Feb १८, २०२४ ११:४४ Asia/Kolkata

आयरलैंड के विदेशमंत्री माइकल मार्टिन ने कहा है कि सुरक्षा परिषद में पांच देशों को जो वीटो का अधिकार प्राप्त है 21वीं शताब्दी में उसका कोई स्थान नहीं है।

माइकल मार्टिन ने जर्मनी में आयोजित म्यूनिख सुरक्षा कांफ्रेन्स में कहा कि अमेरिका ने गज़्जा में युद्ध विराम कराने के प्रस्ताव को कई बार वीटो किया और अब वीटो का समय बीत चुका है और उसे समाप्त किया जाना चाहिये क्योंकि वह पीछे पलटने का कारण बन रहा है।

इससे पहले तुर्किए के विदेशमंत्री ने भी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्यों के वीटो के अधिकार को रद्द किए जाने की मांग की थी। तुर्क विदेश मंत्री ने न्यूयॉर्क में राष्ट्र संघ महासभा के 77वें सत्र के इतर पत्रकारों से बात करते हुए कहा था कि अंकारा का मानना है कि सुरक्षा परिषद का दायरा विस्तृत होना चाहिए और पांच स्थायी सदस्य देशों के वीटो के अधिकार को समाप्त किया जाना चाहिए।

ग़ौरतलब है कि इससे पहले तुर्क राष्ट्रपति रजब तैयब अर्दोगान भी कई बार इस मांग को दोहरा चुके हैं और उनका कहना है कि इन पांच देशों के अलावा भी दुनिया है। उनका कहना है कि वीटो के अधिकार का अधिकांश ग़लत इस्तेमाल किया जाता रहा है और जो भी प्रस्ताव वीटो का अधिकार रखने वाले देशों के हितों से टकराता है, वह उसे वीटो कर देते हैं, चाहे बाक़ी दुनिया के लिए वह कितना ही ज़रूरी क्यों न हो। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्य देशों अमरीका, रूस, चीन, ब्रिटेन और फ़्रांस को वीटो का अधिकार हासिल है।

वीटो का अधिकार रखने वाले देशों में से अमरीका ने अभी तक सबसे ज़्यादा इस अधिकार का इस्तेमाल किया है। वाशिंगटन अब तक 80 से ज़्यादा बार वीटो का इस्तेमाल कर चुका है और इसमें से भी सबसे ज़्यादा इस्राईल के समर्थन में उसने इसका इस्तेमाल किया है। 

जानकार हल्कों का मानना है कि अमेरिका द्वारा युद्ध विराम के प्रस्ताव का वीटो किया जाना पश्चिमी डेमीक्रेसी का एक नमूना है और अमेरिका ने अपने कृत्यों से ग़ैर कानूनी व अवैध जायोनी सरकार को फिलिस्तीन के मज़लूम लोगों के और खून बहाने का लाइसेन्स दे दिया है।

इन हल्कों का मानना है कि आज दुनिया में शांति व सुरक्षा स्थापित करने में राष्ट्रसंघ व सुरक्षा परिषद अपने दायित्वों का जो निर्वाह नहीं कर पा रहे हैं वह स्वयं सुरक्षा परिषद के ढांचे में मौजूद कमियां हैं और जिनमें से एक वीटो का अधिकार है। आज वीटो का अन्यायपूर्ण अधिकार ही फिलिस्तीन के हज़ारों मज़लूम व निर्दोष लोगों की हत्या का कारण बना है।

गज्जा में युद्ध बंद कराने के संबंध में पेश किये गये प्रस्तावों का अमेरिका द्वारा दो बार वीटो किया जाना इस बात का ज्वलंत प्रमाण है कि जिस सुरक्षा परिषद और राष्ट्रसंघ का गठन दुनिया में शांतिं व सुरक्षा के लिए किया गया है आज उसी सुरक्षा के ढांचे में एसी कमियां व भेदभावपूर्ण कानून मौजूद हैं जिनकी वजह से अत्याचारियों का हाथ खुला हुआ है और पूरी दुनिया के लोग चाह कर भी कुछ नहीं कर पा रहे हैं।

जानकार हल्कों का कहना है कि सुरक्षा परिषद और राष्ट्रसंघ के ढांचे में सुधार की आवश्यकता का आभास अब हर समय से अधिक किया जा रहा है और वीटो के अधिकार को खत्म किया जाना चाहिये और यह वह बात है जिसका अब तक दुनिया के विभिन्न देशों के नेता मांग  कर चुके हैं। MM

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