रूस का G7 से G20 की ओर रुख
रूस के जाने का पछतावा, ईरान की मौजूदगी की आलोचना/ क्यों 'G7' समूह ने अपनी प्रतिष्ठा खो दी?
पार्सटुडे- अमेरिकी राष्ट्रपति ने रूस को 'G7' समूह से निकालने को ग़लती बताया
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमिर ज़ेलेंस्की के साथ अपनी बातचीत के बारे में कहा: "मुझे पुतिन पर भरोसा है और वह शांति चाहते हैं।" पार्सटुडे की रिपोर्ट के अनुसार, ट्रम्प ने माना कि रूस को G7 से निकालना एक ग़लती थी और उन्होंने आशा जताई कि रूस फिर से G7 में शामिल होगा।
कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, ब्रिटेन और अमेरिका वर्तमान में G7 के सदस्य हैं। रूस के 2014 में निकाले जाने से पहले यह समूह G8 के नाम से जाना जाता था।
क्या क्रेमलिन G7 की बजाय G20 को प्राथमिकता देता है?
इसी संदर्भ में, क्रेमलिन के प्रवक्ता दिमित्री पेस्कोव ने कहा कि रूस G20 के साथ सहयोग करने में अधिक रुचि रखता है, क्योंकि G7 ने आर्थिक नेतृत्व की क्षमता खो दी है।
पेस्कोव ने जोर देकर कहा: "आर्थिक विकास के केंद्र दुनिया के अन्य क्षेत्रों में स्थानांतरित हो गए हैं।"
यह ध्यान देने योग्य है कि अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, चीन, फ्रांस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, मैक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीक़ा, दक्षिण कोरिया, तुर्किए, ब्रिटेन, अमेरिका, यूरोपीय संघ और अफ्रीकी संघ G20 के सदस्य हैं।
अब ईरान; क्या G7 अपनी गलतियों को दोहरा रहा है?
G7 के देशों ने, जो वैश्विक परिवर्तनों के मद्देनज़र अपना प्रभाव खो चुके हैं, म्यूनिख़ सम्मेलन के मौके पर एक अनौपचारिक बैठक के बाद ईरान-विरोधी बयान जारी करके पश्चिमी एशिया में ईरान के राजनीतिक प्रभाव की आलोचना की।
G7 के सदस्य ईरान के राजनीतिक प्रभाव की आलोचना कर रहे हैं, जबकि तेहरान ने हमेशा पड़ोसी देशों के साथ दोस्ताना रिश्तों की नीति पर अमला किया है और कई बार संयुक्त राष्ट्र महासचिव और सुरक्षा परिषद को पत्र भेजकर पश्चिमी एशिया के मुद्दों को इस क्षेत्र के बाहर के देशों के हस्तक्षेप के बग़ैर हल करने का आग्रह किया है।
इसी संदर्भ में, संयुक्त राष्ट्र में ईरान के स्थायी प्रतिनिधि ने सुरक्षा परिषद और संयुक्त राष्ट्र महासचिव को एक पत्र भेजकर कहाः "यमन संकट के प्रति ईरान का रुख़ हमेशा स्पष्ट रहा है। इस संकट का समाधान एक व्यापक राजनीतिक प्रक्रिया के माध्यम से होना चाहिए जो यमन की स्वतंत्रता, राष्ट्रीय संप्रभुता, एकता और क्षेत्रीय अखंडता को सुनिश्चित करे।"