क़ज़ाक़िस्तान के उपद्रव में था विदेशी हाथः रिपोर्ट
(last modified Mon, 31 Jan 2022 13:48:27 GMT )
Jan ३१, २०२२ १९:१८ Asia/Kolkata

क़ज़ाक़िस्तान में जनवरी के आरंभ में शुरू होने वाले उपद्रव में विदेशी हाथ जो वहां के बहुत से नगरों में फैल गया था।

इस बात को नकारा नहीं जा सकता कि हालिया दिनों में क़ज़ाक़िस्तान में जो विद्रोह हुआ था उसमें विदेशी हाथ नहीं था।  बाद में की जाने वाली जांच से पता चला कि इसमें कुछ विदेशी शक्तियों का हाथ रहा है जिसमें पश्चिमी देश भी शामिल हैं। 

2 जनवरी 2022 से आरंभ होने वाले उपद्रव के दौरान क़ज़ाक़िस्तान के राष्ट्रपति, क़ासिम ज़ामर्त ताकाएफ ने कई बार इस विद्रोह में विदेशी हाथ होने की बात कही थी।  इस विद्रोह में ब्रिटेन और अमरीका के नेतृत्व में कुछ पश्चिमी और क्षेत्रीय सरकारों के सहयोग को नकारा नहीं जा सकता।  पश्चिमी सरकारों ने कुछ क्षेत्रीय सरकारों के सहयोग से अपने प्रयास तेज़ कर दिये थे ताकि क़ज़ाक़िस्तान की सरकार का तख़्ता पलटकर वहां उनके दृष्टिगत मोहरे को लाया जाए।  इस दौरान ईरान, रूस और चीन के समर्थन से क़ज़ाक़िस्तान में उपद्रव को विफल बनाया जा सका।

विदेशी हस्तक्षेप के संदर्भ में क़ज़ाक़िस्तान के राष्ट्रपति कहते हैं कि इस उपद्रव के दौरान आतंकवादियों ने राजधानी के हवाई अड्डे पर नियंत्रण कर लिया था जिसके बाद सशस्त्र आतंकवादी बड़ी सरलता से देश में दाख़िल हो गए जो सरकार के विरुद्ध कार्यवाहियां अंजाम देने लगे।  यह लोग क़ज़ाक़िस्तान में उपद्रव फैलाने के लिए केन्द्रीय एशिया के एक देश से भेज गए थे।

इस उपद्रव के दौरान जब क़ज़ाक़िस्तान की सरकार इसको नियंत्रित करने में विफल हो गई तो उसने स्थति में सुधार के लिए "सीएसटीओ" के शांति रक्षकों को आमंत्रित किया।  जब सीएसटीओ अर्थात "कलेक्टिव सिक्योरिटी ट्रीटी आरगनाइज़ेशन" के शांति रक्षको ने, क़ज़ाक़िस्तान में पहुंच कर अपना काम आरंभ किया तो उसी समय से पश्चिम ने क़ज़ाक़िस्तान संकट के बारे में नकारात्मक रवैया अपनाना आरंभ कर दिया था।

इस बारे में अमरीका के विदेशमंत्री ने कहा था कि सीएसटीओ के सैनिकों को क़ज़ाक़िस्तान से बाहर निकालना लगभग एक असंभ काम है।  उनका यह बयान दर्शाता है कि अमरीकी नेता न केवल क़ज़ाक़िस्तान के उपद्रव से सहमत थे बल्कि वे वहां पर रूसी सैनिकों की उपस्थिति को अपने हितों और लक्ष्यों के लिए ख़तरा समझनेक लगे थे।  जब क़ज़ाक़िस्तान में शांति स्थापित हो गई तो सीएसटीओ के सारे सैनिक इस देश से निकल गए।

जानकारों का कहना है कि क़ज़ाक़िस्तान के संकट के दौरान अमरीका और ब्रिटेन के नेतृत्व में पश्चिमी सरकारें और उनके कुछ क्षेत्रीय घटक देश, उपद्रवियों का ही समर्थन कर रहे थे।  यह देश किसी भी स्थिति मेंं वहां पर शांति की स्थापना से बहुत चिंतित थे।  टीकाकारों का कहना है कि क़ज़ाक़िस्तान में फिलहाल शांति स्थापित हो चुकी है किंतु इसके बावजूद वहां के नेताओं को चाहिए कि वे हालिया अनुभव से सबक़ लेते हुए अधिक सचेत रहें।

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