जर्मनी की अर्थ व्यस्था की नब्ज़ थम गई
नार्द स्ट्रीम1 जो यूरोप को रोज़ाना 17 करोड़ घनमीटर गैस सप्लाई करती थी अब मरम्मत के नाम पर इस गैस पाइपलाइन से सप्लाई ठप्प हो गई।....जर्मनी की वित्तीय संस्थाएं जो कोरोना के बाद अब अर्थ व्यवस्था के पटरी पर लौटने का अनुमान लगा रही थीं अब मायूस हैं...
यूक्रेन की जंग ने जर्मनी की अर्थ व्यवस्था को भारी नुक़सान पहुंचा दिया है। साल की शुरुआत में हम अनुमान लगा रहे थे कि आर्थिक विकास की दर साढ़े चार प्रतिशत तक पहुंच जाएगी मगर अब तो लगता है कि विकास दर शायद डेढ़ प्रतिशत रहेगी। जर्मनी में ईंधन की क़ीमतों ने फिर रफ़तार पकड़ ली है। अब तक सरकार ने सब्सिडी की मदद से किसी हद तक क़ीमतों को नीचे रखा था। एक लीटर पेट्रोल और डीज़ल की क़ीमत 2 यूरो से ऊपर निकल गई है।....नागरिक का कहना है कि हम सरकार से और मदद की उम्मीद रखते हैं। मैं बस काम ही करता रहता हूं मगर केवल ईंधन का ख़र्च ही निकाल पाता हूं।....जर्मनी का सेंट्रल बैंक कहता है कि पतझड़ के मौसम में इंफ़्लेशन दो डिजिट में पहुंच जाने वाला है। मगर राजनेता बार बार यही रट लगाए हुए हैं कि रूस पर पाबंदियां लगाना ज़रूरी है।......मगर मीडिया में आने वाली ताज़ा सर्वे रिपोर्टें बताती हैं कि देश के मतदाताओं की ओर से सरकार का समर्थन अपने न्यूनतम स्तर पर पहुंच गया है और लोग रूस पर लगाई जाने वाली पाबंदियों का अब समर्थन नहीं करना चाहते। जर्मनी की संसद में विपक्षी दलों ने सरकार की नीतियों पर अपना विरोध खुलकर जताना शुरू कर दिया है।.....विक्षपी नेता का कहना है कि हम यही कहते हैं कि यह जंग जर्मनी के हित में नहीं है। मार्च महीने में हमारे वित्त मंत्री ने फ़क़ीरों के अंदाज़ में क़तर का दौरा किया। मगर कोई समझौता नहीं हो सका। जून महीने में विदेश मंत्री ने भी अमरीका से गैस हासिल करने की कोशिश की मगर कुछ हाथ नहीं लगा। कनाडा के प्रधानमंत्री और अन्य अधिकारी गैस के लिए भीख मांगते फिर रहे हैं। हम समझते हैं कि यह स्थिति जर्मनी की जनता के हित में नहीं है। जर्मन सरकार पर आपत्ति बढ़ती जा रही है जिसका एक ब्योरा यह हो सकता है कि जो सिस्टम रूस की गैस की बुनियाद पर खड़ा था और यूरोप की तरक़्की में मदद कर रहा था अब वह ढह जाने की कगार पर है।
बर्लिन से आईआरआईबी के लिए अमीर शुजाई की रिपोर्ट