May ०७, २०२४ ११:०६ Asia/Kolkata
  • Georges Bidault, Anthony Eden and John Foster Dulles
    Georges Bidault, Anthony Eden and John Foster Dulles

30 अप्रैल 1954 को अमरीका की राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद इस नतीजे पर पहुंची कि वियतमान में जारी जंग में फ़्रांसीसियों को परमाणु बमों की आपूर्ति करनी पड़ सकती है।

आज़ादी के लिए वियतनाम के लोगों के कड़े संघर्ष के मुक़ाबले में फ़्रांसीसी बेबस हो गए थे, इसलिए उन्होंने अमरीका से मदद की गुहार लगाई।

अमरीका, दूसरे विश्व युद्ध के आख़िरी चरण में इंडोचाइना इलाक़े में लड़ रहा था। 1950 के बाद से उसने इस इलाक़े में फ़्रांस का समर्थन शुरू कर दिया। ख़ास तौर पर उसकी मदद रसद पहुंचाने तक सीमित थी। उसने सैकड़ों जैट्स, टैंक, वाहन और सैन्य उपकरण फ़्रांस को दिए और अमरीकी सैन्य सलाहकार, फ़्रांसीसियों के हमलों और नरसंहार की निगरानी पर लगा दिए।

1954 तक क़रीब 80 फ़ीसद तक फ़्रांस की जंग का ख़र्चा अमरीका उठा रहा था और अमरीकी एयरफ़ोर्स के अधिकारी इंडोचाइना में तैनात थे, ताकि वह फ़्रांसीसियों की मदद कर सकें।

वियतनामियों के कड़े संघर्ष के सामने मजबूर फ़्रांसीसी कई बार अमरीका से जंग में सीधे हस्तक्षेप की गुहार लगा चुके थे।

20 मार्च को एक योजना पर विचार हुआ, जिसका नाम ऑप्रेशन वल्चर रखा गया, जिसके तहत अमरीकी एयरफ़ोर्स के 60 से 98 बम वर्षक बी-29 और 100 से ज़्यादा नौसेना एस्कॉर्ट विमानों को डिएन बिएन फ़ू में वियत मिन्ह के ठिकानों पर बमबारी करना थी। ऑपरेशन वल्चर में 3 परमाणु बम गिराना भी शामिल था।

फ़्रांसीसी विदेश मंत्री जॉर्जेस बिडॉल्ट ने कहा था कि पेरिस में 22 अप्रैल को होने वाली एक मीटिंग में अमरीका के विदेश मंत्री जॉन फ़ोस्टर डलेस उन्हें किनारे ले गए और डिएन बिएन फ़ू पर गिराने के लिए उन्हें दो परमाणु देने का प्रस्ताव किया, ताकि वियतमानियों का काम वहीं तमाम हो जाए।

बिडॉल्ट ने दावा किया कि उन्होंने डलेस की इस पेशकश को इसलिए ठुकरा दिया, क्योंकि वियत मिन्ह के लड़ाके फ़्रांसीसी सैन्य ठिकानों के काफ़ी नज़दीक थे और परमाणु बम से फ़्रांसीसियों का भी सफ़ाया हो जाता।

हालांकि बाद में अमरीकी विदेश मंत्री डलेस ने बहुत ही ढिटाई से ऐसी कोई भी पेशकश करने से इंकार कर दिया। लेकिन यह सच्चई अपनी जगह बाक़ी थी कि व्हाइट हाउस में परमाणु बम के इस्तेमाल और फ़्रांसीसियों को परमाणु हथियार देने पर चर्चा हुई थी।

29 अप्रैल को अमरीकी नेशनल सेक्यूरिटी कौंसिल ने इस मुद्दे पर चार घंटे तक बहस की थी और 30 अप्रैल को यह फ़ैसला किया था कि कुछ बम फ़्रांसीसियों को दिए जा सकते हैं।

हालांकि अमरीकी प्रेसिडेंट आइज़हावर कांग्रेस और ब्रिटेन जैसे अपने घटकों के समर्थन के बिना सीधे हस्तक्षेप में कोई रूचि नहीं रखते थे।

लेकिन मई के महीने की शुरूआत के साथ ही अब काफ़ी देर हो चुकी थी। वियत मिन्ह ने पहली मई को एक बड़ा हमला किया और फ़्रांस के 2000 सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया। 10,000 सैनिक ज़ख़्मी हो गए या क़ैद कर लिए गए। फ़्रांस को अपमानजनक हार का सामना करना पड़ा, जिसे अमरीकियों ने भी अपनी आंखों से देखा।   

फ़्रांसीसियों की हार के बाद, अमरीका ने इसमें दख़ल देने का इरादा किया, ताकि फ़्रांस और दूसरी शक्तियों के सामने अपनी ताक़त का मज़ाहिरा कर सके, लेकिन उसे भी हार का सामना करना पड़ा, जो काफ़ी मशहूर है। msm

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