लोगों का धन्यवाद करना, महान ईश्वर का धन्यवाद है
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लोगों का धन्यवाद करना, महान ईश्वर का धन्यवाद है
पार्स टुडे- इमाम ज़ैनुलआबिदीन अलै. ने एक प्रकाशमान हदीस में इंसानों के धन्यवाद और ईश्वर के धन्यवाद के बीच एक गहन सम्बन्ध व्यक्त किया है यह सचाई दर्शाती है कि दूसरों का धन्यवाद करना, वास्तव में परमेश्वर का धन्यवाद करना है।
इस्लामी संस्कृति में कृतज्ञता एक बुनियादी मूल्य है, जो केवल ईश्वर के प्रति ही नहीं बल्कि मानव संबंधों में भी विशेष महत्व रखती है। इमाम ज़ैनुलआबिदीन अलै. जो इमाम हुसैन अलै. के पुत्र और पैगंबर इस्लाम के पोते हैं, ने हदीस में कहा:
क़यामत के दिन ईश्वर अपने बंदे से पूछते हैं: क्या तुमने फ़लां का धन्यवाद किया? बंदा जवाब देता है: मेरे रब, मैंने केवल तेरा धन्यवाद किया। ईश्वर कहेगा कि क्योंकि तुमने उसका धन्यवाद नहीं किया, वास्तव में तुमने मेरा भी धन्यवाद नहीं किया।
यह हदीस इंसानों के प्रति कृतज्ञता और ईश्वर के प्रति कृतज्ञता के बीच गहन संबंध स्थापित करती है। वास्तव में हमारे पास आने वाले अनुग्रह अक्सर दूसरों के माध्यम से प्रवाहित होते हैं, माता-पिता, मित्र, शिक्षक, सहकर्मी, और यहाँ तक कि अज्ञात व्यक्ति भी जो हमारे जीवन मार्ग में हमारी मदद करते हैं। यदि हम उनका आभार नहीं मानते, तो हम ईश्वर के उपहारों के माध्यमों की अनदेखी कर रहे हैं और यह असल में ईश्वर के प्रति अनादर माना जाता है।
दूसरों का धन्यवाद करना केवल शिष्टाचार और नैतिकता का प्रतीक ही नहीं है, बल्कि यह सामाजिक संबंधों को मजबूत करता है, प्रेम बढ़ाता है और समाज में सहयोग की भावना को फैलाता है। वहीं, ईश्वर का धन्यवाद करना भी इसी छोटे-छोटे दैनिक व्यवहारों पर निर्भर करता है, क्योंकि ईश्वर अपने अनुग्रहों को अपने बंदों के माध्यम से हमें प्रदान करता है। MM