ये हैं मुनाफ़िक़ की अलामतें! मुनाफ़िक़ और काफ़िर में बदतर कौन है?
जिस तरह मोमिन, काफ़िर, शरीफ़ और नीच की अलामतें होती हैं उसी तरह नेफ़ाक़ और मुनाफ़िक़ की भी अलामते हैं।
नेफ़ाक़ नैतिक बीमारी है वह कैंसर या शायद उससे भी बदतर है। जो इंसान शारीरिक स्वास्थ्य के अलावा नैतिक स्वास्थ्य का इच्छुक है उसे चाहिये कि नेफ़ाक़ की पहचान करके उसका उपचार करे जिस तरह वह कोरोना जैसी बीमारी की पहचान के बाद उसका उपचार करता है। जो लोग नेफाक़ की पहचान हो जाने के बाद भी उसे अपने अंदर से दूर करने का प्रयास नहीं करते उनकी मिसाल उस इंसान की तरह है जो ब्रेन ट्यूमर की पहचान के बाद भी उसे बढ़ने देता और उसका इलाज नहीं करता।
यहां हम नेफाक़ और मुनाफिक़ की कुछ अलामतों का उल्लेख कर रहे हैं इस आशा के साथ हममें से किसी के अंदर भी इनमें से कोई अलामत नहीं होगी और अगर है तो जल्द से जल्द उसका उपचार कर लेना चाहिये वरना बुरा अंजाम और कड़ा दंड मुनाफ़िक़ के इंतेज़ार में है। मुनाफ़िक़ की बहुत अलामतें हैं जिनमें से कुछ का यहां हम उल्लेख कर रहे हैं।
1- मुनाफ़िक़ की एक अलामत यह है कि वह झूठ बोलता है यानी झूठ नेफ़ाक़ की अलामत है। हमारे समाज में एसे कुछ से लोग मिल जायेंगे तो न केवल झूठ बोलते हैं बल्कि झूठ बोलने में माहिर हैं और इसे वे अपनी कला व हुनर समझते हैं। यही नहीं झूठ बोलते- बोलते कुछ लोग इतने माहिर हो जाते हैं कि उनकी बातें सुनने के बाद सही बोलने वाला भी शक में पड़ जाता है। झूठ बोलने वाले इंसान को मालूम होना चाहिये कि झूठ बोलना शराब पीने से भी बदतर है।
2- मुनाफ़िक़ की एक अलामत यह है कि उसका ज़ाहिर बहुत अच्छा होता है और बातिन खाली व ख़राब होता है यानी धार्मिक बातें ज़्यादा करता है और अमल में बेजान बुत समान होता है और उसका अमल उसकी वास्तविकता का परिचायक होता है।
3- मुनाफ़िक़ की एक अलामत यह है कि वह सच और हक़ को जानने के बाद भी सूखी लकड़ी के टुकड़े की भांति अकड़ा रहता है और सच को स्वीकार नहीं करता है।
4- मुनाफ़िक़ की एक अलामत यह है कि वह सच और हक़ का मज़ाक़ उड़ाता है।
5- मुनाफ़िक़ अपने आपको इज़्ज़तदार और दूसरों को ज़लील व तुच्छ समझता है।
6- गुमराह होना और दूसरों को गुमराह करना मुनाफ़िक़ की एक अलामत है।
7- मुनाफ़िक़ की एक अलामत यह है कि उसका एक रूप नहीं होता है। वह गिरगिट की तरह अपना रंग, रूप और चोला बदलता रहता है। यानी वह बहुरुपिया होता है। उसका एक चेहरा नहीं होता है। जब वह मोमिन लोगों में होता है तो अल्लाह रसूल और क़यामत की बातें करता है और जब बेदीन लोगों में होता है तो उसका उन्हीं जैसा रूप होगा।
8- मुनाफ़िक़ हमेशा शरीफ़ और मोमिन लोगों की छवि खराब करने की चेष्टा में रहता है और इसके लिए वह जो कर सकता है करता है।
9- मुनाफ़िक़ की एक अलामत यह है कि दूसरों के आराम व सुकून से उसे जलन व तकलीफ़ होती है और जब कोई किसी मुसीबत में फंस जाता है तो उसे खुशी होती है।
10- मुनाफ़िक़ लोगों में नाउम्मीदी की बात करता है और पूरउम्मीद लोगों को भी नाउम्मीद करने की कोशिश करता है। वह लोगों के दिलों में घुसने के लिए घड़याली आंसू बहाता है और खुद को यह दिखाने की कोशिश करता है कि वह भी दूसरों की मुसीबत में शामिल है जबकि अंदर से वह खुश होता है।
11- वह अपनी प्रशंसा को एक दूसरे को क़र्ज़ देता है यानी अगर वह किसी की तारीफ़ करता है तो इस उम्मीद के साथ कि दूसरा भी उसकी प्रशंसा करे। आम बोलचाल में कहा जाता है कि तुम मुझे हाजी कहो तो मैं तुम्हें क़ाज़ी कहूंगा। मुनाफिक जब किसी की मलामत करता है तो सामने वाले का राज़ खोलता है और जब कोई फैसला करता है तो सीमा से बढ़ जाता है।
12- ग़लत चीज़ को हक़ व सत्य बना कर पेश करने की कोशिश करता है।
13- पैग़म्बरे इस्लाम फरमाते हैं कि मुनाफ़िक़ की तीन अलामते हैं जब बात करता है तो झूठ बोलता है, जब वादा करता है तो वादा ख़िलाफ़ी करता है और जब उसके पास कोई अमानत रखी जाती है तो उसमें ख़यानत करता है। इस हदीस शरीफ़ की रोशनी में कह सकते हैं कि झूठ बोलना भी मुनाफिक़ की एक अलामत है। दूसरे शब्दों में जो जितना झूठ बोलता है उसके अंदर उतना ही नेफाक़ होता है।
वादा ख़िलाफी के संबंध में एक बिन्दु को बताना चाहते हैं और वह यह है कि अगर कोई जुमे को मिलने का वादा करे और बीच में उसे काम पेश आ जाये जिसकी वजह से वह न मिल सके तो यह वादा खिलाफी नहीं है। वादा खिलाफी यह है कि जब इंसान वादा करता है तो उसी वक्त से उसके दिल में है कि जो वादा किया है उस पर अमल नहीं करना है।
अमानत में ख़यानत के सिलसिले में भी एक बात कहना चाहते हैं कि अमानत के लिए यह ज़रूरी नहीं है कि पैसा ही अमानत हो बल्कि बात भी अमानत होती है। अगर किसी ने आपको कोई बात बतायी और यह कहा कि किसी को मत बताना और आपने बता दिया तो यह भी अमानत में ख़यानत है या किसी ने आपके पास दो हज़ार रूपया अमानत के तौर पर रखा और उसमें कुछ नई, अच्छी और कड़कड़ाती नोटें थीं और उनके स्थान पर आपने सड़ी-गली नोट रख दी और अच्छी नोटों को ले लिया तो यह भी अमानत में ख़यानत है।
15- मुनाफ़िक़ की एक अलामत यह है कि जब वह लोगों में होता है तो अल्लाह-रसूल की यानी दीनी बातें ज़्यादा करता है मगर तन्हाई व अकेल में नहीं करता है।
16- मुनाफ़िक़ की एक अलामत यह है कि वह हर रोज़ ग़लती करता और माफी मांगता है।
17- इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम फरमाते हैं कि मुनाफिक़ की चार अलामतें हैं, दुनिया का भूखा होता है, दिल का सख्त होता है, गुनाह करने पर इसरार व आग्रह करता है और उसकी आंखें खुश्क होती हैं।
18- बहरहाल नेफ़ाक़ बहुत ही ख़तरनाक नैतिक बीमारी है जिसके अंदर हो उसे इसकी पहचान करके उसका इलाज कर लेना चाहिये वरना बहुत ही बुरा अंजाम मुनाफिक़ इंसान के इंतेज़ार में है और प्रलय के दिन मुनाफिक़ का अंजाम काफिर के अंजाम से भी बुरा होगा। दूसरे शब्दों में मुनाफ़िक़ काफ़िर से भी बदतर है और बदतर का अंजाम भी बदतर ही होगा।
महान व सर्वसमर्थ ईश्वर से प्रार्थना है कि हम सबको इस ईमानलेवा बीमारी से महफ़ूज़ रखे। आमीन
नोटः ये व्यक्तिगत विचार हैं। पार्सटूडे का इनसे सहमत होना ज़रूरी नहीं है। MM
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