लेबनान में फ़्रान्स की भूमिका और अमरीका से मतभेद
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लेबनान में राजनितिज्ञ एक ऐसी व्यापक सरकार के गठन की मांग कर रहे हैं जो नई शैलियों के साथ नए समाधान पेश कर सके और सन 1992 से लेबनान में गठित होने वाली राष्ट्रीय एकता की सरकारों से पूरी तरह अलग हो लेकिन फ़्रान्स के राष्ट्रपति एमानोएल मैक्रां ने अपनी लेबनान यात्रा के दौरान ऐसी कोई योजना और कार्यक्रम पेश नहीं किया जो इस बारे में लेबनानियों की मांग को पूरा करता हो।
(last modified 2023-04-09T06:25:50+00:00 )
Aug १३, २०२० १५:४३ Asia/Kolkata
  • लेबनान में फ़्रान्स की भूमिका और अमरीका से मतभेद

लेबनान में राजनितिज्ञ एक ऐसी व्यापक सरकार के गठन की मांग कर रहे हैं जो नई शैलियों के साथ नए समाधान पेश कर सके और सन 1992 से लेबनान में गठित होने वाली राष्ट्रीय एकता की सरकारों से पूरी तरह अलग हो लेकिन फ़्रान्स के राष्ट्रपति एमानोएल मैक्रां ने अपनी लेबनान यात्रा के दौरान ऐसी कोई योजना और कार्यक्रम पेश नहीं किया जो इस बारे में लेबनानियों की मांग को पूरा करता हो।

राजनितिज्ञों और टीकाकारों का मानना है कि लेबनान की संसद में मौजूद अधिकतर गुट, जिन्हें जनता का समर्थन हासिल है, इस बारे में सहमत हैं कि बैरूत बंदरगाह में होने वाले धमाके के नतीजे में पैदा होने वाले संवेदनशील हालात में देश में एक व्यापक सरकार का गठन होना चाहिए। यह घटना एक भूकंप की तरह है जिसके झटके सिर्फ़ लेबनान में ही नहीं बल्कि क्षेत्रीय देशों और दुनिया में भी महसूस किए गए हैं।

 

फ़्रान्स के राष्ट्रपति मैक्रां ने अपनी लेबनान यात्रा में इस देश के संसदीय दलों के नेताओं से मुलाक़ात में राष्ट्रीय एकता की सरकार के गठन का विषय पेश किया है। टीकाकारों का कहना है कि इनमें से कुछ दलों ने मैक्रां की बातों का समर्थन किया है और उन्हें व्यवहारिक बनाने का फ़ैसला किया है जबकि लेबनानी टीकाकारों व राजनितिज्ञों ने कहा है कि मैक्रां की लेबनान यात्रा की एक अस्ली वजह यह है कि यह देश, भूमध्य सागर के क्षेत्र में फ़्रान्स का अंतिम ठिकाना है और अगर लेबनान पूर्व की ओर झुक गया और उसने सीरिया, इराक़, ईरान, चीन व रूस के साथ अपने संबंधों को मज़बूत बना लिया तो यह बात पश्चिम विशेष कर फ़्रान्स के लिए बहुत हानिकारक होगी।

 

कुछ टीकाकारों का यह भी कहना है कि राजनैतिक हमले के एक नए चरण की तरफ़ बढ़ रहा है और अमरीकी एक क़दम भी पीछे नहीं हटेंगे चाहे लेबनान में राष्ट्रीय एकता की सरकार ही क्यों न गठित हो जाए। लेबनानी टीकाकारों व राजनितिज्ञों के अनुसार अतीत में जो चीज़ लेबनान के प्रगति न करने और पिछड़ेपन का शिकार बने रहने का कारण बनी है, वह मुख्य मुद्दों पर सहमति का अभाव है क्योंकि मूल बातों व बिंदुओं पर तो सहमति रही है लेकिन उन मुद्दों के ब्योरे पर कभी भी सहमति नहीं हो पाई। अगर फ़्रान्स के राष्ट्रपति के पास सहमति के ये छोटे छोटे बिंदु न हुए तो कहा जा सकता है कि उनके पास व्यवहारिक रूप से लेबनान के लिए कोई योजना ही नहीं है। (HN)