लैटिन अमेरिका में वाशिंगटन की चौधराहट को चुनौती
मैक्सिकन राष्ट्रपति एंड्रेस मैनुअल लोपेज़ ओब्रेडोर ने स्वतंत्र देशों के मामलों में हस्तक्षेप करने की अमेरिका की "बुरी आदत" की आलोचना करते हुए कहा: अमरीका की एक बहुत बुरी आदत है, और वह यह कि वह हमेशा उन मुद्दों में हस्तक्षेप करता है, जिनका उससे कोई लेना-देना नहीं होता है।
पेरू संकट में वाशिंगटन की भूमिका का उल्लेख करते हुए मेक्सिको के राष्ट्रपति ने कहा: अगर बाइडन प्रशासन अपनी इसी नीति को जारी रखना चाहता है, तो उसे पेरू में जो हो रहा है, उससे निपटना चाहिए; वहां के अमरीकी राजदूत तख्तापलट की साज़िश रचने वालों के सलाहकार हैं।
ओब्रेडोर ने अमरीका के इस पाखंड को समाप्त करने का आह्वान करते हुए कहा कि राजनीतिक और आर्थिक रूप से वाशिंगटन के तंत्र, उसी प्रक्रिया की निरंतरता हैं, जो उसने लैटिन अमेरिका पर हावी होने के लिए इस्तेमाल किए थे।
इससे पहले भी मैक्सिकन राष्ट्रपति ने अपने देश में एनजीओज़ को अमरीकी फ़ंडिंग को व्हाइट हाउस की हस्तक्षेपपूर्ण विदेश नीति बताया था, जो एक घिसीपिटी औपनिवेशिक नीति का हिस्सा है, और अब यह इस समय में फ़िट नहीं बैठ रही है।
उन्होंने कहा कि मैक्सिकन सरकार, एक क़ानूनी सरकार है, जो लोकतांत्रिक रूप से और लोगों की इच्छा से चुनी गई है, इसीलिए इस तरह के कार्यों से हस्तक्षेप करने वाली सरकारों की नैतिक और राजनीतिक साख ही ख़राब होगी।
दर असल, वाशिंगटन खुलेआम क्षेत्रीय देशों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप कर रहा है और उसने मैक्सिको में होने वाले विरोध प्रदर्शनों के समर्थन के बहाने, इस देश की राजनीतिक व्यवस्था में दख़ल देना शुरू कर दिया है।
मैक्सिको के राष्ट्रपति द्वारा लैटिन अमरीकी देशों में अमरीका की दख़ल अंदाज़ी की गंभीर और अभूतपूर्व आलोचना ने इस क्षेत्र में अमरीका की विश्वसनीयता को एक बार फिर बट्टा लगा दिया है।
वास्तव में वाशिंगटन आज भी ख़ुद को लैटिन अमेरिका का संरक्षक और मालिक मानता है। इसी मानसिकता के तहत वह हमेशा इस क्षेत्र के देशों को दबाकर रखना चाहता है। वह इस क्षेत्र में वामपंथी नेताओं और सरकारों को उखाड़ फेंकने की कोशिश करता रहा है। यह दृष्टिकोण अमरीका के अहंकारी और दबंग स्वभाव का परिचायक है।
हालांकि, वेनेज़ुएला, क्यूबा, निकारागुआ और बोलीविया में उसे स्पष्ट रूप से मुंह की खानी पड़ी ह और विफलता का सामना करना पड़ा है। इसके अलावा, मैक्सिको, कोलंबिया, ब्राज़ील, अर्जेंटीना और चिली जैसे देशों में वामपंथी राष्ट्रपतियों ने अमरीका के ख़िलाफ़ अपना दमख़म दिखाया है।