिसका क़त्ल किया गया है उसके अभिभावक को यह अधिकार है कि वह क़ेसास और माफ़ करने में से किसी एक का चयन कर सकता है। माफ़ और त्याग करने पर बल देना इस बात का सूचक है कि इस्लाम सामाजिक संबंधों को सुरक्षित रखने और मतभेदों के शांतिपूर्ण ढंग से समाधान के लिए प्रोत्साहित करता है।

 

नतीजाः क़त्ल करना इस्लाम में बहुत बड़ा गुनाह है और इसके लिए कड़ा दंड निर्धारित किया गया है। इसके साथ ही इस्लाम ने माफ़ व त्याग करने को प्रोत्साहित किया है। जिस व्यक्ति की हत्या की गयी है इस्लाम ने उसके अभिभावक को क़ेसास करने या माफ़ करने का अधिकार दिया है। यह इंसान दोस्ती और इस्लाम में न्याय की गहराई का सूचक है और इस्लाम चाहता है कि न्याय पर अमल होने के साथ साथ इंसान को सुधार करने का भी अवसर दिया जाये। इस आधार पर कहा जा सकता है कि इस्लाम जहां शांति व सुरक्षा स्थापित करने और न्याय पर अमल करने बल देता है वहीं सामाजिक संबंधों की सुरक्षा को बनाये रखने और माफ़ करने व त्याग की भावना के प्रचार- प्रसार पर भी बल देता है। MM

कीवर्ड्सः इस्लाम में क़त्ल का आदेश, क़ुरआन में क़त्ल, आतंकवाद और इस्लाम, इंसान पर क़ुरआन की दृष्टि, क़ेसास क्या है।

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