Sep २०, २०२४ १३:२९ Asia/Kolkata
  • गार्जियन स्तंभकार: भारत नाज़ी शैली के फासीवाद की ओर धीरे धीरे बढ़ रहा है
    गार्जियन स्तंभकार: भारत नाज़ी शैली के फासीवाद की ओर धीरे धीरे बढ़ रहा है

पार्सटुडे- मुकुल केसवन कहते हैं कि भाजपा और उसका मूल संगठन आरएसएस कई मायनों में नाज़ी राष्ट्रवाद से प्रेरित है।

भारतीय इतिहासकार, उपन्यासकार और राजनीतिक और सामाजिक निबंधकार मुकुल केसवन ने " India is witnessing the slow-motion rise of fascism " शीर्षक के अंतर्गत एक लेख में नाज़ी फासीवाद और भारत की सत्तारूढ़ पार्टी के हिंदू राष्ट्रवाद के बीच समानता पर रोशनी डाली और इसे "धीमी गति से फासीवाद की संज्ञा" क़रार दिया।

केसवन का मानना ​​है कि भारत में बहुसंख्यकवादी आंदोलन ने विशेष रूप से सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और उसके मूल संगठन, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के तहत, नाज़ी फासीवाद की विचारधाराओं को अपने में मिला लिया है।

 

नाज़ीइज़्म से प्रेरित

 

केसवन बताते हैं कि भाजपा और उसका मूल संगठन, आरएसएस, कई मायनों में नाज़ी राष्ट्रवाद से प्रेरित थे।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना केशव बलराम हेडगेवार ने की थी और भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने के उद्देश्य से 27  सितंबर 1925 को विजयदशमी के दिन आरएसएस की स्थापना की गई थी।

यह लगभग उसी समय था जब जर्मनी में हिटलर का उदय हुआ था। यह संगठन, जो भारत को एक हिंदू राष्ट्र के रूप में परिभाषित करता है और सिर्फ़ हिंदुओं को ही इसमें शामिल होने की अनुमति देता है और द्वितीय विश्व युद्ध से पहले के दशकों के फासीवादी सैन्य संगठनों की तरह, सैन्य अभ्यास, सैन्य सलामी और चरमपंथी राष्ट्रीय राष्ट्रवाद पर ज़ोर देता है।

आरएसएस के मुख्य विचारकों में से एक, माधवराव सदाशिव गोलवलकर का हवाला देते हुए, केसवन ने 1939 में "वी, ऑर अवर नेशनहुड डिफाइंड" (We, Or Our Nationhood Defined) पुस्तक में उनके लेख का उल्लेख किया है। इस पुस्तक में, गोलवलकर ने जर्मनी द्वारा यहूदियों के जातीय सफाए की खुले तौर पर "राष्ट्रीय गौरव" और भारत के लिए एक उदाहरण के रूप में तारीफ़ की गयी है। उन्होंने लिखा: जर्मनी ने अपने देश से सेमेटिक नस्लों - यहूदियों को साफ़ करके अपने उच्चतम स्तर पर राष्ट्रवाद का प्रदर्शन किया। यह भारत में हमारे लिए एक बड़ा सबक़ है।

 

अल्पसंख्यकों का दमन

 

केसवन का मानना ​​है कि बीजेपी ने इन विचारों का अच्छा इस्तेमाल किया है। इस पार्टी के नेता प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मुसलमानों को "दीमक" कहते हैं और उन्हें राजनीतिक रूप से हाशिये पर डालने और ख़त्म करने के नियमित प्रयास करते रहे हैं।

मिसाल के तौर पर, भारतीय संसद और राज्य की विधानसभाओं में, भाजपा का कोई मुस्लिम प्रतिनिधि नहीं है। केसवान पिछले दशक में मुसलमानों के खिलाफ व्यापक हिंसा और भेदभाव की ओर भी इशारा करते हैं।

इन हिंसाओं में पशु व्यापार के सिलसिले में मुसलमानों की हत्या, उनके घरों को नष्ट करना और ऐसे क़ानूनों को पारित करना शामिल है जो अप्रत्यक्ष रूप से मुस्लिम लड़कों और हिंदू लड़कियों के बीच संबंधों को अपराध मानते हैं और इसे लव जिहाद का नाम देते हैं। उनका मानना ​​है कि मुसलमानों का यह व्यवस्थित दमन भारत में समान नागरिक के रूप में उनकी स्थिति को अस्थिर करने का एक उद्देश्यपूर्ण तरीक़ा है।

 

भारत के बहुसंख्यकवाद की नाज़िइज़्म से समानता

 

लेखक का दावा है कि आधुनिक बहुसंख्यकों के लिए नाज़ीवाद का एक प्रमुख सबक़ यह है कि अल्पसंख्यक को लगातार शैतान बताकर और बुरा दिखाकर नाममात्र बहुमत को एक उग्र राजनीतिक दानव में बदलना सबसे तेज़ और तरीक़ा है। जिस तरह हिटलर 20 साल से भी कम समय में यहूदियों को एक सबसे नीच और निम्न वर्ग में बदलने का प्रयास किया, उसी तरह भाजपा भारतीय मुसलमानों को हाशिए पर रखना चाहती है।

आरएसएस के मुख्य विचारक गोलवलकर ने भी द्वितीय विश्व युद्ध की पूर्व संध्या पर लिखा था: ग़ैर-हिंदुओं को या तो पूरी तरह से हिंदू संस्कृति में घुलमिल जाना चाहिए या नागरिकता के किसी भी अधिकार के बिना हिंदू राष्ट्र के अधीन रहना चाहिए।

 

भारत का भविष्य और फासीवाद का धीमा उदय

 

केसवन का तर्क है कि भारत, अपनी जटिल लोकतांत्रिक व्यवस्था को देखते हुए, जल्दी से फासीवादी राष्ट्र नहीं बन सकेगा। उनका मानना ​​है कि यह प्रक्रिया लंबी होगी और इसमें काफ़ी समय लगेगा लेकिन जैसा कि म्यांमार और श्रीलंका जैसी मिसालों में नज़र आया है, बहुसंख्यकवादियों का दमन अचानक बढ़ सकता है, जैसा कि रोहिंग्या मुसलमानों के नरसंहार और श्रीलंकाई तमिलों के दमन में देखा गया है।

लेखक इस नतीजे पर पहुंचे है कि जब भी मुख्यधारा के राजनेता "घुसपैठियों" और "पांचवें स्तंभ" के बारे में बात करते हैं और अल्पसंख्यकों को आकर्षित करने में नाकामी के बारे में बात करते हैं, तो हवाओं में फासीवाद के इशारे मिलते हैं।

मुकुल केसवन ने चेतावनी देते हुए यह निष्कर्ष निकाला कि भारत का फासीवादी राज्य में परिवर्तन, धीमा हो सकता है, लेकिन भाजपा की बहुसंख्यकवादी नीतियां, नाज़ी विचारधाराओं की वजह से एक ख़तरनाक इशारा कर रही हैं। वह इस बात पर जोर देते हैं कि लोकतंत्र और अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा के लिए इस प्रक्रिया पर ध्यान देना और इसका विरोध करना ज़रूरी है।

 

कीवर्ड्ज़: फासीवाद, नाज़ी जर्मनी, भारत में बहुसंख्यकवादी आंदोलन (AK)

 

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