रूसी पर्यवेक्षक का बड़ा सवाल, अरब दुनिया के पास परमाणु बम कब आएगा? कौन से देश परमाणु शक्ति बनने के क़रीब हैं?
(last modified Mon, 21 Dec 2020 10:08:16 GMT )
Dec २१, २०२० १५:३८ Asia/Kolkata
  • रूसी पर्यवेक्षक का बड़ा सवाल, अरब दुनिया के पास परमाणु बम कब आएगा? कौन से देश परमाणु शक्ति बनने के क़रीब हैं?

मशहूर रूसी लेखक इलेग़्ज़ंडर नज़ारोफ़ ने रशा टुडे के साथ साक्षात्कार में एक बड़ा सवाल दाग़ दिया कि आख़िर यह अरब दुनिया कब परमाणु हथियार बना पाएगी?

इस सवाल का जवाब अगर देना चाहें तो कई खंडों पर आधारित किताब तैयार हो जाएगी क्योंकि यह बताना पड़ेगा कि इस मार्ग में रुकावटें क्या हैं और इस समय अरब दुनिया किस प्रकार के हालात से गुज़र रही है और यह भी कि भ्रष्टाचार की क्या स्थिति है? क्या वजह है कि अरब सरकारों ने इस्राईल की गोद में जाकर बैठ जाने के लिए रेस लगा दी है। अगर यह सरकारें ज़ायोनी अभियान का हिस्सा बनकर मुसलमानों और अरबों का अपमान करना शुरू कर दें तो इस पर भी हैरत नहीं होगी।

इस्राईल ने जब 200 परमाणु बम बना लिए तो अरब दुनिया में यह बात महसूस तो बहुत की गई कि शक्ति का संतुलन बनाने के लिए अरब दुनिया के पास परमाणु हथियार होना चाहिए मगर अरब दुनिया में स्ट्रैटेजी और विजन की कमी की वजह से भयानक पतन के हालात हैं यहां तक कि अरब देशों का नेतृत्व इस्राईल के हाथ में आ गया है।

इन हालात में कोई अरब देश परमाणु शक्ति बन जाए यह असंभव नज़र आ रहा है। अगर हम इस्लामी दुनिया को देखें तो पाकिस्तान के पास परमाणु हथियार हैं जबकि ईरान और तुर्की के पास परमाणु तकनीक आ चुकी है यानी अगर वह चाहें और उनकी रणनीति हो तो वह परमाणु क्षेत्र में काफ़ी आगे जा सकते हैं। लेकिन इन देशों के पास अरब दुनिया के संबंधों पर नज़र डाली जाए तो हालत यह है कि संबंध बहुत ख़राब हैं। यहां तक कि पाकिस्तान जिसके परमाणु कार्यक्रम में अरब जगत की दौलत की महत्वपूर्ण भूमिका बताई जाती है वह भी अरब देशों के रवैए से नाराज़ है। हमने देखा कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान सऊदी अरब की तीन अरब डालर की रक़म लौटा रहे हैं।

इमरान ख़ान दो अरब डालर लौटा चुके हैं और चीन से क़र्ज़ लेकर वह शेष एक अरब डालर की रक़म भी लौटाने जा रहे हैं।

ईरान के पास कई परमाणु प्रतिष्ठान हैं जहां दसियों हज़ार सेंट्रीफ़्यूज मशीनें काम कर रही हैं। ईरान के पास लगभग 3600 किलोग्राम का संवर्धित यूरेनियम का भंडार है। अगर ईरान चाह ले तो इससे दो परमाणु बम बन सकते हैं।

तुर्की ने अपने पारम्परिक हथियार उद्योग को बहुत विस्तार दिया है और रक्षा उद्योग में आत्म निर्भरता के क़रीब पहुंच चुका है। तुर्की नैटो का सदस्य भी है और उसने रूस के साथ चार परमाणु प्रतिष्ठानों के निर्माण की डील की है।

जब पूर्व सोवियत संघ का विघटन हो रहा था उस समय अरब देशों के पास छोटे परमाणु बम ख़रीदने का मौक़ा था। उस समय सोवियत संघ के पास 2700 परमाणु वारहेड थे जबकि दर्जनों परमाणु वैज्ञानिक सड़क पर आ गए थे। इन वैज्ञानिकों को ख़ुफ़िया तौर पर सहयोग के लिए तैयार किया जा सकता था। पाकिस्तान के मशहूर परमाणु वैज्ञानिक डाक्टर अब्दुल क़दीर ख़ान की भी वह मदद ले सकते थे। मगर कोई भी अरब सरकार यह क़दम उठाने की हिम्मत नहीं कर सकी। लीबिया और इराक़ ने इस दिशा में कदम उठाया तो इन दोनों देशों के ख़िलाफ़ भयानक साज़िश रचकर उन्हें तबाह कर दिया गया।

इतिहास एक बार फिर ख़ुद को दोहरा रहा है। जिन देशों ने अमरीका के साथ मिलकर इराक़ को तबाह किया अब वही ईरान के ख़िलाफ़ सक्रिय हैं और इस बार नेतृत्व इस्राईल के हाथ में है। अब यह अलग बात है कि हालात बदल गए हैं और ईरान जिस पोज़ीशन में पहुंच गया है वहां बड़ी ताक़तें भी उसके ख़िलाफ़ कोई क़दम उठाने से पहले सौ बार सोचने पर मजबूर हैं।

लेखक नज़ारोफ़ के सवाल पर हम यही कहेंगे कि अरब दुनिया परमाणु हथियार के मामले में अभी बहुत दूर है।

रायुल यौम

नोटः लेख में व्यक्त किए गए विचारों से पार्स टुडे हिंदी का सहमत होना ज़रूरी नहीं है।

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