रूस यूक्रेन टकराव में यूरोप का दोहरा रवैया
(last modified Tue, 27 Nov 2018 14:21:09 GMT )
Nov २७, २०१८ १९:५१ Asia/Kolkata

आज़ोव सागर में रूस और यूक्रेन के बीच टकराव और इसके नतीजे में दोनों देशों के बीच चरम सीमा पर पहुंच जाने वाला तनाव यूरोप की दोहरी प्रतिक्रिया का कारण बना है।

जर्मनी के विदेश मंत्री हाइको मास ने कहा कि फ़्रांस और जर्मनी इस विवाद को हल करने के लिए रूस और यूक्रेन के बीच मध्यस्थता करें। उनका कहना था कि हम चाहते हैं कि वर्तमान टकराव गंभीर संकट का रूप धारण न करे इसीलिए चारों देशों के विदेश मंत्रालय के अधिकारियों की एक मुलाक़ात भी हुई है।

यूरोपीय देशों ने 2014 से ही यूक्रेन संकट में हस्तक्षेप किया और इस देश में वह पश्चिम समर्थक सरकार देखना चाहते हैं। क्रीमिया के रूस में विलय और पूर्वी यूक्रेन में आंतरिक विवाद के बाद से यूरोप ने कीएफ़ का समर्थन किया है। यूरोप ने इसी संदर्भ में अमरीका के साथ मिलकर रूस पर प्रतिबंध भी लगाए और हर साल इन प्रतिबंधों की समयसीमा बढ़ा रहे हैं।

हालिया तनाव में भी यूरोप वैसे तो कीएफ़ का समर्थन कर रहा है लेकिन साथ ही उसकी इच्छा यह है कि यह टकराव जारी न हरे बल्कि तनाव में कमी आ जाए। यूरोपीय संघ की विदेश नीति आयुक्त फ़ेडरिका मोग्रीनी ने रूस से मांग की है कि वह यूक्रेन के जहाज़ों और चालकदल को तत्काल रिहा कर दे। रूस ने आज़ोव सागर में यूक्रेन की तीन नौकाओं और 23 नाविकों को हिरासत में ले लिया है।

यूरोप को अच्छी तरह आभास है कि यदि तनाव बढ़ा और युद्ध छिड़ गया तो इसका नतीजा क्या होगा और युद्ध का यह नतीजा यूरोप नहीं चाहता। यूरोप वर्ष 2008 में रूस और जार्जिया के बीच युद्ध का परिणाम देख चुका है। इस युद्ध में जार्जिया विभाजित हो गया था। ब्रिटिश सरकार ने इस मामले में कीएफ़ का खुलकर समर्थन करते हुए रूस को वर्तमान स्थिति का ज़िम्मेदार ठहराया है। ब्रिटेन के विदेश मंत्री जेरेमी हंट ने कहा कि रूस विश्व व्यवस्था को नज़रअंदाज़ करने की कोशिश कर रहा है। ब्रिटेन का स्टैंड अमरीका से पूरी तरह समन्वित महसूस होता है। अमरीका चाहता है कि यूरोप रूस के मामले में कठोर रुख़ अपनाए मगर यूरोप को पता है कि कठोर रुख़ अपनाने के नकारात्मक परिणाम निकलेंगे।