Jun २०, २०२४ १६:४५ Asia/Kolkata
  • 15 मार्च 2019 को कनाडा, टोरेन्टो में न्यूज़ीलैंड मस्जिद में इस्लामोफ़ोबिया की भेंट चढ़ने वाली महिलाओं की एक तस्वीर
    15 मार्च 2019 को कनाडा, टोरेन्टो में न्यूज़ीलैंड मस्जिद में इस्लामोफ़ोबिया की भेंट चढ़ने वाली महिलाओं की एक तस्वीर

पार्सटुडे- मुसलमानों के ख़िलाफ़ जातीय व नस्ली भेदभाव एक वास्तविकता है और इसे इस्लामोफ़ोबिया के रूप में याद किया जाता है।

पश्चिमी एशिया में अमेरिकी नीतियों का औचित्य दर्शाने विशेषकर अतिग्रहणकारी और अपारथाइड ज़ायोनी सरकार के समर्थन के लिए भेंट चढ़ने वालों को अमानवीय दर्शाया जाये।

 

पार्सटुडे की ओर से कराई गयी समीक्षा के अनुसार कहा जा सकता है कि वर्तमान समय में और फ़िलिस्तीनियों के ख़िलाफ़ इस्राईली जंग के दौरान इस्लामोफ़ोबिया को आगे ले जाने वाले इस वास्तविकता को बयान करने के बजाये कि फ़िलिस्तीनियों के प्रतिरोध की अस्ल वजह अन्याय व अत्यार विरोधी है, यह बताने की चेष्टा में हैं कि मुसलमान हिंसक, मुतअस्सिब और पक्षपाती होते हैं।

 

इस बात को और बेहतर ढंग से समझने के लिए वर्ष 2016 पर एक नज़र डालते हैं। यह वह समय था जब अमेरिका में मुसलमान विरोधी वातावरण काफ़ी गर्म था यहां तक कि डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति के रूप में वाइट हाउस में दाख़िल हुए। उनकी एक योजना मुसलमानों को अमेरिका में दाख़िल होने से रोकनी थी और उनकी यह योजना उनकी विजय व सफ़लता के लिए एक उपहार सिद्ध हुई

परंतु ट्रंप की सफ़लता का बीज वर्ष 2016 से पहले और 11 सितंबर वर्ष 2001 में बो दिया गया था। उससे पहले और वर्ष 1990 के दशक में शीत युद्ध की समाप्ति के साथ सैमुअल पी. हंटिंगटन और बर्नार्ड लुईस जैसे बुद्धिजीवियों ने वाशिंग्टन में धीरे- धीरे इस विचारधारा के प्रचार- प्रसार में मदद की कि पश्चिम को इस समय इस्लाम और इस्लामी सभ्यता का सामना है।

 

सैमुअल पी. हंटिंगटन ने लिखा कि कम्युनिज़्म के ख़त्म हो जाने के बाद इस्लाम अमेरिका का दुश्मन था क्योंकि वह जातीय, क़ौमी और सांस्कृतिक दृष्टि से भिन्न था और सैनिक दृष्टि से काफ़ी मज़बूत था जो अमेरिका की सुरक्षा के लिए बड़ी चुनौती था परंतु वर्ष 2020 में अमेरिका में राष्ट्रपति का चुनाव हो जाने के बाद मुसलमानों के ख़िलाफ़ जंग विदित में समाप्त हो चुकी थी और ख़बरों की सुर्खियों में यह नहीं कहा जाता था कि मुसलमान ख़तरनाक हैं।

 

मुसलमानों के ख़िलाफ़ जो लफ़्फ़ाज़ियां होती थीं ट्रंप के दूसरी बार के राष्ट्रपति पद के लिए होने वाले चुनावी कंपेन में लगभग समाप्त हो गया था और इस बार इस्लाम के बजाये रूस और चीन को अमेरिका का अस्ली दुश्मन बताया गया।

 

इस्राईल द्वारा ग़ज़्ज़ा पर भीषण व अभूतपूर्व बमबारी, इस्लाम और मुसलमानों के ख़िलाफ़ प्रचार –प्रसार और हमले इस बात के सूचक हैं कि इस्लाम विरोधी कार्यवाहियां पूरी शक्ति के साथ यथावत जारी हैं। अमेरिका के इलिनोइस राज्य के प्लेनफ़ील्ड नगर में 6 वर्षीय बच्चे की चाकू से हत्या कर दी गयी। यही नहीं 6 वर्षीय बच्चे और उसकी मां पर चाक़ू से दसियों वार किये गये और हमलावर चिल्लाकर कहता है कि तुम मुसलमानों को मर जाना चाहिये।

 

इस्राईली नेताओं ने बारमबार 7 अक्तूबर 2023 को हमास की कार्यवाही को इस्राईल की 11 सितंबर का नाम दिया। इस अतार्किक तुलना के ज़रिये उन्होंने पहले की पश्चिमी सरकारों के अधिकारियों को भी अपनी हां में हां मिलाने की कोशिश की। इस तुलना को स्वीकार व क़बूल नहीं किया जा सकता। क्योंकि हमास का उद्देश्य पिछली शताब्दी से लेकर अब तक के इस्राईली अतिग्रहण को समाप्त करना है जबकि अलक़ायदा का लक्ष्य अमेरिकी वर्चस्व में विस्तार करना था।

 

ज़ायोनी सरकार ने स्वयं को मज़लूम दिखाया जिसका नतीजा यह निकला कि पश्चिमी सरकारों के अधिकारी इस्राईल की हां में हां मिलाने लगे और उनके असंतुलित बयान इस बात का कारण बने कि फ़िलिस्तीनियों और मुसलमानों के ख़िलाफ़ वातावरण पहले से अधिक हिंसात्मक व तनावग्रस्त हो गया और प्रायोजित ढंग इस्लामोफ़ोबिया में वृद्धि हो गयी। अमेरिका में इस्लामोफ़ोबिया की घटनाओं में 180 प्रतिशत, कनाडा में 1300 प्रतिशत और ब्रिटेन में 600 प्रतिशत की वृद्धि हो गयी।


ग़ज़्ज़ा के एक अस्पताल पर इस्राईल की बमबारी में मारे जाने वाले फ़िलिस्तीनियों के जनाज़ों की तस्वीर

 

विशेषज्ञों के अनुसार इस्लामोफ़ोबिया, इस्राईल द्वारा फ़िलिस्तीनियों के नरसंहार के मानसिक बोझ को कम करता है।

 

मुसलमानों के ख़िलाफ़ हिंसा में वृद्धि हो जाने के बावजूद ब्रिटेन, जर्मनी और फ्रांस जैसे पश्चिमी देशों में फ़िलिस्तीन समर्थकों का प्रदर्शन मना है। यद्यपि फ़िलिस्तीन के बहुत से समर्थकों ने क़ानूनों की अनदेखी की और सड़कों पर आकर उन्होंने प्रदर्शन किया जबकि फ्रांस में प्रदर्शनकारियों पर आंसू गैस के गोले फ़ायर किये गये और तेज़धार पानी की बौछारें छोड़ी गयीं और जर्मनी में प्रदर्शनकारियों पर हमला करके उन्हें मारा -पीटा गया।

 

 

ये घटनायें इस हद तक आश्चर्यजनक थीं कि ब्रितानी सांसदों ने भी इसके ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई। कंज़रवेटिव पार्टी सहित विभिन्न पार्टी के सांसदों ने सरकार की इस कारण कड़ी आलोचना की कि वह मुसलमानों के ख़िलाफ़ बढ़ती हिंसा को नियंत्रित व मुक़ाबला करने में अक्षम रही है।

 

इस संबंध में जर्मनी में विश्वविद्याल के एक प्रोफ़ेसर और राजनीतिक मामलों के विशेषज्ञ  Mathias Rohe ने अपने देश में मुसलमान विरोधी भावना में वृद्धि के प्रति चेतावनी दी और वह कहते हैं कि इस्लामोफ़ोबिया से मुक़ाबले के लिए समाज के बड़े भागों का सक्रिय करना ज़रूरी है।

 

सात अक्तूबर से अब तक यूरोप में इस्लामोफ़ोबिया और फ़िलिस्तीनियों के ख़िलाफ़ नफ़रत को सामान्य करना बहुत चिंताजनक रहा है। खेद के साथ कहना पड़ता है कि पश्चिमी संचार माध्यम इस बात का प्रचार -प्रसार कर रहे हैं कि जो भी फ़िलिस्तीनियों की आकांक्षाओं का समर्थन कर रहे हैं वे आतंकवाद का भी समर्थन कर रहे हैं।

 

इस्लामी विशेषज्ञों का मानना है कि पश्चिम में इस्लाम, क़ुरआन और पैग़म्बरे इस्लाम के ख़िलाफ़ जो भावना पाई जाती है उसकी मुख्य वजह इंसानों को दूसरों के वर्चस्व से बचाने व मुक्ति दिलाने में इस्लाम के अंदर मौजूद उच्च क्षमता है। पवित्र क़ुरआन के अनुसार दूसरों के वर्चस्व और अत्याचार को स्वीकार करना हराम है जिस तरह से ज़ुल्म करना हराम है।

 

इसी प्रकार क़ुरआन और पैग़म्बरे इस्लाम ने हमेशा इस बात को बल देकर कहा है कि जातियों और रंगों के मध्य किसी प्रकार का कोई अंतर नहीं है और वह इंसान अधिक बेहतर व श्रेष्ठ है जिसका तक़वा अर्थात ईश्वरीय भय अधिक हो। यानी श्रेष्ठता का मापदंड तक़वा है। MM

स्रोतः   Islamophobia is an urgent problem in Germany, expert says . 2023. Anadolu Agency.

Suella DeVille & the UK government’s criminalisation of Palestine solidarity . 2023 . The New Arab.

State hate: How the authorities fuel Islamophobia. 2024. Counterfire.

British lawmakers slam government for not tackling rising Islamophobia. 2023. Anadolu Agency.

Islamophobia in the US is rooted in its unconditional support for Israel. 2023.The New Arab.

 कीवर्ड्सः   पश्चिम में इस्लामोफ़ोबिया, अमेरिका में मुसलमानों का प्रवेश मना, 7 अक्तूबर, मुसलमानों के ख़िलाफ़ अपराध

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