May २५, २०२४ १९:५२ Asia/Kolkata
  • यूरोपीय छात्रों का संदेश, यूरोप पर अमेरिका और इस्राईल का प्रभाव नहीं चाहिए
    यूरोपीय छात्रों का संदेश, यूरोप पर अमेरिका और इस्राईल का प्रभाव नहीं चाहिए

पार्सटुडे- यूरोपीय संसद के चुनावों की पूर्व संध्या पर यूरोपीय विश्वविद्यालयों में ग़ज़ा युद्ध और फ़िलिस्तीन पर अवैध क़ब्ज़ा करने वाले शासन के आलोचक छात्रों के दमन की वजह से इस भू-रणनीतिक क्षेत्र में एक अभूतपूर्व स्थिति पैदा हो गयी है। ऐसी स्थिति जो यूरोपीय सत्ता के भविष्य पर अहम प्रभाव डाल सकती है।

जबकि यूरोपीय संघ के वरिष्ठ अधिकारियों ने यूरोपीय संसद के चुनावों तक, बचे हुए थोड़े से समय में ही अपने देश के युवाओं की महान क्षमता को चुनावी लोकतंत्र की ओर घुमाने के लिए अपनी पूरी शक्ति झोंकना शुरु कर दी है जिसे वे चुनावी लोकतंत्र का नाम देते  हैं।

पुलिस की क्रूरता और छात्रों को गिरफ्तार करने, पीटने और घायल करने के लिए पश्चिमी सरकारों के चौतरफ़ा समर्थन के परिणामस्वरूप फ्रांसीसी, जर्मन, डच सहित और यूरोपीय नागरिकों के मन में महत्वपूर्ण प्रश्न पैदा हो गए हैं।

हक़ीक़त यह है कि यूरोप में ज़ायोनी लॉबी, जिसमें मुख्य रूप से "ज़ायोनी-सोशल डेमोक्रेट" और "ज़ायोनी-कंजर्वेटिव" लॉबी शामिल हैं, यूरोपीय छात्रों को कुचलने के लिए उक्त देशों के सुरक्षा और राजनीतिक तंत्र को आदेश जारी करते हैं और वे स्वयं भी इस प्रकार पर नज़र भी रखती है।

मूलतः पश्चिम की न्यायिक एवं ख़ुफ़िया एजेंसियों द्वारा यहूदी-विरोधी और ज़ायोनी-विरोधी को एक ही दिशा में ढालने की कोशिशी की गयी है। महत्वपूर्ण बात यह है कि सामान्य तौर पर, यूरोप में सत्ता की छिपी और खुली विचार धाराओं और पार्टियों ने यहूदी विरोधी पार्टियों को उभरने का मौक़ा ही नहीं दिया है और अपने देशों के राजनीतिक-सामाजिक वातावरण में किसी भी प्रकार की गतिविधियों को अलिखित लेकिन ठोस स्वीकृति के बहाने ही लटका दिया ताकि उनके द्वारा बनाई की रेड लाइंस को पार न किया जा सके।

हर कोई पश्चिम में चरम राष्ट्रवादी आंदोलनों के आरंभ को तो याद ही करता है, कुछ ने सोचा होगा कि इन ग्रुप्स के नेताओं की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के कारण, उन्होंने ज़ायोनिज़्म के ख़िलाफ एक स्टैंड लिया और राजनीतिक और अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में इस्राईल का मुकाबला करने को अपने एजेन्डे में शामिल किया।

हालांकि, ग़ज़्ज़ा में हालिया युद्ध के दौरान, फ्रांसीसी नेशनल फ्रंट के नेता मरीन ले पेन और हंगरी के प्रधानमंत्री विक्टर ओर्बन जैसे लोग ग़ज़ा पट्टी में नरसंहार के समर्थक बन गए जबकि मैक्रॉन और शुल्त्स जैसे पारंपरिक रुझानों से जुड़े राजनेता भी इस लहर में बह चुके हैं।

मामला यहां तक ​​पहुंच गया कि हाल ही में संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा में फ़िलिस्तीन के स्वतंत्र देश की मान्यता को लेकर हुए मतदान के दौरान हंगरी ने अमेरिका के साथ इस प्रस्ताव के ख़िलाफ़ मतदान किया।

यूरोपीय छात्र यहां तक ​​कि वे जो सीधे तौर पर अपने देशों में फ़िलिस्तीन के समर्थन में नहीं उतरे, अब इस बात से सहमत हैं कि ज़ायोनिज़्म को न केवल एक स्पष्ट रेड लाइन के रूप में स्वीकार किया गया है बल्कि पश्चिम में शासन मॉडल के हिस्से के रूप में भी स्वीकार किया गया है।

यूरोप के नेताओं ने ज़ायोनिज़्म के अस्तित्व और संचालन के समर्थन को अपनी व्यापक-सुरक्षा नीतियों में शामिल कर लिया है और इसके आधार पर वे ग़ज़ा में ज़ायोनी शासन की क्रूरता का विरोध करने के लिए अपने ही नागरिकों का दमन भी करते हैं।

यह बात क़बूल की जानी चाहिए कि यूरोप की नई पीढ़ी की सबसे महत्वपूर्ण चिंताओं में एक शासन मॉडल के इस बदलाव पर केंद्रित है, जहां पारंपरिक पार्टियों से लेकर "नए आलोचक" तक, सत्ता समीकरण बदलने से भी युवाओं की इस्राईल और अमेरिका से पूर्ण स्वतंत्रता की इच्छा का हल सामने नहीं आता।

न केवल अमेरिका, बल्कि यूरोप में भी छात्रों के आंदोलन का परिणाम नए शासन मॉडल पर केंद्रित होगा। इन मॉडलों को चित्रित करना और उनका संचालन करना "संरचनात्मक परिवर्तन" और "शासन संरचना में परिवर्तन" पर आधारित है, न कि "खिलाड़ियों की तब्दीली" पर!

छात्र आंदोलन के प्रति यूरोपीय दलों में आम भ्रम का एक मुख्य कारण पश्चिम में सत्ता में बैठे लोगों की इस हक़ीक़त की समझ है।

यूरोप में मौजूदा शासन मॉडल के पक्ष में रणनीतिकारों और विशेषज्ञों को जिस बात ने परेशान किया है, वह छात्र आंदोलनों की अप्रतिबंधित प्रकृति और भविष्य में इसके विस्तार की महत्वपूर्ण विशेषता है।

यदि पश्चिम इन आंदोलनों की प्रकृति को भावनात्मक मानता तो शायद वह इनके विरुद्ध अधिक संयम बरतता, कम से कम दिखावे में ही सही, लेकिन इन विरोधों का व्यापक और नग्न दमन दर्शाता है कि पश्चिम ने अतीत की तुलना में अपना आवश्यक अंतर समझ लिया है।

यह ठोस समझ, यूरोपीय लोगों को अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में मौजूदा तथ्यों से सीखने के बजाय, संरचना के विनाश और विनाश के एक प्रकार के डर में बदल गई है जिसके साकार होने में निश्चित रूप से ज्यादा समय नहीं बचा है।

स्रोत:

मोमिन नवेद, पश्चिमी शासन पर छात्रों की फ़ायरिंग। वतन इमरोज़ (1403)

 

कीवर्ड्स: नई विश्व व्यवस्था, पश्चिम का भविष्य, यूरोपीय संघ का भविष्य, फ़िलिस्तीनियों के ख़िलाफ़ इस्राईल का युद्ध, पश्चिम का संकट, अमेरिका में छात्र आंदोलन। (AK)

 

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