फ़ेक न्यूज़ क्या क्या गुल खिलाती है? बुरे फंसे पाकिस्तान के वरिष्ठ टीवी ऐंकर, मांगी माफ़ी
(last modified Sun, 11 Mar 2018 14:17:18 GMT )
Mar ११, २०१८ १९:४७ Asia/Kolkata
  • फ़ेक न्यूज़ क्या क्या गुल खिलाती है? बुरे फंसे पाकिस्तान के वरिष्ठ टीवी ऐंकर, मांगी माफ़ी

फ़ेक न्यूज़ इस समय एक वैश्विक समस्या बन गई है और इसके गहरे प्रभाव देखने में आ रहे हैं। यहां तक कहा जा रहा है कि फ़ेक न्यूज़ के कारण हत्या जैसे जघन्य अपराध भी हुए हैं।

यही नहीं फ़ेक न्यूज़ की अमरीका जैसे बड़े देश के राष्ट्रपति चुनावों में भी बड़ी भूमिका बतायी जाती है। भारत में भी फ़ेक न्यूज़ का बाज़ार गर्म है और कुछ वेबसाइटें तो केवल इसी काम पर लगी हैं कि फ़ेक न्यूज़ का पर्दाफ़ाश करें।

बीबीसी हिंदी की वेबसाइट पर प्रकाशित लेख के अनुसार 'फ़ेक न्यूज़' पर हुए अब तक के सबसे बड़े अध्ययन के बाद वैज्ञानिकों का कहना है कि झूठी ख़बरें बहुत तेज़ी से और बहुत दूर तक फैलती हैं, इस हद तक कि सच्ची ख़बरें उनके मुक़ाबले टिक नहीं पातीं. पिछले 10 सालों में अंग्रेजी में किए गए 30 लाख लोगों के सवा लाख से अधिक ट्वीट्स का गहन अध्ययन करने के बाद वैज्ञानिकों ने कहा है कि झूठी और फ़र्ज़ी ख़बरों में तेज़ी से फैलने की ताक़त होती है.

प्रतिष्ठित पत्रिका साइंस में छपी ये रिपोर्ट हालांकि सिर्फ़ ट्विटर पर फैलने वाले झूठ पर केंद्रित है लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि यह हर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर लागू होता है, चाहे वो फ़ेसबुक हो या यूट्यूब.

शोधकर्ताओं ने पाया कि फ़ेक न्यूज़ अधिक लोगों तक पहुँचता है और साथ ही ज्यादा बड़े दायरे में फैलता है, मिसाल के तौर पर विश्वसनीय समाचार एक सीमित वर्ग में ही जाता है जबकि फ़ेक न्यूज़ हर तरह के लोगों तक पहुँचता है, वैज्ञानिकों ने पाया कि फ़ेक न्यूज़ रीट्वीट होने की रफ़्तार और व्यापकता के मामले में भारी पड़ता है. मिसाल के तौर पर न्यूयॉर्क टाइम्स की एक ख़बर एक बार में एक हज़ार लोगों तक पहुँचती है उसके बाद उसके आगे जाने की रफ़्तार कम होने लगती है, लेकिन फेक न्यूज़ पहले कोई अविश्वसनीय व्यक्ति शुरू करता है और ये छोटे समूहों में शेयर होते हुए आगे बढ़ता जाता है और कुछ समय में सच्ची ख़बर के बराबर और आगे चलकर उस पर हावी हो जाता है.

इस रुझान को समझाने के लिए शोधकर्ताओं ने कई उदाहरण दिए हैं. एक ख़बर आई थी कि ट्रंप ने एक बीमार बच्चे की मदद करने के लिए अपना निजी विमान दे दिया था, ये सही ख़बर थी लेकिन इसे सिर्फ़ 1300 लोगों ने रीट्वीट किया. दूसरी ओर, एक ख़बर आई कि ट्रंप के एक रिश्तेदार ने मरने से पहले अपनी वसीयत में लिखा है कि ट्रंप को राष्ट्रपति नहीं बनना चाहिए. ऐसा कोई रिश्तेदार था ही नहीं और ख़बर फ़र्ज़ी थी लेकिन उसे 38 हज़ार लोगों ने रीट्वीट किया।

फ़ेक न्यूज़ केवल सोशल मीडिया तक सीमित नहीं है बल्कि अपना प्रभाव अन्य क्षैत्रों पर भी डाल रही है। फ़ेक न्यूज़ के मामले में पाकिस्तान के वरिष्ठ एंकर डाक्टर शाहिद मसऊद इस बुरी तरह फंस गए कि उन्हें अदालत में अपने दावों पर शर्मिंदगी उठानी पड़ी और उन्होंने माफ़ी मांगी।

शाहिद मसऊद

 

पाकिस्तान के निजी टीवी चैनल न्यूज़-वन के एंकर डाक्टर शाहिद मसऊद ने सुप्रीम कोर्ट में अपना जवाब दाख़िल करवाया और इसमें उन्होंने ज़ैनब हत्याकांड के मामले में अपने दावों पर शर्मिंदगी जताई।

डाक्टर शाहिद मसऊद ने अपने जवाब में कहा है कि उनका दावों की जांच पड़ताल और एफ़बीआई की रिपोर्टों को चुनौती देने का इरादा नहीं है क्योंकि इस जांच कमेटी का गठन सुप्रीम कोर्ट ने किया था तो वह इसकी सच्चाई पर सवाल नहीं उठा सकते।

डाक्टर शाहिद मसऊद ने अपने दावों के बारे में लिखा कि उन्होंने अपने दावों में जो कुछ कहा था सच्चाई के साथ कहा था और किसी को गुमराह करने की उनकी कोई नीयत नहीं थी। इससे अदालत को कष्ट उठाना पड़ा और अन्य लोग भी प्रभावित हुए इस पर मुझे शर्मिंदगी है और मैं अदालत को विश्वास दिलाता हूं कि भविष्य में कोई भी एसी बात करने से पहले ज़रूरी सावधानी बरतूंगा।

ज्ञात रहे कि ज़ैनब हत्याकांड के अभियुक्त इमरान अली के बारे में डाक्टर शाहिद मसऊद ने कहा था कि पाकिस्तान में इमरान अली के विदेशी करेंसी के 37 बैंक एकाउंट हैं और उसका संबंध बच्चों को यौन दुराचार का निशाना बनाने वाले किसी अंतर्राष्ट्रीय गैंग से है।

डाक्टर शाहिद मसऊद ने अदालत से माफ़ी की अपील की है।

इन दावों के बारे में जांच कमेटी ने अदालत को बताया कि डाक्टर शाहिद मसऊद ने अपने टीवी कार्यक्रम में जो दावे किए थे वह सब ग़लत थे।

सुप्रीम कोर्ट ने डाक्टर शाहिद मसऊद के दावों का स्वतः संज्ञान लेते हुए इनकी जांच करवाई थी।

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