Aug २७, २०२३ १०:३२ Asia/Kolkata
  • डेनमार्क ने अपनी ग़लती सुधारी, स्वीडन को अभी भी नहीं आई समझ

स्वीडन के प्रधानमंत्री उल्फ क्रिस्टर्सन ने कहा है कि डेनमार्क की तरह धार्मिक ग्रंथों की जलाने पर प्रतिबंध लगाने की स्वीडन की कोई योजना नहीं है, क्योंकि इसके लिए देश के संविधान में संशोधन की आवश्यकता होगी।

प्राप्त रिपोर्ट के मुताबिक़, डेनमार्क के न्याय मंत्री पीटर हम्मेलगार्ड ने शुक्रवार को एक बयान जारी करके बताया था कि उनकी सरकार का इरादा है कि एक ऐसा क़ानून बनाया जाए कि जिससे देश में किसी भी धर्म की धार्मिक पुस्तकों का अनादार न किया जा सके। उन्होंने कहा कि हालिया दिनों में जो पवित्र पुस्तक के जलाने की निंदनीय घटना हुई है उसपर हमे भी अफसोस है। इस बीच शनिवार को डेनमार्क ने पवित्र धार्मिक ग्रंथों को जलाने और उनका अनादर करने के ख़िलाफ़ एक क़ानून बनाए जाने की घोषणा कर दी है। डेनमार्क के विदेश मंत्री लार्स लोके रासमुसेन ने कहा कि यह क़दम एक महत्वपूर्ण राजनीतिक संकेत है जिसे डेनमार्क दुनिया को भेजना चाहता था। वहीं डेनमार्क द्वारा धार्मिक ग्रंथों, विशेषकर पवित्र क़ुरआन को जलाए जाने और उसका अनादर किए जाने के ख़िलाफ़ बनाए गए क़ानून और लगाए गए प्रतिबंध पर दुनिया भर के देशों और ख़ासकर मुस्लिम देशों ने स्वागत किया है।

पवित्र क़ुरआन के समर्थन में लोग मार्च निकालते हुए। 

इस बीच स्वीडन के प्रधानमंत्री उल्फ क्रिस्टर्सन ने भी डेनमार्क द्वारा उठाए गए क़दम की तारीफ़ तो की है लेकिन साथ ही में कहा है कि तीव्र ख़तरों के संपर्क में आने वाला हर देश उनसे निपटने का अपना तरीक़ा चुनता है। उन्होंने कहा कि डेनमार्क ने जो किया है उसके लिए मेरे मन में भी बहुत सम्मान है। लेकिन जैसा उसने क़ानून बनाया है वैसा करने के लिए हमे एक संवैधानिक संशोधन की आवश्यकता पड़ेगी, इसलिए स्वीडन के लिए इस तरह का क़नून बनाना सही तरीक़ा नहीं होगा। ग़ौरतलब है कि स्वीडन के अधिकारियों ने 18 अगस्त को एक बयान जारी करके कहा था कि वे सार्वजनिक व्यवस्था के क़ानून की समीक्षा करेंगे, जो देश में पवित्र क़ुरआन जलाने वाले प्रदर्शनों की अनुमति देता है। इस बीच स्वीडिश न्याय मंत्री गुन्नार स्ट्रोमर ने कहा है कि यदि सार्वजनिक व्यवस्था या सुरक्षा ख़तरे में पड़ती है तो सार्वजनिक सभा पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है। बता दें कि हालिया महीनों में स्वीडन और डेनमार्क में पवित्र क़ुरआन को जलाने और उसका अनादर करने की कई निंदनीय घटनाएं हुई हैं। जिसपर दुनिया भर के देशों, विशेषकर मुस्लिम देशों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों ने कड़े शब्दों में निंदा करते हुए उसपर सख़्त प्रतिक्रिया दी थी। ईरान समेत कुछ देशों ने इन दोनों देशों के राजदूतों को तलब किया था और राजनायिक संबंधों को ख़त्म करने की चेतावनी भी दे डाली थी। साथ ही कई देशों में जनता द्वारा व्यापक विरोध-प्रदर्शन भी किए गए थे। (RZ)

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